भारत को जीएसपी से बाहर करने के पीछे क्या है डोनाल्ड ट्रंप की मंशा?

Update:2019-03-15 13:02 IST
भारत को जीएसपी से बाहर करने के पीछे क्या है डोनाल्ड ट्रंप की मंशा?

नई दिल्ली। जनरलाइजड सिस्टम ऑफ प्रिफरेंस (जीएसपी) मतलब प्राथमिकताओं की सामान्यीकृत प्रणाली। यह अमेरिका का कारोबारी प्रोग्राम है जिसे विकासशील देशों की आर्थिक वृद्धि में लाभ पहुंचाने के लिए तैयार किया गया था। इसे ट्रेड एक्ट 1974 कानून के बाद अमल में लाया गया। अमेरिका ने तकरीबन 129 देशों को जीएसपी दर्जा दे रखा है। इसके तहत इन देशों के तकरीबन 4,800 प्रोडक्ट्स की अमेरिका में ड्यूटी फ्री इंट्री हो सकती है। इन देशों में भारत भी शामिल है। जीएसपी का मकसद अमेरिका का अन्य देशों के साथ व्यापार बढ़ाने और उसमें विविधता लाकर सतत विकास को बढ़ावा देना है। जीएसपी कार्यक्रम विकासशील देशों के उत्पादों को बड़ा बाजार देता है जिनसे उन्हें फायदा होता है।

पिछले दो दशकों में भारत और अमेरिका शीत युद्ध की ठंडक को पीछे छोड़ काफी करीब आए हैं। जहां अमेरिका ने भारत को एक लोकतांत्रिक साझेदार, चीन के बढ़ते वर्चस्व पर लगाम कसने के लिए एक उभरती ताकत और सवा अरब लोगों के एक बढ़ते बाजार की तरह देखा है वहीं भारत को अमेरिका की तकनीकी और सामरिक अनुसंधान क्षमता और एक बड़े बाजार का फायदा मिला है। इस दौरान वाणिज्य रिश्तों में तनाव रहे हैं, अमेरिका ने भारत के आर्थिक सुधारों की गति, व्यापार के माहौल, बौद्धिक संपदा और पेटेंट नियमों पर सवाल उठाए हैं, और जीएसपी से बाहर करने के साथ-साथ अन्य व्यापार प्रतिबंधों की धमकी भी दी है।

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डोनाल्ड ट्रंप 'अमेरिका फस्र्ट' और 'बाइ अमेरिकन, हायर अमेरिकन' यानी अमेरिकी सामान खरीदो और अमेरिकी नागरिकों को नौकरी दो के वादे पर चुनाव जीत कर आए हैं। सत्ता संभालने के बाद से उन्होंने चीन के साथ टैक्स युद्ध छेड़ रखा है, अपने करीबी यूरोपीय सहयोगियों को अमेरिकी सामानों पर टैक्स लगाने के लिए सरेआम लताड़ा है, अमेरिका की स्टील और अल्युमीनियम फैक्ट्रियों को फायदा पहुंचाने के लिए उसके आयात पर भारी कर लगाए हैं, मेक्सिको और कनाडा के साथ व्यापार समझौतों में भारी फेरबदल किए हैं।

भारत के खिलाफ भी उनकी शिकायतों की लिस्ट लंबी रही है। वह कभी भारत में हार्ले डेविडसन मोटरसाइकिल के आयात पर लगने वाले टैक्स पर बरसे हैं तो कभी उसे 'टैरिफ किंग ' या कर-सम्राट का नाम दिया है। माना जा रहा है कि भारत को जीएसपी से बाहर करने के पीछे अमेरिकी चिकित्सा उपकरण बनाने वाली कंपनियों और डेयरी उद्दोग के दबाव की सबसे बड़ी भूमिका रही है। जहां उपकरण बनाने वाली कंपनियां भारत की ओर से कीमतों में कटौती से नाराज हैं वहीं डेयरी उद्योग की बरसों से ये शिकायत रही है कि भारत ने धार्मिक कारणों से उन उत्पादों पर रोक लगा रखी है जहां गायों और अन्य पशुओं के चारे में ब्लड प्लाज्मा और अन्य आंतरिक अंगों का इस्तेमाल होता है। इन शिकायतों के बाद ट्रंप प्रशासन ने भारत पर दबाव बनाने के लिए अप्रैल 2018 में जीएसपी कार्यक्रम की समीक्षा का एलान किया और जब साल के अंत में भारत के साथ व्यापार वार्ताओं का कोई हल नहीं निकला तभी से उसे जीएसपी से बाहर करने के एलान की आशंका जताई जाने लगी थी। जीएसपी के तहत अमेरिका ने भारत से आने वाले 3,700 प्रोडक्ट्स को कर-मुक्त कर रखा है जिसमें मोटर पार्ट, मंहगे गहने, इंसुलेटेड केबल इत्यादि शामिल हैं। ट्रंप के इस एलान के 60 दिनों के बाद यह छूट खत्म हो जाएगी।

भारत ने कहा है कि वह फिलहाल कोई जवाबी कार्रवाई नहीं करेगा। अधिकारियों का कहना है कि भारत ने इस सूची में से सिर्फ 1,784 सामानों के निर्यात में इस छूट का लाभ उठाया है और 2017 में उसका कुल मूल्य सिर्फ 19 करोड़ था। भारत अमेरिका को 48 अरब डॉलर से कुछ ज्यादा के सामानों का निर्यात करता है जबकि अमेरिका का निर्यात लगभग 25 अरब डॉलर का है यानी अमेरिका का व्यापार घाटा लगभग 23 अरब डॉलर का है। चीन के साथ अमेरिका का ये घाटा लगभग 300 अरब डॉलर का है और पिछले साल उसका कुल व्यापार घाटा 900 अरब डॉलर से भी ज्यादा का था। ऐसे में यदि अमेरिका भारत के साथ अपने व्यापार घाटे को बराबर भी कर लेता है तब भी उसके कुल घाटे में कोई बहुत बड़ा फर्क नहीं पडऩे जा रहा। यही वजह है कि कई जानकार ट्रंप के इस फैसले पर सवाल उठा रहे हैं। अंदाजा है कि इस छूट के खत्म होने से भारत के कुल निर्यात पर बहुत बड़ा असर तो नहीं होने जा रहा लेकिन इसकी मार छोटे उद्योगों पर ज्यादा पड़ेगी और चुनावी साल में यह मोदी सरकार के लिए शर्मिंदगी पैदा कर सकता है।

 

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