Kargil Diwas 2019: तीन दिनों तक सरहद पर दुश्मनों से लड़ता रहा ये राइफलमैन

26 जुलाई को मनाया जाने वाले कारगिल दिवस की तैयारियां एक हफ्तें पहले से शुरू हो जाती हैं। यह दिवस कारगिल की लड़ाई में शहीद हुए जवानों की याद में मनाया जाता है। कारगिल युद्ध में शहीद हुए लखनऊ के बहुत से जांबाजों की कहानी आज हम आपको सुनाने जा रहे हैं।

Update:2019-07-23 19:33 IST
Kargil Diwas 2019: तीन दिनों तक सरहद पर दुश्मनों से लड़ता रहा ये राइफलमैन

नई दिल्ली : 26 जुलाई को मनाया जाने वाले कारगिल दिवस की तैयारियां एक हफ्तें पहले से शुरू हो जाती हैं। यह दिवस कारगिल की लड़ाई में शहीद हुए जवानों की याद में मनाया जाता है। कारगिल युद्ध में शहीद हुए लखनऊ के बहुत से जांबाजों की कहानी आज हम आपको सुनाने जा रहे हैं। जो देश के लिए शहीद हो गए। लखनऊ के ही इन सभी जांबाजों में सुनील नाम का जवान था, जिसकी जंग लड़ते समय उम्र बाकी लोगों से कम थी।

इंफेंट्री गोरखा राइफल्स का जवान

आपकों बताते हैं, सुनील जंग इंफेंट्री गोरखा राइफल्स का जवान था। राइफलमैन सुनील सिर्फ 8 साल की उम्र में ही फौजी बन गया था। ज़ी हां, वो ऐसे कि एक बार सुनील के स्कूल में फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। उस प्रतियोगिता में सुनील के साथी अलग-अलग रंग की आकर्षक ड्रेस पहनकर आए थे। और सुनील अपने पिता और दादा की तरह फौज की वर्दी पहनने की जिद कर रहा था।

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सुनील की जिद्द मां बीना ने पूरी करी। और उसको एक फौजी ड्रेस दिलाई। लेकिन सुनील का मन इससे भी नहीं भरा।

सुनील को फौजी ड्रेस के साथ एक बंदूक भी चाहिए थी। फिर मां ने प्लास्टिक की बंदूक दिलाई।

इसके बाद प्रतियोगिता के दिन सुनील एक के बाद एक कई देशभक्ति गीतों पर अपना शानदार प्रदर्शन करता रहा। वहां जब सुनील ने कहा कि मैं अपने खून का एक-एक कतरा देश की रक्षा के लिए बहा दूंगा। यह सुन लोग देशभक्ति के लिए भाव-भोर हो गए थे।

जब सुनील 16 साल का हुआ तो एक दिन घरवालों को बिना बताए ही अपने आप सेना में भर्ती हो गया। घर आकर सुनील ने बताया कि मां मैं भी पापा और दादा की तरह सेना में भर्ती हो गया हूं।

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सपना हुआ पूरा

उसने बताया, मुझे भी उनकी ही 11 गोरखा राइफल्स रेजीमेंट में तैनाती मिली है। आज जाकर मेरा बचपन का वर्दी पहनने का सपना पूरा हो गया।

मां बताती हैं कि कारगिल में जाने से पहले सुनील घर आया था। कुछ ही दिन रुका था कि यूनिट से बुलावा आ गया। सुनील ने मां से कहा कि अगली बार लंबी छुट्टी लेकर आऊंगा। राइफलमैन सुनील जंग को 10 मई 1999 को उसकी 1/11 गोरखा राइफल्स की एक टुकड़ी के साथ कारगिल सेक्टर पहुंचने के आदेश हुए।

वादा किया मां से ये...

सूचना इतनी ही मिली थी कि कुछ घुसपैठिए भारतीय सीमा के भीतर गुपचुप तरीके से प्रवेश कर गए हैं। तीन दिनों तक राइफलमैन सुनील जंग दुश्मनों का डटकर मुकाबला करता रहा। वह लगातार अपनी टुकड़ी के साथ आगे बढ़ रहा था कि 15 मई को एक भीषण गोलीबारी में कुछ गोलियां उनके सीने में जा लगीं।

इस पर भी सुनील के हाथ से बंदूक नहीं छूटी और वह लगातार दुश्मनों पर प्रहार करता रहा। तब ही ऊंचाई पर बैठे दुश्मन की एक गोली सुनील के चेहरे पर लगी और सिर के पिछले हिस्से से बाहर निकल गई। सुनील वहीं पर शहीद हो गया।

सुनील के दादा मेजर नकुल जंग ब्रिटिश दौर में गोरखा राइफल्स में शामिल हुए थे। जबकि पिता नर नारायण जंग महत भी सेना की गोरखा टुकड़ी में थे। पिता नर नारायण जंग के बाद बेटा सुनील भी उनके रास्ते पर चल पड़ा था। सुनील को घर में ही अपने जांबाज दादा और पिता से सेना में शामिल होने की प्रेरणा मिली।

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सुनील जंग की शहादत के बाद उस समय के कई बड़े नेता उनके घर आए। इन नेताओं में साहिब सिंह वर्मा सहित कई नाम शामिल हैं। इन नेताओं ने सुनील जंग के नाम पर कैंट में ही एक स्टेडियम बनाने, बहनों को नौकरी दिलाने और उनकी प्रतिमा लगवाने का आश्वासन दिया था। कारगिल युद्ध को 20 साल होने वाले हैं। लेकिन आज तक नेताओं के वायदे पूरे नहीं हुए।

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