झारखंड का अपना ब्रांड: मिलेगा लाखों लोगों को रोजगार, जानें नाम

महिलाओं को रोज़गार से जोड़ना अभियान का उद्देश्य बताया गया है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पलाश को देश-दुनिया तक पहुंचाने का मन रखते हैं।

Update:2020-10-01 20:11 IST
महिलाओं को रोज़गार से जोड़ना अभियान का उद्देश्य बताया गया है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पलाश को देश-दुनिया तक पहुंचाने का मन रखते हैं।

रांची : टाटा, अमूल और लिज्जत पापड़ की मानिंद झारखंड सरकार भी अपने ब्रांड से बाज़ार में सामान बेचेगी। ब्रांड का नाम पलाश होगा जो झारखंड का राजकीय फूल भी है। ग्रामीण विकास विभाग ने इसकी पूरी तैयारी कर ली है। शुरूआत में खाने-पीने के सामान के साथ बाज़ार में इंट्री होगी।

उसके बाद अन्य प्रोडक्ट्स भी बाज़ार में उतारे जाएंगे। आशा ( ASHA) नाम से अभियान की शुरूआत की गई है। महिलाओं को रोज़गार से जोड़ना अभियान का उद्देश्य बताया गया है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पलाश को देश-दुनिया तक पहुंचाने का मन रखते हैं।

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पलाश को सफल बनाने में करें सहयोग

ब्रांड की सफलता के लिए ज़रूरी है कि, आम लोग अपनी खरीदारी में पलाश को तरजीह दें। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कहते हैं कि, वे खुद कोशिश करेंगे कि, उनके घर पर पलाश के सामानों का उपयोग हो। स्वदेशी अपनाना हमसभी का कर्तव्य है। लेकिन सवाल ये है कि, आम लोग सरकार की इस अपील पर कितना अमल करते हैं।

 

सोशल मीडिया से फोटो

17 लाख परिवारों को जोड़ने का लक्ष्य

झारखंड सरकार के ग्रामीण विकास विभाग ने अभियान से 17 लाख परिवारों को जोड़ने का लक्ष्य रखा है। सरकार का मानना है कि, महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में यह अभियान मील का पत्थर साबित होगा। इससे पहले विभाग की ओर से महिला सखी मंडलों को 600 करोड़ रूपए दिए गए हैं।

 

हड़िया-दारू एक अभिशाप

झारखंड में हड़िया-दारू का सेवन आम बात है। इस काम में खास तौर पर आदिवासी समाज की महिलाएं लगी हैं। नशे के इस कारोबार की वजह से कई परिवार उजड़ चुके हैं। लिहाजा, सरकार चाहती है ऐसी महिलाओं की पहचान कर उसे स्वरोज़गार के साथ जोड़ा जाए और मुख्यधारा में शामिल किया जाए।

आपको बता दें कि, रोज़ाना कमाने-खाने वाले लोग अपनी कमाई का ज्यादातर पैसा हड़िया-दारू में खर्च कर देते हैं। इससे जहां परिवार का भरन-पोषण मुश्किल हो जाता है वहीं नशे के कारोबार को बल मिलता है।

 

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झारखंड में मानव व्यापार

 

झारखंड प्राकृतिक संसाधनों के मामले में एक धनी प्रदेश है। हालांकि, इसकी कोख में ग़रीबी पलती है। झारखंड के कोयले से देश में रोशनी फैलती है लेकिन खुद झारखंड में अंधेरा रहता है। लिहाजा, इसका सीधा असर रोज़गार की उपलब्धता पर पड़ता है। रोज़ी-रोटी की तलाश में बड़ी संख्या में महिलाएं और कम उम्र की बच्चियों को दिल्ली समेत अन्य राज्यों में ले जाया जाता है।

काम के नाम पर ले जाने वाले एजेंट इनका शारीरिक शोषण भी करते हैं। वर्तमान सरकार खुद को आदिवासियों की हितैषी बताती है। लिहाजा, हेमंत सोरेन सरकार महिलाओं खासकर आदिवासी महिलाओं के उत्थान को प्राथमिकता की सूची में रखते हैं।

 

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झारखंड में रोज़गार के अवसर

 

झारखंड में भले ग़रीबी और बेरोज़गारी का आलम हो लेकिन सरकार आंकड़ों की बाज़ीगरी से बाज़ नहीं आती है। ग्रामीण विकास विभाग के मंत्री आलमगीर आलम की मानें तो लाक डाउन के दौरान राज्य सरकार ने 07 लाख 62 हज़ार लोगों को रोज़गार दिया है। विभागीय मंत्री कहते हैं कि, वर्तमान समय में हर रोज़ 06 लाख 50 हज़ार लोगों को रोज़गार के साथ जोड़ जा रहा है।

आदिवासी और झारखंड

 

जल, जंगल और ज़मीन के साथ ही आदिवासियों के नाम पर झारखंड का गठन हुआ। साल 2000 से लेकर अबतक तमाम सरकारों ने आदिवासियों का वोट तो लिया लेकिन विकास की रोशनी से दूर रखा। सत्ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा खुद को आदिवासियों के क़रीब तो बताती है लेकिन सत्ता पर काबिज होने के बाद भी सरकार रोज़गार समेत अन्य बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने में सफल नज़र नहीं आती है। हालांकि, सरकार इसके पीछे कोविड-19 महामारी का तर्क देती है।

रिपोर्टर शहनवाज रांची

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