नरेंद्र मोदी का वो अहम फैसला: जो भारत-चीन के बीच जंग होने पर पलट सकता है बाजी

भारत और चीन के बीच सीमा विवाद का मसला और भी ज्यादा उलझता ही जा रहा है। लद्दाख में जिस तरह के हालात आज दिखाई दे रहे हैं। उसे देखकर युद्ध की बात से इनकार नहीं किया जा सकता है।

Update:2020-09-16 19:54 IST
चीन ने एलएससी पर सेना उतार दी है। उन्हें अत्याधुनिक हथियारों से भी लैश कर रखा है। चीनी सेना के युद्ध अभ्यास की वीडियो चीन की तरफ से डाली जा रही है।

नई दिल्ली: भारत और चीन के बीच सीमा विवाद का मसला और भी ज्यादा उलझता ही जा रहा है। लद्दाख में जिस तरह के हालात आज दिखाई दे रहे हैं। उसे देखकर युद्ध की बात से इनकार नहीं किया जा सकता है।

चीन ने एलएससी पर बड़ी तादाद में सेना उतार दी है। उन्हें अत्याधुनिक हथियारों से भी लैश कर रखा है। लगातार सोशल मीडिया पर चीनी सेना के युद्ध अभ्यास की वीडियो चीन की तरफ से डाली जा रही है।

जिसके बाद भारत ने भी सीमा पर उसी के अंदाज में जवाब देना शुरू कर दिया है। न केवल भारी फ़ोर्स तैनात की गई है बल्कि उन्हें हाईटेक वेपन से भी लैश कर दिया गया है।

एलएसी पर पहरा देते भारतीय सेना की फोटो(सोशल मीडिया)

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अगर चीन ने सोची रणनीति के तहत ठण्ड के मौसम में हमला करने की कोशिश की तो उसके लिए भी भारत ने तैयारी पहले से ही कर रखी है। हर वो साजो सामान बॉर्डर पर सेना के पास पहुंचा दिया गया है।

जो उसे भीषण बर्फबारी और कड़ाके की ठण्ड में भी चीनी सेना से लड़ने के लिए हर समय तैयार रखेगी। जानकारों की मानें तो इस समय जिस तरह के हालात हैं ऐसे में मोदी सरकार ने राफेल का सौदा कर एक ऐसा महत्वपूर्ण कदम उठाया है। जो जंग के समय निर्णायक रोल अदा करेगा।

राफेल को भारत लाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस तरह की तत्परता दिखाई वो भी किसी से भी छिपी हुई नहीं है। राफेल को भारत लाने की बात कांग्रेस सरकार में ही शुरू हुई थी लेकिन किसी कारणवश ये भारत नहीं आ पाया। फिर जैसे ही केंद्र में मोदी सरकार सत्ता में आई।

सरकार ने राफेल को भारत लाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी। जिसका नतीजा ये हुआ कि आज न केवल राफेल भारत पहुंच चुका है बल्कि सेना के बेड़े में भी शामिल हो गया है।

भारतीय सेना की फोटो(सोशल मीडिया)

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राफेल की ताकत जानता है चीन

जानकारों की मानें तो चीन की राफेल की ताकत के बारे में सही –सही अंदाजा है। उसे पता है कि अगर उसने गलती से भी भारत पर हमला कर दिया तो उसे बुरे अंजाम से गुजरना पड़ेगा। क्योंकि ये 1947 वाला भारत नहीं है बल्कि ये 2020 वाला भारत हैं। जिसकी बागडोर 56 इंच का सीना रखने वाले नरेंद्र मोदी के हाथों में हैं।

इसलिए चीन केवल अपने प्रोपोगेंडा वीडियो से भारत को डराना चाहता है। उसकी मंशा है कि किसी तरह से भारतीय सेना एलएसी से पीछे हट जाये ताकि भारत की जमीन पर एक बार फिर से कब्जा किया जा सके।

लेकिन जिस तरह से भारतीय सेना ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए चीन की सेना को न केवल उसकी सीमा में ही 4 किमी. अंदर धकेल दिया बल्कि ब्लैक टॉप पर कब्जा कर लिया।

उससे चीन एकदम से घबरा हुआ है। वह भारत के साथ अब बातचीत की बात कर रहा है। हालांकि भारत उसकी नीयत से अच्छे से वाकिफ है। इसलिए उस पर ag भरोसा करने की गलती दोबारा से नहीं करेगा।

भारतीय राफेल क्यों हैं सभी से बेहतर

आपको बता दें कि इंडियन राफेल की तुलना में चीन का चेंगदू J-20 और पाकिस्ता न का JF-17 लड़ाकू विमान हैं। लेकिन ये दोनों ही राफेल के मुकाबले थोड़ा निम्न दर्ज के मालूम होते हैं।

इसकी सबसे खास बात ये है कि राफेल विमान भारत को जम्मूं-कश्मीेर और लद्दाख के दुर्गम पहाड़ी इलाकों तक ऑल-वेदर एक्सेरस देगा। चीन और पाकिस्ताेन से सटी सीमा पर इसकी तैनाती से भारत का एयर डिफेंस पहले से कहीं ज्या दा मजबूत हो जाएगा।

राफेल विमान की खासियत

राफेल एक तरह का लड़ाकू विमान है। जो किसी भी समय तेजी के साथ हवाई हमला, जमीन में सेना की मदद और दुश्मन पर बड़े हमले को अंजाम देने में सक्षम है। इसके अलावा परमाणु हथियारों के खिलाफ भी इसे उपयोग में लाया जा सकता है।

इसके अंदर दो इंजन लगे होते हैं। ये दो इंजन वाला मध्यम मल्टी-रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) है। इसे फ्रांस की कंपनी दसॉल्ट एविएशन बनाती है। राफेल लड़ाकू विमानों को 'ओमनिरोल' विमानों की श्रेणी में रखा गया है, जो किसी भी युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने की क्षमता रखते हैं।

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नरेंद्र मोदी की फोटो(सोशल मीडिया)

क्यों हुई इसकी खरीद में देरी

बता दें कि यूपीए सरकार के दौरान 126 जेट खरीदने की बात हुई थी, एनडीए सरकार में इसे घटाकर 36 कर दिया गया। विमान खरीदने की प्रक्रिया की बातचीत के दौरान भारत और फ्रांस दोनों देशों में इलेक्शन हुए और सरकार बदल गई।

इसकी एक दूसरी वजह विमान की कीमत भी थी जिस वजह से खरीद में देरी हुई थी। विमान की कीमत लगभग 740 करोड़ रुपये है। भारत उन्हें कम से कम 20 फीसदी कम लागत पर चाहता था।

मोदी सरकार के दौरान क्या हुआ

मालूम हो कि पीएम नरेंद्र मोदी ने अप्रैल 2015 में पेरिस का विजिट किया था। उसी वक्त 36 राफेल खरीदने का फैसला सरकार की तरफ से ले लिया गया था। सरकार ने इस सौदे पर साल 2016 में हस्ताक्षर किये थे।

उधर जब फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वां ओलांद ने जनवरी में भारत का विजिट किया तो राफेल जेट एयर क्राफ्ट की खरीद के 7.8 अरब डॉलर के सौदे पर दस्तखत हुए। लेकिन भारत को राफेल मिलने में डिले हो गया।

इसी बीच इसे लेकर खूब सियासत भी हुई। मोदी सरकार पर राफेल घोटाला का आरोप लगना शुरू हो गया। मामले ने इस कदर तूल पकड़ा कि सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल हो गई और इस पर सुनवाई चल रही है।

कांग्रेस ने उस वक्त सवाल उठाना शुरू किया कि विमानों की संख्या घटाकर 36 क्यों कर दी गई? इसे ऊंची कीमत पर क्यों खरीदा गया? एचएएल की जगह ठेका अनिल अंबानी की कंपनी को क्यों दिया गया।

कब शुरू हुई खरीद प्रक्रिया

बता दें कि असल में खरीद प्रक्रिया की शुरुआत वर्ष 2007 में हुई थी। तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी की अध्यक्षता वाली रक्षा अधिग्रहण परिषद ने अगस्त 2007 में 126 एयरक्राफ्ट खरीदने के प्रस्ताव को हरी झंडी दे थी।

भारतीय वायु सेना ने साल 2001 में अतिरिक्त लड़ाकू विमानों की मांग की थी। वायुसेना के बेड़े में बड़े पैमाने पर भारी और हल्के वजन वाले विमान हैं। इसमें रक्षा मंत्रालय मध्यम वजन वाले लड़ाकू विमान शामिल करना चाहता था।

कितने राफेल खरीदे जाने हैं

गौरतलब है कि राफेल विमान खरीदने के लिए भारत और डसॉल्ट एविएशन ने साल 2012 में दोबारा बातचीत शुरू हुई। साल 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार ने साल 2016 में नई शर्तों और कीमत के साथ सौदे में बदलाव किया। इस डील की शुरुआत 10.2 अरब डॉलर (5,4000 करोड़ रुपये) से होनी थी। 126 विमानों में 18 विमानों को तुरंत लेने और बाकी की तकनीक भारत को सौंपे जाने की बात तय हुई थी। लेकिन बाद में इस डील में परिवर्तन किया गया।

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