ईरानी तेल टैंकर में विस्फोट, बन सकते हैं युद्ध के हालात
वहीं जानकारों का मानना है कि ईरानी तेल टैंकर पर हुए विस्फोट से सऊदी अरब और ईरान के बीच विवाद बढ़ सकते हैं। बता दें कि इसके पहले भी ईरान में तेल के ठिकानों पर हमला हुआ था। जिससे ईरान के तेल ठिकाने ध्वस्त हो गए थे।
नई दिल्ली: सऊदी अरब के तट पर आज सुबह एक ईरानी तेल टैंकर में विस्फोट हुआ है। हालांकि अभी तक इस विस्फोट से हुए नुकसान की जानकारी नहीं मिल सकी है। वहीं जानकारों का मानना है कि ईरानी तेल टैंकर पर हुए विस्फोट से सऊदी अरब और ईरान के बीच विवाद बढ़ सकते हैं।
बता दें कि इसके पहले भी ईरान में 16 सितंबर को तेल के ठिकानों पर हमला हुआ था। जिससे ईरान के तेल ठिकाने ध्वस्त हो गए थे।
ये भी पढ़ें—खत्म होता पाक : तालिबान आतंकी की गिरफ्त में पाकिस्तान, बच्चें भी हो रहे शिकार
पहले भी हो चुका है हमला
सऊदी अरब के तेल ठिकानों पर हमले के बाद खाड़ी में संकट खड़ा हो गया है। इसके साथ ही अमेरिका और ईरान के बीच तनाव बढ़ गया है। हमले के बाद तेल उत्पादन क्षमता भी आधी रह गई है।
इन हमलों की जिम्मेदारी यमन स्थित शिया हूती विद्रोहियों ने ली थी, तो वहीं सऊदी का करीबी सहयोगी अमेरिका ने ड्रोन अटैक के लिए ईरान को जिम्मेदार ठहराया था, लेकिन ईरान ने इन आरोपों को खारिज कर दिया था। ईरानी सेना के एक सीनियर कमांडर ने तो यहां तक कहा था कि उनका देश अमेरिका के खिलाफ ‘पूर्ण युद्ध’ के लिए तैयार है।
ये भी पढ़ें— पाक आर्मी ने रक्षामंत्री राजनाथ सिंह का किया समर्थन, शस्त्र पूजा पर कही ये बड़ी बात
वहीं इस हमले के बाद ट्रंप ने एक ट्वीट में कहा, सऊदी अरब की तेल आपूर्ति पर हमला किया गया। हमें हमले के दोषी की जानकारी है, लेकिन हम सऊदी से इसकी पुष्टि होने का इंतजार कर रहे हैं। हमारी सेना पूरी तरह से तैयार है।
अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने दुनिया की सबसे बड़ी तेल आपूर्ति कंपनी पर हमले के लिए ईरान को जिम्मेदार ठहराया था। उन्होंने कहा कि इसका कोई सबूत नहीं है, कि हमला यमन से किया गया था। माइक पोम्पियो और सऊदी अरब ने सीधे तौर पर ईरान का नाम नहीं लिया था।
ये भी पढ़ें— ड्रोन हमले के लिए ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस ने ईरान को ठहराया जिम्मेदार
अमेरिका और ईरान के बीच परमाणु समझौते और आर्थिक प्रतिबंधों को लेकर पहले से ही तनाव है। ऐसे में सवाल ये उठ रहा है कि अगर ईरान ने ही इस हमले को अंजाम दिया तो उसने जानबूझकर इतना बड़ा जोखिम क्यों लिया और अब अमेरिका इसका जवाब कैसे देगा?