किसान आंदोलन: क्या पाकिस्तान के बिछाए जाल में फंस गई है भाजपा
किसान आंदोलन में खालिस्तान समर्थकों की चर्चा शुरू होने के सोशल मीडिया ऑडिट ने इसका खुलासा किया है। केंद्र की मोदी सरकार के तीन कृषि कानूनों का पंजाब और हरियाणा के किसानों ने विरोध शुरू किया तो राजनीतिक तौर पर आंदोलन रोकने में नाकाम रही है।
अखिलेश तिवारी
लखनऊ। किसान आंदोलन में खालिस्तानी कनेक्शन को लेकर हंगामा मचाने वाली भारतीय जनता पार्टी क्या पाकिस्तानी सेना और उसकी खुफिया एजेंसी के बिछाए जाल में फंस गई है। किसान आंदोलन में खालिस्तान समर्थकों की चर्चा शुरू होने के सोशल मीडिया ऑडिट ने इसका खुलासा किया है। केंद्र की मोदी सरकार के तीन कृषि कानूनों का पंजाब और हरियाणा के किसानों ने विरोध शुरू किया तो राजनीतिक तौर पर आंदोलन रोकने में नाकाम रही है। भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने खालिस्तान कनेक्शन का जिक्र करते हुए हंगामा शुरू कर दिया।
भाजपा नेताओं ने टीवी डिबेट से लेकर अनेक मौकों पर दावा किया कि किसान आंदोलन को पाकिस्तान से समर्थन मिल रहा है। इसमें खालिस्तानी आंतकी ताकतें शामिल हो चुकी हैं। भाजपा नेताओं के इस बयान को सरकार की जांच एजेंसियों ने भी सही मान लिया है।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में भी यह दावा किया है कि किसान आंदोलन में खालिस्तानी घुस आए हैं। सरकार ने यह भी बताया कि इस तरह की रिपोर्ट देश की खुफिया एजेंसियों से मिल रही है। अब नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी एनआईए ने आंदोलन में शामिल किसान नेताओं और अन्य लोगों को नोटिस भेजकर जवाब मांगा है।
पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ने बिछाया था जाल, जिसमें फंसी भाजपा व केंद्र सरकार
सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों से फैक्ट चेक करने वाली वेबसाइट द डिसइंफोलैब ने किसान आंदोलन में खालिस्तान के लिंक की पड़ताल शुरू की तो चौंकाने वाली जानकारी मिली है। सोशल मीडिया और टीवी पर किसान आंदोलन में खालिस्तान लिंक की तलाश करने के दौरान पाया गया कि सबसे पहले इसकी शुरुआत पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के इशारे पर हुई।
पाकिस्तान सेना का मीडिया विंग आईएसपीआर है जिसने सबसे पहले खालिस्तान लिंक वाले मैसेज को सोशल मीडिया पर डाला। आईएसपीआर का काम भारत के खिलाफ दुष्प्रचार करना है और हर उस संगठन की सहायता करना भी है जो भारत के खिलाफ काम करते हैं।
खालिस्तान टाइगर फोर्स, बब्बर खालसा और सिख फॉर जस्टिस जैसे संगठन आईएसपीआर व आईएसआई की देन हैं। इनका पंजाब में कोई जनाधार नहीं है लेकिन पाकि स्तान की आर्थिक मदद से इन संगठनों का अस्तित्व बना हुआ है। पंजाब के किसानों ने जब सबसे पहले कृषि कानूनों का विरोध शुरू किया तो सिख फॉर जस्टिस संगठन ने ऐलान किया कि 15 अगस्त वाले दिन जो भी खालिस्तान का झंडा फहराएगा उसे लाखों रुपये का इनाम दिया जाएगा। उसकी इस अपील का पंजाब और हरियाणा में कहीं असर नहीं हुआ।
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इसके बाद पंजाब में जब किसानों का आंदोलन जोर पकडऩे लगा और किसान सडक़ पर उतरकर प्रदर्शन करने लगे तो आईएसपीआर के लिए काम करने वाली वीना मलिक ने एक निहंग सिख की खालिस्तान समर्थित फोटो सोशल मीडिया पर पोस्ट की। इस फोटो में निहंग के पीछे किसी गुरुद्वारे का चित्र साफ दिख रहा है हालांकि तब तक किसी भी गुरुद्वारे पर किसानों का प्रदर्शन नहीं हुआ था। इस पोस्ट में वीना मलिक ने लिखा कि सभी पंजाबी और भारत के लोगों को किसानों व अलग देश की मांग करने वाले सिखों का समर्थन करना चाहिए।
फैक्ट चेक करने वाली वेबसाइट का कहना है कि वीना मलिक की पोस्ट को आईएसपीआर ने भारत में फैलाया और भाजपा व उसके समर्थक ने इसे लपक लिया। उन्हें किसानों को बदनाम करने के लिए यह अच्छे मौके की तरह प्रतीत हुआ। बाद में खुफिया एजेंसियां भी भाजपा नेताओं की मंशा को भांपकर अपनी रिपोर्ट तैयार करने में जुट गईं। इससे साफ जाहिर है कि किसान आंदोलन में खालिस्तान कनेक्शन का जिक्र कर भाजपा और केंद्र सरकार दोनों ही पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी व सेना के बिछाए जाल में फंस गई है।]
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