Uniform Civil Code: समान नागरिक संहिता, जरूरी या गैर जरूरी? जानिए वो सब जो जानना चाहते हैं आप

Uniform Civil Code: संविधान का अनुच्छेद 44 देश के सभी नागरिकों के लिए एक जैसा कानून (यूनिफॉर्म सिविल कोड) लाने की अनुमति देता है। इसमें कहा गया है कि सरकार से अपेक्षित है कि वह धर्म, जाति, क्षेत्र और भाषा की परवाह किये बगैर सभी नागरिकों के लिए एक जैसा कानून लाये।

Update:2023-07-06 10:04 IST
देश में इन दिनों समान नागरिक संहिता पर घमासान मचा है। (फोटो- साभार सोशल मीडिया)

Uniform Civil Code: वर्ष 1978 में शाहबानो पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था। पति मोहम्मद खान ने उन्हें उस वक्त तलाक दिया जब उनकी उम्र 62 वर्ष थी। मोहम्मद खान ने दूसरी शादी कर ली। इतना ही नहीं पति ने गुजारा भत्ता भी देने से इनकार कर दिया। शाहबानो अपने 5 बच्चों को लेकर दर-दर भटकती रहीं। थक हारकर वह कोर्ट की शरण में पहुंचीं जहां न्यायालय ने पति को आदेश दिया कि अब से वह हर महीने शाहबानो को 25 हजार रुपए देगा। लेकिन, 1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मुस्लिम महिला (तलाक अधिकारों) अधिनियम संसद से पास करवा कर कोर्ट के आदेश को पूरी तरह बदल दिया था। इस अधिनियम के मुताबिक, तलाकशुदा मुस्लिम महिला को उसका पति केवल 90 दिन यानी 03 महीनों तक ही गुजारा भत्ता देने के लिए बाध्य होगा।

कोर्ट से केस जीतकर भी शाहबानो हार गईं। जीवन के अहम साल उन्होंने जिस पति के साथ गुजारा, बुढ़ापे में उसने पांच बच्चों की जिम्मेदारी शाहबानो पर लादकर उसने घर से बेघर कर दिया। शाहबानो ही नहीं ऐसे ढेरों उदाहरण आपको दिख जाएंगे, जहां मुस्लिम महिलाओं को तलाक का दंश आजीवन सालता रहा है। यहां तक दूसरे धर्म के भी कुछ लोगों ने वैवाहिक साथी से छुटकारा पाने के लिए अपना धर्म परिवर्तन कर दूसरी शादी कर ली। क्योंकि, शरीयत कानून उसे बहुविवाह की इजाजत देता है और यह कानूनन वैध भी है। आइये जानते हैं कि आखिर क्या है मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) और क्या है इस कानून में?

लंबा है शरीयत कानून का इतिहास


इतिहासकारों के मुताबिक, शरीयत कानून का इतिहास बहुत पुराना है जिसकी शुरुआत गयासुद्दीन बलबन के शासनकाल में हुई थी। अकबर ने 'दीन-ए-इलाही' के नाम से अलग मजहब की शुरुआत कर धार्मिक प्रथाओं में सामंजस्य स्थापित किया था। उस वक्त हिंदुओं और मुसलमानों के लिए अपने-अपने कानून थे, जिसमें कभी किसी ने कोई हस्तक्षेप नहीं किया। औरगंजेब ने एक कमीशन गठित कर औरंगजेब शरीयत कानून को मान्यता दी थी। अंग्रेजों ने भी इसमें ज्यादा छेड़छाड़ नहीं की। 1947 में भारत को ब्रिटिश हुकूमत से आजादी मिली। 1950 में भारत गणतंत्र बना और अपना संविधान अपनाया। इसमें धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया।

क्या है शरीयत कानून?


भारत के मुसलमानों के लिए अपना कानून है, जो विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, विरासत और दान आदि से संबंधित है। 1935 में यह कानून मौजूदा पाकिस्तान के सूबा सरहद (अब खैबर-पख्तूनख्वाह) में लाया गया था। 1937 के मुस्लिम पर्सनल लॉ एक्ट में लिखा है कि अगर दोनों पक्ष मुसलमान हों तो फैसला शरीयत के हिसाब से होगा, वरना देश का सामान्य कानून लागू होगा।

हिंदू भी कर सकते थे बहुविवाह


हमारे देश में वैसे तो जमीन की खरीद-फरोख्त, किरायेदारी और दीवानी जैसे मामलों में पहले से ही एक जैसा कानून है, लेकिन विवाह, उत्तराधिकार, वसीयत, दत्तक ग्रहण जैसे मामलों में अलग-अलग सम्प्रदायों के लिए अलग-अलग कानून हैं। मुस्लिम कानून में पहले से ही बेटियों का उत्तराधिकार था। ईसाई कानून में पुरुष को एक पत्नी रखने का अधिकार पहले से ही था। आजादी से पहले हिंदू पुरुष एक से अधिक शादियां कर सकता था लेकिन हिंदू विवाह अधिनियम के जरिए इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया। विवाद की स्थिति में पति और पत्नी को दोनों अलग-अलग सम्मानपूर्वक रहने का अधिकार दिया गया।

संविधान देता है एक जैसा कानून बनाने की अनुमति


संविधान के अनुच्छेद 44 में देश के सभी नागरिकों के लिए एक जैसा कानून (यूनिफॉर्म सिविल कोड) की सिफारिश की गई है। इसमें कहा गया है कि सरकार से अपेक्षित है कि वह धर्म, जाति, क्षेत्र और भाषा की परवाह किये बगैर सभी नागरिकों के लिए एक जैसा कानून लाये। व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जिसमें मानवीय मूल्य सुरक्षित हों। कोई दुखी न हो और वह सभ्य समाज के मानकों पर खरा उतरने वाला हो।

क्या है समान नागरिक संहिता?


समान नागरिक संहिता यानी सबके लिए एक जैसा कानून। इसके मुताबिक, देश में एक समान नागरिक संहिता बनाई और लागू की जायेगी और अलग-अलग धर्मों की कानूनी व्यवस्थाएं खत्म की जायेंगी। मतलब एक निष्पक्ष कानून जिसका किसी धर्म से ताल्लुक न हो। साधारण भाषा में समझें तो भारत में हर वाले हर व्यक्ति के लिए एक समान कानून, चाहे वह किसी भी जाति व धर्म का हो। इसके तहत शादी, तलाक और जमीन-जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होगा।

मानसून सत्र में यूसीसी पर फोकस?


देश में लंबे समय से समान नागरिक संहिता की मांग मुस्लिम पर्सनल लॉ कानून में सुधार का मुद्दा उठता रहा है। तीन तलाक पर कानून लाने वाली बीजेपी अब समान नागरिक संहिता कानून पर फोकस कर रही है और जल्द से जल्द वह इसे लागू कर देना चाहती है। सूत्रों की मानें तो 20 जुलाई से शुरू होने वाले संसद के आगामी मानसून सत्र में बीजेपी इसे पारित कराने की हर संभव कोशिश कर सकती। बीजेपी के कई नेता इसके समर्थन में अपने-अपने तर्क दे रहे हैं। मायावती सहित कुछ विपक्षी दलों ने भी इसका समर्थन किया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मोदी सरकार यूजीसो को इस बार संसद में पेश करेगी, इसकी संभावना नहीं के बराबर है। बीजेपी की कोशिश आगामी लोकसभा चुनाव तक इस मुद्दे को गरमाने की और इसे इलेक्शन के ठीक पहले पारित कराने की होगी, ताकि तीन तलाक की तरह इसका चुनावी फायदा लिया जा सकेगा।

क्या कहते हैं यूसीसी के समर्थक?


समर्थकों का कहना है कि समान नागरिक संहिता से भेदभावपूर्ण प्रथाएं खत्म होंगी और सभी नागरिकों के लिए समान अधिकार सुनिश्चित होंगे। इससे लैंगिक समानता, धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक एकजुटता को बढ़ावा मिलेगा। समर्थकों का यह भी मानना है कि यूसीसी राष्ट्रीय एकता को मजबूत करेगा और विविध धार्मिक समुदायों में सामंजस्य स्थापित करेगा। मामले पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का कहना है कि देश में यूसीसी लागू करने का समय आ गया है। इसे लागू करने में किसी भी तरह की देरी हमारे मूल्यों के लिये नुकसानदेह होगी। कई मुस्लिम समाज सुधारक भी शरीयत कानून में बदलाव की मांग कर रहे हैं।

क्यों कर रहे हैं यूसीसी का विरोध?


समान नागरिक संहिता के विरोधियों का तर्क है कि पर्सनल लॉ धार्मिक स्वतंत्रता और सांस्कृतिक पहचान का एक अभिन्न अंग हैं। एक समान संहिता लागू करने से अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों का उल्लंघन होगा और उनकी विशिष्ट पहचान पर बुरा असर होगा। वहीं, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि समान नागरिक संहिता न तो जरूरी है और न ही लोगों की चाहत। बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना खालिद सैफल्लाह रहमानी ने इस मामले में विधि आयोग को अपनी रिपोर्ट भेज दी है। उन्होंने कहा कि जिस तरह से मुसलमान नमाज, जकात, रोजा और हज के मामलों में शरीयत के नियमों का पालन करने के लिए पाबंद है। ठीक उसी तरह, सामाजिक मामले निकाह व तलाक, खुला, इद्दत, मीरास और विरासत आदि के मामले में करते रहना अनिवार्य है। जमीयत उलमा-ए-हिंद मौलाना अरशद मदनी ने कहाकि मुस्लिम पर्सनल लॉ कुरान और सुन्नत से बना है, इसलिए कयामत तक इसमें बदलाव नहीं हो सकता है।

यूसीसी के समर्थन में ये दल


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी यूनिफॉर्म सिविल कोड पर अपना रुख साफ करते हुए कहा है कि देश को दो कानून से नहीं चलाया जा सकता है। उद्धव ठाकरे गुट और और आम आदमी पार्टी ने यूसीसी का समर्थन किया है। जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा कि उनकी पार्टी और नीतीश कुमार समान नागरिक संहिता का विरोध नहीं कर रहे हैं, बल्कि चाहते हैं कि सबको साथ मिलाकर और सलाह-मशविरा करके यूसीसी पर आगे बढ़ना चाहिए। यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने कहा कि बसपा यूसीसी को लागू करने के खिलाफ नहीं है पर इसे जबरन थोपे जाने के पक्ष में नहीं है। बिना राजनीतिक उद्देश्य के आपसी सहमति के जरिये इसका रास्ता अपनाया जाना चाहिए।

विरोध कर रहीं ये पार्टियां


कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने कहा कि समान नागरिक संहिता को लोगों पर थोपा नहीं जा सकता। डीएमके ने कहा कि पहले इसे हिंदुओं पर लागू किए जाना चाहिए। भाजपा के यूसीसी के मामले पर अपना विरोध जताते हुए कहा कि भारत में नागरिक कानून आस्था, विश्वास, जाति और रीति-रिवाजों से प्रभावित हैं जो विभिन्न धर्मों के लिए अलग-अलग हैं। इसलिए सामाजिक ताने-बाने की रक्षा के लिए इस विविधता को बनाए रखना आवश्यक है।

Tags:    

Similar News