चीन का लद्दाख को मान्यता देने से इनकार, आखिर क्या है जिनपिंग की मंशा?
चीन पर करीब से नजर रखने वाले एक्सपर्ट्स की मानें तो कोरोना वायरस के कारण चीन में खाद्यान संकट पैदा हो गया है। जो धीरे-धीरे और बढ़ता जा रहा है।
बीजिंग: भारत और चीन के बीच सीमा पर तनाव अभी भी बना हुआ है। इस बीच चीन से खबर आ रही है कि उसने एक बार फिर से भारत के केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख को मान्यता देने से मना कर दिया है।
चीन के विदेश मंत्रालय का इस मामले पर बयान भी आया है। क विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा कि भारत ने लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश की स्थारपना इललीगल तरीके से की है।
उन्होंने आगे ये भी कहा कि भारत और चीन के बीच लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल को लेकर हमारी स्थिति एक दम क्लियर है। हम 7 नवंबर 1959 को बताई गई सीमा को एलएसी मानते हैं। जानिए आखिर क्यों चीन बार-बार साल 1959 का जिक्र करते हुए मैकमोहन लाइन को मानने से इनकार करता है।
एलएसी को शुरू से नहीं मानता आया है चीन
बताते चलें कि 1962 में चीन और भारत के बीच जंग हुई थी। इस युद्ध के बाद से लद्दाख और हिमाचल के जिन क्षेत्रों में दोनों देशों की सेनाएं जहां-जहां रूक गईं, उन इलाकों को 1993 में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल का नाम दिया गया। इनमें से अधिकाँश भू-भाग कई किलोमीटर तक भारतीय सीमा के अंदर हैं। वहीं पूर्वोत्तर भारत में चीन से साथ सटी सीमा को मैकमोहन लाइन से बाटा जाता है। चीन शुरू से इस लाइन को मानने से मना करता आ रहा है।
1959 में चीन के राष्ट्रपति ने पंडित नेहरु को पत्र लिखकर की थी ये मांग
यहां पर ये भी बता दें की चीन और भारत के बीच कभी भी कोई आधिकारिक सीमा तय नहीं हुई है। भारत सरकार 1865 की जॉनसन लाइन के समान पश्चिमी क्षेत्र में एक सीमा का दावा करती है, जबकि पीआरसी सरकार 1899 की मैकार्टनी-मैकडोनाल्ड लाइन के समान एक सीमा मानती है।
जब भारत और चीन के बीच 1959 को छिटपुट झड़पें शुरू हुईं तो चीनी प्रीमियर जिन्हें चीन में राष्ट्रपति कहा जाता है वो झाऊ एन लाई थे। उन्होंने भारत के तत्कालीन प्रधानममंत्री जवाहरलाल नेहरू को 24 अक्टूबर 1959 को लेटर लिखकर कहा था कि चीन की किसी भी सरकार ने मैकमोहन रेखा को कभी भी मान्यता नहीं दी है।
पंडित नेहरु ने चीन की मांग को कर दिया था अस्वीकार
मालूम हो कि झाऊ एन लाई ने ये भी लिखा था ऐसी स्थिति में हम अपने ही क्षेत्र में पीछे कैसे हट सकते हैं, जबकि चीनी सेना पीछे हटने के बावजूद हमारे ही इलाके में मौजूद रहेगी।
कहा जाता है कि इसी के बाद चीन ने जंग की तैयारी शुरू कर दी थी। चीन की तरफ से उस वक्त भारतीय सेना को बॉर्डर से 20-20 किलोमीटर पीछे हटाने की मांग की थी। लेकिन, नेहरू ने चीन की इस मांग को ख़ारिज कर दिया था।
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भुखमरी से ध्यान भटकाने में लगा हुआ है चीन
यहां ये भी जानना जरूरी है की आखिर चीन ऐसा क्यों कर रहा है। आपको बता दें कि इस समय चीन में भुखमरी मची हुई है। रोज बड़ी तादाद में लोगों की मौतें हो रही हैं। जिसको लेकर दुनिया भर की निगाहें उस पर हैं। ऐसे में अपने और बाकी देशों के लोगों का ध्यान भटकाने के लिए चीन भारत के साथ सीमा विवाद को बढ़ा रहा है।
1962 में भी जब चीन में भयानक अकाल पड़ा था तब भी चीन के सर्वोच्च नेता माओत्से तुंग ने भारत के साथ जंग का आगाज कर दिया था। उस समय चीन में हजारों लोगों की भूख से मौत हो गई थी। इतना ही नहीं इसे लेकर तत्कालीन चीनी शासन के खिलाफ ग्रेट लीप फॉरवर्ड मूवमेंट भी चला था। ठीक वैसा ही आज भी चीन में हो रहा है।
खाद्य संकट को छिपाना चाहते हैं जिनपिंग
चीन पर करीब से नजर रखने वाले एक्सपर्ट्स की मानें तो कोरोना वायरस के कारण चीन में खाद्यान संकट पैदा हो गया है। जो धीरे-धीरे और बढ़ता जा रहा है।
जिनपिंग ने खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने के लिए 2013 के क्लीन योर प्लेट अभियान को फिर से लॉन्च किया है। चीनी प्रशासन इस योजना की आड़ में देश में पैदा हुए खाद्य संकट को छिपा रहा है।
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कोरोना, टिड्डी, बाढ़ की मार से चीन बेहाल
जानकारों की मानें तो चीन इस समय एक के बाद एक कई तरह के संकट से घिर गया है। एक तरफ भारत और अमेरिका से उसकी तनातनी चल रही है।
जबकि दूसरी तरफ उसे अपने देश के अंदर ही पहले कोरोना फिर बाढ़ और अब टिड्डियों के हमले से जूझना पड़ रहा है। जिससे देश के दक्षिणी भाग में खड़ी फसलों को भारी नुकसान पहुंचा है।
इन्हें काबू में करने के लिए चीनी सेना तक अभियान चला रही है। दूसरी बात यह है कि भीषण बाढ़ के कारण चीन में हजारों एकड़ की फसल बर्बाद हो गई है। चीन के जिस इलाके में सबसे ज्यादा फसल उगती है, बाढ़ का असर भी उन्हीं इलाकों पर अधिक पड़ा है।
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