लोकसभा चुनाव : कहीं महंगा न पड़ जाए सपा का दांव

Update: 2019-05-17 08:26 GMT

संदीप अस्थाना

आजमगढ़: समाजवादियों के गढ़ आजमगढ़ में राजनीति की दिशा बदली हुई है। साथ ही यहां की समाजवादी राजनीति के सामने संकट उत्पन्न हो गया है। यह संकट खुद समाजवादियों ने ही पैदा किया है और यह संकट बना है जाति विशेष की राजनीति से। २०१९ के लोकसभा चुनाव में ऐसा समाजवादी पार्टी के अति उत्साह के कारण हुआ। अखिलेश यादव द्वारा यहां से चुनाव लडऩे की घोषणा के बाद जिले के बड़े सपा नेताओं ने यह कहना शुरू कर दिया कि केवल यादव, मुस्लिम व मायावती के खास दलित वोटों के बूते ही हम ऐतिहासिक मतों से चुनाव जीत लेंगे, अन्य किसी तबके के वोट की जरूरत ही नहीं है। अपने कथन के प्रमाण के रूप में ये नेता सपा व बसपा को मिले वोट को जोड़ते हुए उसमें से भाजपा का वोट घटाकर शेष बचे वोटों से अपनी जीत बताने लगे। इन नेताओं ने यह नहीं सोचा कि पिछले चुनाव में मुलायम सिंह यादव को सवर्ण व अति पिछड़ा समाज ने भी वोट किया था। सपा नेताओं की बयानबाजी के कारण अन्य समाज के लोगों ने सपा से दूरी बना ली है।

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गोपालपुर की एक सार्वजनिक सभा में सपा विधायक नफीस अहमद ने 'हाथी, लाठी, 786' का नारा देते हुए कहा कि हमें इन तीन के अलावा अन्य किसी के वोट की जरूरत ही नहीं है। यही तीन वोट अखिलेश यादव को ऐतिहासिक जीत दिला देंगे। उसी समय पूर्व मंत्री वसीम अहमद ने नफीस अहमद की बातों का खंडन करते हुए कहा कि ऐसा नहीं है। इस जिले के सभी तबके के लोग समाजवादी हैं और हमें सबकी जरूरत है। किसी को नजरअंदाज करके चुनाव नहीं जीता जा सकता है। इसके विपरीत नफीस के पहले ही तमाम बड़े नेताओं ने पार्टी के केन्द्रीय चुनाव कार्यालय पर बैठकर इस नारे को बुलन्द कर दिया था और सार्वजनिक सभा में नफीस के यह नारा बुलन्द करने के साथ ही सपा का आम कार्यकर्ता भी यही नारा लगाने लगा। यही वजह रही कि सामाजिक विघटन पैदा हुआ। अब कहा जा रहा है कि सपा का यह दांव कहीं महंगा न पड़ जाए।

इस जिले में यादव, मुस्लिम व दलित 49 फीसदी तथा अन्य सभी 51 फीसदी हैं। दलितों में पासी, खटिक सहित कई ऐसी जातियां हैं जो इस जिले में बड़ी संख्या में हैं और वह भाजपा के वोटर हैं। यहां सपा इसलिए हमेशा जीतती रही है, क्योंकि सवर्णों के साथ-साथ हर तबका परम्परागत रूप से सपा को वोट देता रहा है। सपाइयों नेे इस बार सामाजिक विघटन पैदा करके लोगों को छिटका दिया।

जिले में मुस्लिम प्रतिनिधित्व वाले संगठन उलेमा कौंसिल का रुख भी इस चुनाव में भाजपा के प्रति नरम ही दिखा। उलेमा कौंसिल भी गठबंधन में अपनेे लिए जगह चाहती थी, लेकिन गठबंधन ने कोई रुचि नहीं दिखाई। ऐसी स्थिति में उलेमा कौंसिल के राष्ट्रीय अध्यक्ष आमिर रशादी यह बयान देने लगे कि कांग्रेस, सपा व बसपा मुसलमानों को केवल वोट बैंक समझते हैं। उनके इस बयान के बाद उलेमा कौंसिल के कार्यकर्ता सोशल मीडिया पर सक्रिय हो गए और यह टिप्पणी करने लगेे कि यदि सपा, बसपा व कांग्रेस को वोट देना है तो उससे अच्छा मुसलमान भाजपा को वोट दें।

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आजमगढ़ में पीएम नरेन्द्र मोदी का भाषण व तीन तलाक का मामला भी रंग दिखा गया है। अपनी जनसभा में मोदी ने कहा कि गैरभाजपाई सरकारों ने आजमगढ़ के माथे पर कलंक लगाने का काम किया है। उनकी सरकार में इस जिले का कोई भी नौजवान आतंकी गतिविधियों में आरोपित नहीं किया गया। मोदी के इस बयान से मुसलमानों में भाजपा के प्रति रुझान दिखाई पड़ा है। इसके अलावा तीन तलाक मुद्दे को लेकर मुस्लिम महिलाओं का वोट भी भाजपा की तरफ गया है। वोट पडऩे के बाद कुछ मुस्लिम परिवारों में पति-पत्नी के बीच विवाद की खबरें भी हैं। कुल मिलाकर मुस्लिम मतों का एक हिस्सा भी भाजपा को गया है।

निरहुआ का निर्विवाद चेहरा भी रहा सवर्ण एकता की वजह

यह पहला ऐसा चुनाव रहा, जिसमें सवर्ण एकता साफ नजर आई। इसके पहले ब्राह्मण जहां होता था, वहां क्षत्रिय नहीं होता था। भूमिहार कहीं होता था तो कायस्थ कहीं होता था। इस चुनाव में ऐसा नहीं रहा। सभी पूरी तरह से केसरिया रंग में रंगे दिखाई पड़े। इसके लिए भाजपा प्रत्याशी दिनेश लाल यादव निरहुआ के निर्विवाद चेहरे को श्रेय दिया जा सकता है। सभी सवर्ण जातियों के अलावा अति पिछड़े व अति दलित की सभी जातियां भी एक मंच पर रहीं। इन स्थितियों में निश्चित तौर पर यह कहा जा सकता है कि जीत व हार का अंतर काफी कम होगा।

लालगंज में स्थिति अलग रही

आजमगढ़ जिले की दूसरी संसदीय सीट लालगंज सुरक्षित पर भाजपा ने अपना ही नुकसान करा लिया। कारण यह कि मौजूदा भाजपा सांसद नीलम सोनकर पांच साल तक लोगों के बीच गईं ही नहीं, विकास कार्य करना तो दूर की बात है। इसी वजह से जनता के साथ भाजपा कार्यकर्ताओं में ही उनके प्रति गुस्सा था। कार्यकर्ता खुले रूप में अपने गुस्से का इजहार कर चुके थे और वह चाहते थे कि किसी अन्य को उम्मीदवारी दे दी जाए। कई लोग टिकट के लिए लाइन में लगे भी हुए थे। बावजूद इसके यहां भाजपा ने अपने पुराने चेहरे पर दांव आजमाया।

 

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