Rashid Engineer: तिहाड़ जेल में भूख हड़ताल पर बैठे सांसद राशिद इंजीनियर, जानें केंद्र सरकार पर किस बात से हैं नाराज
Rashid Engineer: तिहाड़ जेल में बंद सांसद रशीद इंजीनियर भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं।;
Rashid Engineer: बारामुल्ला से सांसद इंजीनियर राशिद ने 31 जनवरी से तिहाड़ जेल में भूख हड़ताल पर बैठने का ऐलान किया था, जो उनके संसद सत्र में भाग न लेने को लेकर असंतोष का परिणाम था। उनका कहना था कि वह सांसद होने के बावजूद संसद के बजट सत्र में शामिल नहीं हो पा रहे हैं, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया का उल्लंघन है। इसके बाद आवामी इत्तेहाद पार्टी (AIP) के कई कार्यकर्ताओं ने उनके समर्थन में एक दिवसीय भूख हड़ताल का आयोजन किया।
इंजीनियर राशिद की गिरफ्तारी के बाद से उनकी रिहाई की मांग तेज हो गई है, और पार्टी के कई नेताओं व कार्यकर्ताओं ने इस मुद्दे पर अपना विरोध जताया। AIP कार्यकर्ताओं ने शुक्रवार को संगरमल शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में एकत्रित होकर भूख हड़ताल करने का निर्णय लिया था। हालांकि, जिला प्रशासन ने उनके धरने के आवेदन को खारिज कर दिया, जिसके बाद कार्यकर्ताओं ने भूख हड़ताल करने का निर्णय लिया।
कार्यकर्ताओं को पुलिस ने लिया हिरासत में
पुलिस ने कार्रवाई करते हुए कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया और उन्हें वाहनों में भरकर कोठीबाग पुलिस स्टेशन ले जाया गया। इस दौरान लंगेट विधायक शेख खुर्शीद ने कहा कि इंजीनियर राशिद को संसद सत्र में हिस्सा लेने से रोकना लोकतंत्र की हत्या है। उन्होंने आरोप लगाया कि राशिद को साढ़े पांच साल से जेल में रखा गया है, और वह अपनी वैध भूमिका निभाने से वंचित हैं। इंजीनियर राशिद, जो बारामुल्ला से 2019 में लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बने थे, ने जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद गनी लोन को हराया था। उनके समर्थक इस बात को लेकर गुस्से में हैं कि उन्हें संसद सत्र में भाग लेने की अनुमति नहीं दी जा रही है।
राशिद की रिहाई तक आंदोलन जारी
शेख खुर्शीद ने आगे कहा कि इंजीनियर राशिद के साथ एकजुटता दिखाने के लिए AIP कार्यकर्ताओं ने भूख हड़ताल पर बैठने का निर्णय लिया था, ताकि सरकार पर दबाव डाला जा सके। उनका कहना था कि यह आंदोलन तब तक जारी रहेगा जब तक राशिद की रिहाई और संसद सत्र में भागीदारी की अनुमति नहीं दी जाती। सांसद राशिद की जेल में भूख हड़ताल ने राजनीतिक हलकों में एक नया विवाद खड़ा कर दिया है, और यह मुद्दा जम्मू-कश्मीर के स्थानीय राजनीति से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक चर्चा का विषय बन गया है।