2019 लोक सभा इलेक्शन :चुनावी यज्ञ में मूल मुददों का हवन

हालांकि धरातल पर लगभग सभी पार्टियों ने अपने घोषणापत्र का अनुसरण करने के बजाय वहीं परंपरागत तरीकों पर काम करना शुरू कर दिया है और मूल मुद्दों की बता करने के बजाय जातिगत और धार्मिक आधार पर वोट करने की अपील भी शुरू कर दी है।

Update:2019-04-09 14:19 IST

लखनऊ: लोकसभा चुनाव के लिए सभी प्रमुख राजनीतिक दलों का घोषणापत्र जारी हो चुका है। इसमे देश की सबसे बडी पार्टियों कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी ने अपने घोषणापत्र में किसान, रोजगार , शिक्षा व स्वास्थ्य को प्रमुखता दी है।

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हालांकि धरातल पर लगभग सभी पार्टियों ने अपने घोषणापत्र का अनुसरण करने के बजाय वहीं परंपरागत तरीकों पर काम करना शुरू कर दिया है और मूल मुद्दों की बता करने के बजाय जातिगत और धार्मिक आधार पर वोट करने की अपील भी शुरू कर दी है।

बसपा प्रमुख मायावती ने देवबंद की जनसभा इसकी पहल की और आम जनता से जुडे मुद्दों को उठाने की जगह एक धर्म विशेष के लोगों से सपा-बसपा व रालोद गठबंधन को वोट देने का आहवान कर दिया।

हालांकि चुनाव आयोग ने मायावती के बयान का संज्ञान ले लिया है लेकिन इससे पहले चरण के चुनाव के साथ ही मजहबी आधार पर मतो का ध्रुवीकरण शुरू हो गया है।

सियासी महायज्ञ के इस धार्मिक हवन में ध्रुवीकरण की चाह रखने वाली भाजपा ने मायावती के इस बयान को तुरंत लपक लिया और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इसमे आहूति डालने में देर नहीं की।

योगी ने मायावती के बयान को ही आगे बढाते हुए कहा कि मायावती को केवल मुसलमानों के वोट चाहिए लिहाजा बाकी सभी लोक भाजपा को वोट करे।

केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि जातीय आधार पर भी वोट मांगने में कोई पार्टी पीछे नहीं है। इसकी शुरूआत तो पार्टियों के टिकट वितरण से ही शुरू हो गयी । लोकसभा क्षे़त्र में जातीयों के संख्याबल के मुताबिक टिकट वितरण किए जा चुके है।

जातीय आधार वाली गठबंधन की पार्टियां सपा-बसपा और रालोद के साथ-साथ सब का साथ सब का विकास का नारा देने वाली भाजपा भी इसमे पीछे नहीं है। भाजपा प्रत्याशियों की सूची देखे तो साफ पता लग जायेगा कि टिकट वितरण पूरी तरह से जातिगत आधार पर किया गया है। भाजपा को पता है कि मुस्लिम वर्ग उसका विरोधी है, इसीलिए भाजपा की यूपी की प्रत्याशी सूची में एक भी मुस्लिम का नाम नहीं है।

दरअसल राजनीतिक दलों को भी यह बखूबी मालूम है कि मुददों की बाते केवल घोषणापत्रों में ही अच्छी लगती है लेकिन इनसे धर्म और जाति के खांचे में बंटे भारतीय समाज में चुनावी बाजी नहीं जीती जा सकती है।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी भले ही विकास की राजनीति करने का दावा करती हो लेकिन उसने भी अपने घोषणापत्र से राम मंदिर निर्माण के वादे को हटाने का जोखम नहीं उठाया।

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