तिरुवनंतपुरम। केरल को ‘गॉड्स ओन कंट्री’ यानी ईश्वर का अपना देश कहा जाता है। 2015 में मानव विकास पैमाने पर केरल को देश में सबसे उत्तम माना गया था। केरल में साक्षरता दर 03.91 फीसदी है जो भारत के अन्य राज्यों की तुलना में सबसे ज्यादा है। यही नहीं, केरल में औसत उम्र 74 वर्ष है जो भारत में सबसे बेहतर राज्यों में शुमार है। राज्य में बीपीएल ग्रामीण क्षेत्र में 9.14 तथा शहरी क्षेत्र में 4.97 फीसदी हैं।2011 की जनगणना के अनुसार केरल में 54.7 फीसदी हिन्दू, 26.6 फीसदी मुस्लिम और 18.4 फीसदी इसाई हैं।
लेकिन तमाम आंकड़ों से इतर केरल का एक भयानक चेहरा भी है-राजनीतिक हत्याओं का। सैकड़ों लोग राजनीतिक हमले-प्रतिशोध में मारे जा चुके हैं और इस मामले में सबसे कुख्यात जिला है-कन्नूर। केरल के मौजूदा हालात के मद्देनजर बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी ने दो अगस्त को संसद में कहा कि अब केरल ईश्वर का देश नहीं बल्कि ईश्वर द्वारा त्याग दिया गया देश है।
केरल में छिटपुट राजनीतिक हिंसा वैसे तो सभी जिलों में होती आई है, लेकिन कन्नूर में मारकाट रोजमर्रा की बात है। यहां राजनीतिक दल और व्यक्तिगत वजूद आपस में इस तरह घुलमिल गया है कि उसे अलग कर पाना मुमकिन नहीं है। यानी पार्टी से व्यक्ति है और व्यक्ति से पार्टी है। ऐसे में इंसानों को ही सीपीएम या आरएसएस मान लिया जाता है। ऐसे में किसी की हत्या होती है तो वह निर्दोष था या दोषी, इसका कोई मतलब नहीं रह जाता क्योंकि व्यक्ति की पहचान पार्टी से है, उसके दोषी या निर्दोष होने से नहीं।
केरल की राजनीति का अजीबोगरीब पहलू यह है, कि यहां पार्टी का सदस्य होना पैदाइश से ही तय हो जाता है। जैसे कि अगर कन्नूर में किसी सीपीएम कार्यकर्ता के घर में बच्चा जन्म लेता है तो यह मान लिया जाता है कि वह बच्चा सीपीएम का है। बड़ा होने पर वह राजनीति में हिस्सा ले या न ले, उस पार्टी को वोट दे या न दे, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। वह उसी पार्टी का ही माना जाता है। राजनीतिक हत्याओं के पीछे यही लॉजिक काम करती है।
कन्नूर का जातीय समीकरण
कन्नूर में निचली जाति का ‘थिय्या’ समुदाय बहुसंख्य है। इस समुदाय को अपनी ओर खींचने में सीपीएम भी लगा रहता है और आरएसएस भी। बाकी जिलों की तुलना में कन्नूर में संघ ओबीसी वर्ग में अपनी जगह बनाने में काफी हद तक कामयाब रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अस्सी के दशक तक संघ शहरी इलाकों में और सीपीएम ग्रामीण इलाकों तक बंटे हुए थे। इसके बाद जब सीपीएम ने शहरी इलाकों में और संघ ने ग्रामीण इलाकों में विस्तार शुरू किया तो टकराव बढऩे लगा। जब दोनों ग्रुप एक ही वर्ग और जाति को प्रभावित करने में जुटे तो बात बिगडऩे लगी।
1994में एसएफआई के नेता सुधीश की हत्या सबसे बड़ा कांड था। सुधीश को काट डाला गया था और उसके शरीर पर 32 घाव थे। विश्लेषक कहते हैं कि सिर्फ एक गोली या एक घाव से हत्या के बजाय शरीर को क्षतविक्षत करके हत्या करने के पीछे विपक्षी को खास संदेश देना मकसद होता है।
देश में सबसे ज्यादा ‘शाखाएं’ केरल में
कम्युनिस्ट पार्टी का गढ़ माने जाने वाले इस प्रदेश में सबसे ज्यादा संघ की शाखाएं (4600से ज्यादा) लगती हैं। देश में इमरजेंसी के बाद विशेषकर केरल में आरएसएस की शाखाओं में जबर्दस्त वृद्धि देखने को मिली। कम्युनिस्ट पार्टी से भारी संख्या में लोग शाखाओं में आने लगे। आज केरल में संघ की सबसे ज्यादा शाखाएं लगती हैं। जबकि गुजरात जहां बीजेपी का पंद्रह सालों से शासन है, वहां संघ की तकरीबन 3000 शाखाएं चलती हैं।
सियासी हत्याओं का दौर पांच दशक से ज्यादा पुराना
केरल में सियासी हत्याओं का दौर करीब पांच दशक से भी ज्यादा पुराना है। 1940 से ही केरल में संघ और कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच भिड़ंत देखी गयी है। आरएसएस कार्यकर्ताओं के मुताबिक 1948 में तिरुअनंतपुरम में गोलवलकर की एक सभा में हमला हुआ था। राजनीतिक हत्या के बदले में जवाबी हत्या केरल की सच्चाई है। उत्तरी केरल में सीपीएम का वर्चस्व ऐसा है कि कई गांवों को ‘पार्टी विलेज’ कहा जाता है।
संघ का विस्तार यहां तक भी हो चुका है और तमाम ऐसे गांवों में शाखाएं चलने लगी हैं। एक राजनीतिक विश्लेषक के मुताबिक सीपीएम का समावेश आम जीवन में कुछ इस तरह हो गया है कि गांव वालों को अपने घर की शादी में कांग्रेस या संघ समर्थक दोस्त तक को बुलाने की आजादी नहीं है। राज्य में जगह-जगह उन लोगों के स्मारक बनाए गए हैं जिनकी हत्याएं हुई हैं। मारे गये लोगों को हीरो या शहीद की तरह पेश कर दोनों ओर के क्रोध और जुनून को बरकरार रखा जाता है।
ताजा हिंसा
30 जुलाई को राजधानी तिरुवनंतपुरम में संघ के एक कार्यकर्ता राजेश (३४) की हत्या कर दी गई। बीजेपी ने इस हत्या के पीछे सीपीएम पर आरोप लगाया है। इस कांड के बाद केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन (जो खुद कन्नूर के हैं) ने एक बैठक भी बुलाई और बीजेपी व सीपीएम नेताओं से बात की। बैठक के बाद बीजेपी और सीपीएम ने कहा कि वे हिंसा के खिलाफ जागरूकता लाएंगे, जिलों में शांति वार्ता आयोजित की जाएगी ताकि आपसी संवाद बने।
=11 जुलाई 2016 की रात कन्नूर में सीपीएम नेता सी.वी. धनराज की हत्या। ढाई घंटे के अंदर ही बदले की कार्रवाई में बीजेपी कार्यकर्ता और ऑटो रिक्शा ड्राइवर रामचंद्रन की उसके ही घर में हत्या।
=12 मई 2017 को धनराज की हत्या के आरोपी बीजू की हत्या।
=11 जुलाई 2017 को धनराज की हत्या की बरसी पर सीपीएम कार्यकर्ताओं पर बम से हमला। थोड़ी देर बाद एक संघ कार्यालय में आगजनी। फिर दोनों पक्षों के 20 घरों में आग।
=20 अगस्त 2016 को बीजेपी के एक कार्यकर्ता की बम बनाते वक्त मौत।
=20 सितंबर २०१६ को थिल्लेनकेरी में बीजेपी कार्यकर्ता विनेश (२६) की हत्या। थोड़ी ही देर बाद सीपीएम के छात्र संगठन के जिजेश पर बम से हमला।
=10 अक्टूबर को पिदुविलाई के सीपीएम नेता के. मोहनन की हत्या और 24 घंटे के भीतर 19 साल के बीजेपी कार्यकर्ता रीमिथ की हत्या।
=30 जनवरी 2017 को कन्नूर में 63 साल के कांग्रेसी कार्यकर्ता पर हमला। उसी दिन बीजेपी के कार्यकर्ता की हत्या।
=केरल पुलिस के अनुसार 2000 से 2006 के बीच कन्नूर में 69 राजनीतिक हत्याएं हुई हैं। 31 संघ परिवार के मारे गए हैं और 30 सीपीएम के। पांच इंडियन मुस्लिम लीग के और 3 नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट के।
=एक रिपोर्ट के मुताबिक मई 2016 में सीपीएम की अगुवाई वाली एलडीएफ सरकार के सत्ता में आने के बाद से कन्नूर में राजनीतिक हिंसा के 400 मामले सामने आ चुके हैं। बीते तीन साल में राजनीतिक हिंसा में 30 फीसदी का इजाफा हुआ है। हिंसा के इन मामलों में सीपीएम के 600, आरएसएस-बीजेपी के 300 और कांग्रेस के 50 कार्यकर्ता गिरफ्तार हो चुके हैं।