जूली के मटुकनाथ: पहुंच गए इनके लिए सात समंदर पार, ठान ली वापस लाने की

मटुकनाथ ने कहा कि उन्होंने जूली से प्यार किया है और वो उन्हें किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहते हैं। पिछले दिनों जूली के एक संदेश ने उन्हें त्रिनिदाद एंड टोबैगो के सेंटगस्टीन तक जाने को मजबूर कर दिया। सात मार्च को वहां पहुंचकर उन्होंने बताया कि वे जल्द ही जूली को लेकर पटना लौटेंगे।

Update:2020-03-16 16:04 IST

नई दिल्ली: लवगुरु प्रोफेसर मटुकनाथ अपने से आधी उम्र की छात्रा से प्यार और फिर शादी करने वाले आज फिर से चर्चा में हैं और इस बार इस अनोखी लव स्टोरी में नया मोड़ आ गया है। बता दें कि मटुकनाथ अपनी बीमार जूली को लाने सात समुंदर पार यानि टोबैगो पहुंच गए हैं और वो अगले सप्ताह अपनी जूली को लेकर पटना पहुंचेंगे।

किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहते हैं जूली को

मटुकनाथ ने कहा कि उन्होंने जूली से प्यार किया है और वो उन्हें किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहते हैं। पिछले दिनों जूली के एक संदेश ने उन्हें त्रिनिदाद एंड टोबैगो के सेंटगस्टीन तक जाने को मजबूर कर दिया। सात मार्च को वहां पहुंचकर उन्होंने बताया कि वे जल्द ही जूली को लेकर पटना लौटेंगे। जूली पूरी तरह स्वस्थ हो जाएंगी।

लवगुरु ने कहा कि गृहस्थ से होकर ही संन्यास तक का रास्ता जाता है। इसके विपरीत जूली बिना गृहस्थ आश्रम जिए संन्यास की ओर चल पड़ीं। उनके स्वास्थ्य खराब होने की यह सबसे बड़ी वजह रहीं। जूली फिर से गृहस्थ आश्रम में जीवन जीना चाहती हैं और इस वजह से उन्होंने पटना वापस लाने का संदेश भेजा था।

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जूली का मानसिक और शारीरिक अस्वस्थ थीं

प्रो. मटुक नाथ ने बताया कि दरअसल जूली का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य खराब चल रहा था। मीडिया में जूली को उनके हाल पर छोड़ने की खबरों का खंडन करते हुए प्रो. मटुकनाथ ने कहा कि उनके प्रति शत्रु भाव रखने वाले लोगों ने ऐसा प्रचारित करने की कोशिश की लेकिन जूली को वापस लाने पर उनका जवाब उन्हें मिल जाएगा। वे अपने शुभचिंतकों को बताना चाहते हैं कि जूली अब चल-फिर रही हैं। खाना-पीना सामान्य हो चुका है और जल्द ही पटना में रहकर स्वास्थ्य लाभ करेंगी।

जूली 2014 से ही वैराग्य का भाव आ गया था

यादों के पन्ने पलटते हुए प्रो. मटुकनाथ ने कहा कि जूली को उन्होंने छोड़ा नहीं था बल्कि वे उनकी निजी स्वतंत्रता के समर्थक थे। लवगुरु ने बताया कि जूली के भीतर वैराग्य का भाव 2014 से ही दिखने लगा था। वे भजनों पर नृत्य करती थीं और चिंतन-मनन में लीन रहती थीं। वर्ष 2016 तक वे आध्यात्मिक वातावरण में डूबने के लिए पटना से कभी-कभार वृंदावन, होशियारपुर व बाकी धर्मस्थलों पर जाया करती थीं।

वैराग्य की ओर जूली का झुकाव उन्होंने वर्ष 2016 के आरंभ में देखा। उन्होंने जूली को सलाह दी कि वो चाहें तो निश्चिंत भाव से वैराग्य जी सकती हैं। बकौल प्रो. मटुकनाथ, जूली के मानसिक स्वास्थ्य पर वर्ष 2016 के बाद ही असर होना शुरू हुआ।

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अचानक जूली का फोन आना बंद हो गया

जूली पटना से मटुकनाथ का घर छोड़कर ईश्वर में ध्यान लगाने वृंदावन समेत दर्जनों जगहों पर भ्रमण करती रहीं। प्रो. मटुकनाथ ने बताया कि इस बीच वे फोन के जरिए संपर्क में भी रहीं लेकिन अचानक जूली का फोन आना बंद हो गया। बाद में उन्हें जानकारी मिली कि वे अस्वस्थ हालत में त्रिनिदाद एंड टोबैगो पहुंच गई हैं। वे किसी को जीवित बुद्ध मानने लगी थीं और उनका अनुसरण करते हुए यहां इस हालत तक पहुंच गईं।

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