Ajit Pawar: अजित पवार का पावर गेम, अभी खेल जारी है

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Update:2023-07-02 16:33 IST
एनसीपी नेता अजित पवार: Photo- Social Media

Ajit Pawar: अजित पवार का पावर गेम भारतीय राजनीति को प्रतिबिम्बित करता है जहां प्रतिबद्धताओं का कोई मतलब नहीं रहता। अजित पवार हमेशा से पावरफुल पोजीशन की चाहत रखते थे और इसीलिए जब उनके चाचा शरद पवार ने उन्हें पूरी तरह हाशिये पर डाल दिया था तभी से पता चल गया था कि अजित का अपने समर्थकों के साथ सत्तारूढ़ भाजपा के साथ हाथ मिलाने का रास्ता साफ हो गया है।

बड़े खिलाड़ी

पिछले कुछ वर्षों में अजित पवार का जो खेल रहा है उसके चलते वह राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के "बड़े खिलाड़ी" होने की उपाधि अर्जित कर चुके हैं। 2019 के बाद अब फिर उन्होंने पार्टी में फूट डालने की कोशिश की है। चार साल पहले उन्होंने महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए भाजपा के साथ एक अल्पकालिक राजनीतिक गठबंधन किया था और अब फिर अजीत पवार ने इस कदम को दोहरा दिया है। उस समय वह सीएम देवेंद्र फडणवीस के उप मुख्यमंत्री थे और इस बार शिंदे के उपमुख्यमंत्री बन गए हैं।

बड़े महत्वाकांक्षी

2019 में अपने असफल विद्रोह के बाद से, अजित पवार ने भाजपा के साथ तालमेल बिठाने की अटकलों को खारिज कर दिया था। उनके मन में हमेशा अपने चाचा की तरह अपनी खुद की राजनीतिक विरासत बनाने की प्रबल इच्छा रही थी। वैसे, चाचा और भतीजे दोनों को अपने राजनीतिक आकाओं के खिलाफ बगावत करने की आदत रही है। शरद पवार 1978 में अपनी सरकार बनाने के लिए अपने गुरु वसंतदादा पाटिल के खिलाफ चले गए थे और अजित ने यही अपने चाचा के साथ कर दिया है।

आगे भी कर सकते हैं खेल

अजित पवार भले ही अभी शिंदे-फडणवीस के साथ चले गए हैं लेकिन भविष्य में वह और क्या खेल कर देंगे, कोई कुछ नहीं कह सकता। वह पहले भी कई बार चौंका चुके हैं।

भाजपा को मिली मजबूती

अजित पवार का शिंदे-भाजपा सरकार में शामिल होना एक तरह से भाजपा का पलड़ा और ज्यादा मजबूत कर रहा है। वर्तमान में शिंदे सरकार के पास भाजपा के 125 और शिंदे गुट के 40 विधायक मिलाकर कुल 166 विधायकों का समर्थन है। ऐसे में अजित पवार खेमे के विधायक आ जाने से भाजपा अकेले ही बहुमत में हो जाएगी।

अजित पवार के भाजपा से हाथ मिलाने की स्थिति में एनसीपी मुखिया शरद पवार की मुश्किलें बढ़नी तय हैं। मौजूदा सियासी हालात ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की चिंताएं भी बढ़ा दी हैं। जब भाजपा की पूरी पकड़ हो जाएगी तो शिंदे की उपयोगिता ही खत्म हो जाएगी।

अजित को साधने में जुटी थी भाजपा

महाराष्ट्र में भाजपा काफी पहले से अजित पवार से संपर्क में थी। एनसीपी के मुखिया शरद पवार को भी इस बात का एहसास हो चुका था तभी उन्होंने हाल के फेरबदल में अजित को किनारे कर दिया था। भाजपा ने अजित पवार से इसलिए संपर्क साथ रखा है ताकि अदालती फैसले के कारण यदि सरकार प्रभावित होती है तो सरकार को बचाए रखने के लिए नए विकल्पों का रास्ता खुल सके। यदि सुप्रीम कोर्ट का फैसला शिंदे गुट के 16 विधायकों के खिलाफ जाता है तो भाजपा को सरकार बचाने के लिए अजित पवार का सहारा लेना पड़ेगा। यही कारण है कि भाजपा अजित पवार का समीकरण साधने की कोशिश में जुटी हुई है।

अजित पवार की राजनीतिक महत्वकांक्षा मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचना है, जिसे वो भाजपा के साथ जाकर पूरा करना चाह रहे हैं। क्योंकि उन्हें ये अच्छी तरह से पता है कि अगर आने वाले चुनावों के बाद एनसीपी को मुख्यमंत्री का पद मिलेगा तो उनके सिर सेहरा नहीं सजेगा। उनकी जगह सुप्रिया सुले को ये पद दिया जा सकता है। इसके अलावा उनके और उनके परिवार के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों का शिंकजा कसता जा रहा है। जिसके चलते उन पर गिरफ्तारी की तलवार भी लटक सकती है। यही वजह है कि अजित पवार चुनाव से पहले इतने बेचैन नजर आ रहे हैं।

बहरहाल, महाराष्ट्र, एनसीपी और अजित पवार की राजनीति अभी और भी करवट लेगी। अभी विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव होने हैं। अभी सब दलों और नेताओं के लिए खोने और पाने को बहुत कुछ है।

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