Maharashtra Politics: महाराष्ट्र में अब बाल ठाकरे की विरासत की जंग, शिंदे और उद्धव ठाकरे आमने-सामने
Maharashtra Politics: सीएम बनते ही शिंदे ने अपने टि्वटर अकाउंट की तस्वीर भी बदल डाली। नई प्रोफाइल पिक्चर में शिंदे बाल ठाकरे के चरणों में बैठे दिखाई दे रहे हैं।
Maharashtra Politics: महाराष्ट्र में पिछले कई दिनों से चल रही सियासी उठापटक का गुरुवार को नाटकीय पटाक्षेप हुआ। शिवसेना (Shiv sena) प्रमुख उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंकने वाले एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की कमान संभाल ली है जबकि बागियों को मनाने में नाकाम रहे उद्धव ठाकरे पूरी तरह अलग-थलग पड़ गए हैं। बगावत के बाद से ही शिंदे शिवसेना संस्थापक बाला साहेब ठाकरे के दिखाए हिंदुत्व के रास्ते पर चलने की बात कह रहे हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के पहले भी बाल ठाकरे का नाम लेकर अपने इरादे साफ कर दिए हैं।
सीएम बनते ही शिंदे ने अपने टि्वटर अकाउंट की तस्वीर भी बदल डाली। नई प्रोफाइल पिक्चर में शिंदे बाल ठाकरे के चरणों में बैठे दिखाई दे रहे हैं। दूसरी ओर फेसबुक लाइव के दौरान मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे का ऐलान करते हुए उद्धव ठाकरे ने भी बाल ठाकरे के रास्ते पर चलकर शिवसेना को मजबूत बनाने की बात कही है। सियासी जानकारों का मानना है कि अब शिंदे और उद्धव ठाकरे के बीच आने वाले दिनों में बाल ठाकरे की विरासत की जंग और तेज होगी। अब यह देखने वाली बात होगी कि कौन इस जंग में भारी पड़ता है।
सियासी उठापटक का नाटकीय पटाक्षेप
महाराष्ट्र की सियासत में गुरुवार का दिन कई नाटकीय घटनाक्रमों से भरा हुआ था। पहले मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा करके सबको चौंका दिया। उन्होंने कहा कि वे सरकार को बाहर से पूरी तरह समर्थन देंगे। फडणवीस के बयान के बाद शिंदे ने पीएम नरेंद्र मोदी, अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के प्रति आभार जताया। उन्होंने महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन के लिए फडणवीस की भूमिका की भी तारीफ की। सबके लिए शिंदे के मुख्यमंत्री बनने की खबर चौंकाने वाली थी मगर फिल्म का क्लाइमैक्स अभी बाकी था।
बाद में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की ओर से निर्देश मिलने के बाद फडणवीस डिप्टी सीएम बनने के लिए राजी हुए। इस खबर ने सबको और चौका दिया क्योंकि फडणवीस मुख्यमंत्री के रूप में पांच वर्ष की पूरी पारी खेल चुके हैं। हालांकि वे इस फैसले से भीतरी तौर पर खुश नहीं बताए जा रहे हैं। पार्टी नेतृत्व की ओर से निर्देश बनने के बाद फडणवीस के पास कोई चारा नहीं बचा और आनन-फानन में राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने शिंदे को मुख्यमंत्री और फडणवीस को डिप्टी सीएम पद की शपथ दिलाई।
अब बाल ठाकरे की विरासत की जंग
सियासी जानकारों का मानना है कि महाराष्ट्र में असली जंग अब शुरू हुई है। प्रदेश में सियासी हालात पूरी तरह बदल चुके हैं और शिंदे ने उद्धव ठाकरे को संदेश दिया है कि वे बाला साहेब ठाकरे की विरासत को लेकर ही आगे बढ़ेंगे। अपने ट्विटर अकाउंट पर बाल ठाकरे के साथ तस्वीर लगा कर उन्होंने पहला कदम बढ़ा दिया है।
उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत के बाद से ही शिंदे खुद को सच्चे शिवसैनिक बताते रहे हैं और उनका यह भी कहना है कि वे शिवसेना से अलग नहीं हुए हैं। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उन्होंने कहा है कि वे बाल ठाकरे के दिखाए हिंदुत्व के मार्ग पर आगे बढ़ते हुए शिवसेना को मजबूत बनाने की कोशिश करेंगे। शिंदे का कहना है कि पार्टी के दो तिहाई से अधिक विधायक उनका समर्थन कर रहे हैं और ऐसे में असली शिवसेना उनके साथ है।
उद्धव ठाकरे के सामने कई चुनौतियां
दूसरी ओर उद्धव ठाकरे हारे और थके हुए नायक की तरह दिख रहे हैं। उनके सामने अपनी ही पार्टी में प्रभुत्व खत्म होने का बड़ा खतरा पैदा हो गया है। उनके ऊपर एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन करके शिवसेना की कट्टर हिंदुत्व की विचारधारा को छोड़ देने का बड़ा आरोप लगाया जा रहा है।
बागी विधायकों का कहना है कि ठाकरे से बार-बार एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन तोड़ने की मांग की गई मगर उन्होंने इस मांग पर कभी ध्यान नहीं दिया। उद्धव ठाकरे कभी इस सच्चाई को समझ ही नहीं सके कि एनसीपी और कांग्रेस दोनों दल शिवसेना को समाप्त करने की कोशिश में जुटे हुए थे। इसीलिए उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत का रास्ता अपनाना पड़ा। अब शिंदे समेत सभी बागी विधायकों का कहना है कि वही असली शिवसेना से जुड़े हुए हैं और उनका एजेंडा हिंदुत्व के मार्ग पर चलते हुए शिवसेना को मजबूत बनाना है।
कई मोर्चों पर लड़नी होगी लड़ाई
ऐसे में पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के सामने कई चुनौतियां पैदा हो गई हैं। मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देते समय ठाकरे ने घोषणा की थी कि अब उनका मकसद शिवसेना को मजबूत बनाना है। उन्होंने पार्टी कार्यालय में नियमित बैठने और पार्टी नेताओं से चर्चा करके संगठन को मजबूत बनाने की दिशा में कदम उठाने की भी घोषणा की थी। वैसे उनके लिए आगे की राह काफी मुश्किल मानी जा रही है। उन्हें कई मोर्चों पर एक साथ लड़ाई लड़नी है।
उनके लिए कानूनी लड़ाई लड़ना, बाल ठाकरे की विरासत को बचाना और शिवसैनिकों में नए उत्साह का संचार करना आसान काम नहीं साबित होगा। हालांकि मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने से पहले ही ठाकरे को इस बात का एहसास हो चुका था और इसीलिए उन्होंने आखिरी कैबिनेट बैठक में औरंगाबाद और उस्मानाबाद का नाम बदलकर बड़ा हिंदुत्व कार्ड खेला।
शिवसेना की ओर से यह मांग काफी दिनों से की जा रही थी मगर ठाकरे ने जब यह कदम उठाया तब तक काफी विलंब हो चुका था। अब यह देखना काफी दिलचस्प होगा कि उद्धव बाल ठाकरे की विरासत को बचाने और शिवसेना पर अपना प्रभुत्व कायम रखने में कामयाब हो पाते हैं या एकनाथ शिंदे का गुट उन पर भारी पड़ता है।