सहारनपुर: मुस्लिम पर्सनल लॉ में दखलंदाजी करते हुए तीन तलाक पर अध्यादेश लाने के बाद अब केंद्र की भाजपा सरकार बहुविवाह और हलाला निकाह को संविधान पीठ में चुनौती देगी। सरकार द्वारा लगातार मुस्लिम पर्सनल लॉ में दखलअंदाजी से खिन्न उलेमा ने शनिवार को दो टूक कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में कोई भी बदलाव किसी सूरत में कुबूल नहीं किया जाएगा।
केंद्र सौंप सकता है संविधान पीठ को मामला
केंद्र की मोदी सरकार मुस्लिम पर्सनल लॉ में हस्तक्षेप करने के बाद एक बार फिर बदलाव करने जा रही है। सरकार निकाह हलाला एवं बहू विवाह पर कानून बनाने के लिए संविधान पीठ को मामला सौंप रही है। सरकार के इस कदम के बाद सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ आने वाले दिनों में बहु विवाह और निकाह हलाला की कानूनी वैधता की पड़ताल करेगी।
सरकार द्वारा मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में हस्तक्षेप किये जाने पर कड़ी नाराजगी जताते हुए उलेमा ने एक बार फिर दोहराया कि मुसलमान शरीयत के कानून में बदलाव कुबूल नहीं करेगा। मदरसा दारुल उलूम जक्रिया के मोहतमिम मुफ्ती शरीफ खान ने कहा कि हलाला और ताहजुज-ए-अजवाज (बहु निकाह) या फिर अन्य किसी इस्लामी कानून के खिलाफ सरकार कोई अपना कानून लाती है तो उसे किसी कीमत पर कुबूल नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इस्लाम के खिलाफ किसी भी कानून को मुसलमान नहीं मानेगा और उसका खुलकर विरोध करेगा। देश के संविधान ने हमें अपने पर्सनल लॉ के अनुसार निर्णय लेने का पूरा अधिकार दिया है। जिसे कोई नहीं छीन सकता।
तंजीम अब्ना ए दारुल उलूम के अध्यक्ष मुफ्ती यादे इलाही कासमी ने कहा कि सरकार दीन के किसी भी कानून में दखल अंदाजी नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि देश के संविधान ने हर मजहब के लोगों को अपने मजहब की रीती रिवाज और उसके कानून मानने की छूट दे रखी है। उन्होंने सवाल किया कि क्या सरकार देश में रहने वाले किसी दूसरे मजहब के मानने वालों के पर्सनल लॉ में भी बदलाव कर रही है। फिर इस्लाम ही सरकार का निशाना क्यों है। उन्होंने दो टूक कहा कि सरकार अपनी नाकामिया छुपाने के लिए देश में हिंदू और मुसलमानों के बीच नफरत की खाई बनाने का काम कर रही है। जो कि बेहद निंदनीय है।
केंद्र सरकार ने तीन तलाक के साथ-साथ बहु विवाह व हलाला पर भी सुप्रीम कोर्ट से सुनवाई करने की मांग की थी लेकिन तब कोर्ट ने केवल तीन तलाक पर सुनवाई करने का फैसला किया था। अदालत ने कहा था कि निकाह हलाला और बहुविवाह अलग मसला है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल एक साथ तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया था। बाद में सरकार ने एक विधेयक लाकर तीन तलाक को दंडनीय अपराध घोषित किया था। सरकार का बिल लोकसभा में पास होने के बाद राज्यसभा में अटक गया था। इस प्रस्तावित कानून में एक साथ तीन तलाक को गैरकानूनी घोषित करते हुए तलाक देने वाले पति को तीन साल कैद की सजा का प्रावधान किया गया है।