नई दिल्ली। ध्यान के जरिए तनाव और अवसाद को नियंत्रित किया जा सकता है। ध्यान करने के कुछ दिनों के भीतर मस्तिष्क में जबरदस्त बदलाव आने लगता है। यह दावा अब मनोविज्ञानी भी कर रहे हैं।’
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अपने भीतर की यात्रा, शांति और आनंद की खोज के लिए साधु और बौद्ध भिक्षु हर दिन कई घंटे ध्यान करते हैं। विचारों की ताकत मस्तिष्क और शरीर पर किस तरह असर डालती है, वैज्ञानिकों को अब इस बारे में ज्यादा जानकारी मिल रही है। जर्मनी की ट्यूबिंगन यूनिवर्सिटी में ध्यान के पहले और बाद में मस्तिष्क की तरंगों को बारीकी से जांचा जा रहा है। मेजरमेंट दिखाता है कि आठ हफ्तों बाद ही मस्तिष्क में कुछ स्पष्ट सा बदलाव आने लगता है।
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मस्तिष्क की सतह पर ज्यादा वोल्टेज मापी गई जो बताती है कि बदलाव बेहद गहराई में हो रहे हैं। हाल के समय में कंप्यूटर टोमोग्राफी के जरिए भी इन दावों की पुष्टि हुई है। दिमाग की गहराई में, तंत्रिकाओं का विस्तार और संवाद ज्यादा होता है। नई तंत्रिकाओं का विकास भी होता है। जिन जगहों पर ज्यादा क्षमता की जरूरत होती है, वहां स्थायी रूप से तंत्रिकाओं की वायरिंग होती है। यह मैकेनिज्म बताता है कि विचारों की ताकत कैसे शारीरिक प्रक्रिया और शरीर पर असर डालती है।
यही प्रक्रिया तथाकथित प्लेसेबो इफेक्ट को भी समझाती है। इस पर भरोसा ही शरीर की आखिरी कोशिका तक असर कर सकता है। तंत्रिका तंत्र के साथ ही हमारे इम्यून सिस्टम पर विचारों का सीधा असर पड़ता है।
उदाहरण के लिए, जब बाहर से कोई हानिकारक तत्व शरीर में प्रवेश करता है तो इम्यून सिस्टम मास्ट सेल रिलीज करता है, यह शरीर का अपना प्रतिरोधी उपाय है। मास्ट कोशिकाएं मस्तिष्क के न्यूरॉन्स और उन्हें प्रवाहित करने वाले तंत्रिका तंत्र से प्रभावित होती हैं। खास सिग्नल पाकर वह और ज्यादा एंटीबॉडी रिलीज करते हैं। एंटीबॉडी शरीर तब ही भेज पाता है, जब वह सेहतमंद हो, आप नियमित रूप से कसरत करें और सबसे ज्यादा जरूरी है, तनाव से मुक्त जीवन जिएं।