अंतरिक्ष में भारत की नई छलांग, सबसे वजनी राॅकेट GSLV मार्क 3 सफलतापूर्वक लॉन्च

इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाईजेशन (इसरो) का सबसे ताकतवर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल GSLV मार्क 3 डी-1 ने सोमवार (05 जून) को शाम 05:28 बजे पहली उड़ान भरी।

Update:2017-06-05 17:46 IST
अंतरिक्ष में भारत की नई छलांग, सबसे वजनी राॅकेट GSLV मार्क 3 सफलतापूर्वक लॉन्च

श्रीहरिकोटा: इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाईजेशन (इसरो) का सबसे ताकतवर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल GSLV मार्क 3 डी-1 ने सोमवार (05 जून) को शाम 05:28 बजे पहली उड़ान भरी। इसे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में भारत के रॉकेट बंदरगाह के दूसरे लॉन्च पैड से छोड़ा गया। इस उपलब्धि के बाद इसरो के वैज्ञानिक ख़ुशी से झूम उठे। ये अपने साथ एक हाथी के बराबर वजनी देश के सबसे भारी कम्युनिकेशन सैटेलाइट GSAT-19 (वजन 3136 किग्रा) को लेकर गया है। जिसे वह कक्षा में स्थापित करेगा।



फैट ब्वॉय सैटेलाइट

GSLV मार्क 3 का वजन 630 टन है और ऊंचाई करीब 42 मीटर है। इसका वजन 5 पूरी तरह से भरे बोइंग जम्बो विमान या 200 हाथियों के बराबर है। इसीलिए इसे फैट ब्वॉय सैटेलाइट कहा जा रहा है। यह 300 करोड़ की लागत से बना है। पहले यह रॉकेट मई के अंत में छोड़ा जाना था।

इसरो की इस उपलब्धि पर पीएम नरेंद्र मोदी और प्रेसिडेंट प्रणब मुखर्जी ने ट्वीट कर वैज्ञानिकों को बधाई दी।











43.43 मीटर लंबा और 640 टन वजनी यह रॉकेट 16 मिनट में अपनी यात्रा पूरी कर लेगा और पृथ्वी की सतह से 179 किलोमीटर की ऊंचाई पर जीसैट-19 को उसकी कक्षा में स्थापित कर देगा।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अनुसार, जीसैट-19 एक मल्टी-बीम उपग्रह है, जिसमें का एवं कू बैंड संचार ट्रांसपोंडर लगे हैं। इसके अलावा इसमें भूस्थैतिक विकिरण स्पेक्ट्रोमीटर (जीआरएएसपी) लगा है, जो आवेशित कणों की प्रकृति का अध्ययन एवं निगरानी करेगी और अंतरिक्ष विकिरण के उपग्रहों और उसमें लगे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन भी करेगा।

इस उपग्रह की कार्य अवधि 10 साल है। इसमें अत्याधुनिक अंतरिक्षयान प्रौद्योगिकी का भी इस्तेमाल किया गया है और यह स्वदेश निर्मित लीथियम ऑयन बैट्री से संचालित होगा।

वहीं जीएसएलवी मार्क-3 त्रिस्तरीय इंजन वाला रॉकेट है। पहले स्तर का इंजन ठोस ईंधन पर काम करता है, जबकि इसमें लगे दो मोटर तरल ईंधन से चलते हैं। रॉकेट का दूसरे स्तर का इंजन तरल ईंधन से संचालित होता है, जबकि तीसरे स्तर पर लगा इंजन क्रायोजेनिक इंजन है।



विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के निदेशक के. सिवन ने कहा, "रॉकेट की भारवहन क्षमता चार टन तक है। इस रॉकेट की भविष्य की उड़ानों में भारवहन क्षमता को और बढ़ाया जाएगा।" इसरो 2014 में क्रायोजेनिक इंजन से रहित इसी तरह का रॉकेट प्रक्षेपित कर चुका है, जिसका उद्देश्य रॉकेट की संरचनागत स्थिरता और उड़ान के दौरान गतिकी का अध्ययन करना था।

इसरो के अधिकारियों ने बताया कि रॉकेट के व्यास में विभिन्न स्तरों पर वृद्धि की गई है, जिसके चलते इसकी ऊंचाई कम की जा सकी, जबकि इसका भार काफी अधिक है। इसरो के एक अधिकारी ने कहा, "नया रॉकेट थोड़ा छोटा है, लेकिन इसकी क्षमता कहीं अधिक है।"

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