किसी को मियां-तियां या पाकिस्तानी कहना अपराध नहीं: सुप्रीम कोर्ट

Supreme Court on Miyan: न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने आरोपी हरि नंदन सिंह के खिलाफ मामला बंद करते हुए यह फैसला सुनाया, जिस पर आरोप था कि उसने एक सरकारी कर्मचारी को 'पाकिस्तानी' कहा था, जबकि वह अपना आधिकारिक कर्तव्य निभा रहा था।;

Update:2025-03-04 13:22 IST

Supreme Court  (photo: social media )

Supreme Court on Miyan: सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि किसी व्यक्ति को "मियां-तियां" या 'पाकिस्तानी' कहना भले ही गलत हो, लेकिन ये भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 298 के तहत धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने का अपराध नहीं बनता। शीर्ष अदालत ने इस प्रावधान के तहत एक आरोपी को आरोपों से मुक्त करते हुए कहा कि हालांकि ये टिप्पणी अनुचित थी, लेकिन आपराधिक मुकदमा चलाने के लिए कानूनी सीमा को पूरा नहीं करती।

क्या था मामला

न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने आरोपी हरि नंदन सिंह के खिलाफ मामला बंद करते हुए यह फैसला सुनाया, जिस पर आरोप था कि उसने एक सरकारी कर्मचारी को 'पाकिस्तानी' कहा था, जबकि वह अपना आधिकारिक कर्तव्य निभा रहा था।

न्यायालय ने अपने फैसले में कहा, "निस्संदेह, दिए गए बयान खराब स्वाद वाले हैं। हालांकि, यह शिकायतकर्ता की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के बराबर नहीं है। इसलिए, हमारा मानना है कि अपीलकर्ता को धारा 298 आईपीसी के तहत भी आरोपमुक्त किया जाना चाहिए।"

इस प्रकरण में शिकायतकर्ता सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत उर्दू अनुवादक और कार्यवाहक क्लर्क था। उसने अपीलीय प्राधिकारी के आदेश के बाद खुद जा कर आरोपी हरि नंदन सिंह को जानकारी दी थी। सिंह ने शुरू में दस्तावेजों को स्वीकार करने में अनिच्छा दिखाई, लेकिन अंततः उन्होंने स्वीकार तो किया लेकिन कथित तौर पर शिकायतकर्ता को उसके धर्म का हवाला देते हुए गालियां दीं। यह भी आरोप लगाया गया कि सिंह ने शिकायतकर्ता को अपनी ड्यूटी का पालन करने से रोकने के इरादे से उसके खिलाफ जोर जबर्दस्ती की और उसे डराया-धमकाया। इसके चलते सिंह के खिलाफ कई आईपीसी प्रावधानों के तहत एफआईआर दर्ज की गई, जिसमें धारा 298 (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना), 504 (शांति भंग करने के लिए जानबूझकर अपमान करना), 506 (आपराधिक धमकी), 353 (सरकारी कर्मचारी को ड्यूटी से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) और 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना) शामिल हैं। मामले की समीक्षा करने के बाद मजिस्ट्रेट ने धारा 353, 298 और 504 के तहत आरोप तय किए, जबकि सबूतों के अभाव में धारा 323 और 506 के तहत आरोपों को खारिज कर दिया।

कोर्ट के चक्कर

हरि नंदन सिंह की आरोपमुक्ति की याचिका को पहले सत्र न्यायालय और बाद में राजस्थान उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया, जिसके बाद उन्हें सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा।

क्या कहा सुप्रीमकोर्ट ने

सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि धारा 353 आईपीसी के तहत आरोप को बनाए रखने के लिए हमले या बल प्रयोग का कोई सबूत नहीं था और कहा कि उच्च न्यायालय ने इस प्रावधान के तहत आरोपी को आरोपमुक्त न करके गलती की। शीर्ष अदालत ने आगे कहा कि धारा 504 आईपीसी लागू नहीं होती क्योंकि हरि नंदन सिंह की ओर से ऐसा कोई कार्य नहीं किया गया जिससे शांति भंग हो सकती हो। धारा 298 के लिए, सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि सिंह की टिप्पणी अनुचित थी, लेकिन वे आईपीसी के तहत धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिए कानूनी रूप से उपयुक्त नहीं थीं। नतीजतन, सिंह को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया गया।

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