दिल्ली किसकी? AAP-BJP में टकरार, केंद्र क्यों लाई LG की ताकत बढ़ाने वाला बिल

दिल्ली कांग्रेस ने भी प्रस्तावित विधेयक पर आपत्ति जताई है और कहा है कि यह दिल्ली सरकार की शक्तियों को कम करने की कवायद है दिल्ली के लोगों ने अपने लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग कर जो सरकार चुनी है उस सरकार को शक्तिहीन किया जा रहा है।

Update:2021-03-16 13:11 IST

अखिलेश तिवारी

नई दिल्ली- केंद्र की भारतीय जनता पार्टी नीत सरकार ने संसद में दिल्ली राज्य को लेकर एक विधेयक पेश किया है जो दिल्ली में उपराज्यपाल यानी लेफ्टिनेंट गवर्नर को अधिक शक्तियां देता है। दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार और केंद्र कि मोदी सरकार के बीच एलजी के अधिकारों को लेकर पहले भी तनावपूर्ण संबंध रहे हैं सुप्रीम कोर्ट ने एलजी और दिल्ली सरकार के अधिकारों की व्याख्या कर सीमा निर्धारण का कार्य किया है। इसके अनुसार लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई दिल्ली की सरकार को अपने सभी फैसलों की सूचना उपराज्यपाल को देनी होगी , लेकिन उनकी सहमति आवश्यक नहीं है।

दिल्ली के उपराज्यपाल की ताकत बढ़ाने वाला बिल

संसद में जो नया विधेयक लाया गया है, उसमें व्यवस्था में बदलाव प्रस्तावित है। इसके तहत मंत्रिपरिषद के फैसलों को लागू करने से पहले उपराज्यपाल किराए के लिए उन्हें जरूरी मौका दिया जाना आवश्यक होगा। इसका मतलब है कि उपराज्यपाल की सहमति के बगैर विधानसभा में कोई विधेयक पारित नहीं हो सकेगा।

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दिल्ली सरकार की असली पावर होगी LG के पास

इसका सीधा अर्थ है कि दिल्ली सरकार के चुने हुए जनप्रतिनिधि की राय और फैसले तब तक वैधानिक नहीं होंगे जब तक की उपराज्यपाल की मुहर ना लगा दी जाए। यह कुछ इस तरह से होगा जैसे राजशाही में राजा की अनुमति के बगैर कोई फैसला या कानून लागू नहीं हो सकता।

केंद्र के बिल पर भड़की केजरीवाल सरकार

यही वजह है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से लेकर कांग्रेस पार्टी भी केंद्र सरकार के नए कानून का खुला विरोध कर रहे हैं कांग्रेस ने इसे लोकतंत्र के लिए काला दिन की संज्ञा दी है।

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केंद्र सरकार के नए विधेयक- दिल्ली की राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार संशोधन विधेयक 2021 को संसद में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने सोमवार को पेश किया है। यह विधेयक 1991 के अधिनियम के 2124 33 और 44 अनुच्छेद में संशोधन का प्रस्ताव करता है केंद्र सरकार के बयान में कहा गया है कि 1991 अधिनियम का अनुच्छेद 44 सरकार को समय से प्रभावी कार्य करने के लिए कोई मजबूत आधार तंत्र मुहैया नहीं कराता है।

दिल्ली पर क्या कहता है संविधान

दरअसल 1991 में संविधान के 239 ए ए अनुच्छेद के जरिए दिल्ली को केंद्र शासित राज्य का दर्जा दिया गया है। इस कानून के तहत दिल्ली की विधानसभा को कानून बनाने की शक्ति हासिल है लेकिन वह सार्वजनिक व्यवस्था, भूमि और पुलिस के मामले में ऐसा नहीं कर सकती। अब केंद्र सरकार इस अधिनियम में बदलाव कर उपराज्यपाल को और ज्यादा शक्ति संपन्न बनाना चाहती है।

दिल्ली सरकार को फैसलों पर LG से अनुमति लेनी होगी

केंद्र सरकार का मानना है कि मौजूदा अधिनियम यह स्पष्ट नहीं करता है कि राज्य सरकार कोई आदेश जारी करने से पहले किन प्रस्ताव या मामलों को लेफ्टिनेंट गवर्नर को जरूर भेजेगी। इस अधिनियम का अनुच्छेद 44 से भी कहता है कि उपराज्यपाल के सभी फैसले जो उनके मंत्रियों या अन्य की सलाह पर लिए जाएंगे उन्हें उप राज्यपाल के नाम पर उल्लेखित करना होगा।

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भाजपा का कहना है कि इसके जरिए उपराज्यपाल को दिल्ली सरकार के रूप में परिभाषित किया गया है लेकिन दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार उपराज्यपाल को शक्ति केंद्र मानने के बजाय खुद को ही शक्ति केंद्र मान रही है। यह पूरी तरह ठीक नहीं है क्योंकि दिल्ली की सरकार अन्य राज्यों की तरह से संपूर्ण सरकार नहीं है।

भाजपा-आप का टकराव पहले भी जा चुका सुप्रीम कोर्ट

भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच हुई इस तकरार का नतीजा सुप्रीम कोर्ट में चली अदालती कार्रवाई के तौर पर पूरे देश ने देखा है। केंद्र और दिल्ली सरकार के विवाद पर विचार करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 4 जुलाई 2018 को माना था कि दिल्ली सरकार अपने फैसले के बारे में उपराज्यपाल को सूचना देने के लिए बाध्य है लेकिन उपराज्यपाल की सहमति प्राप्त करना अनिवार्य नहीं है।

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14 फरवरी 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि विधाई शक्तियों के कारण उपराज्यपाल दिल्ली सरकार के मंत्रिमंडल की सलाह से बंधे हुए हैं। वह सिर्फ अनुच्छेद 239 एए के आधार पर ही दिल्ली सरकार के फैसलों से अलग रास्ता अपना सकते हैं यानी अगर वह सरकार से सहमत नहीं है तो उस मामले को राष्ट्रपति के पास ले जा सकते हैं।

केंद्र का संशोधित बिल सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के खिलाफ

केंद्र सरकार का नया संशोधन प्रस्ताव सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को बदलने की कवायद माना जा रहा है। यही वजह है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सोमवार को सोशल मीडिया पर बयान जारी कर कहा कि विधानसभा में 8 सीटें और उपचुनाव में 0 सीट पर विजय हासिल करने वाली बीजेपी अब लोकसभा में एक विधायक के जगह चुनी हुई सरकार की शक्तियां कम करना चाह रही है। यह विधेयक सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के फैसले के खिलाफ है। हम बीजेपी के संवैधानिक और लोकतंत्र विरोधी कदम की कड़ी निंदा करते हैं।

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उन्होंने कहा कि नया कानून संशोधन प्रस्ताव कहता है कि दिल्ली में उपराज्यपाल का मतलब ही सरकार होगा। अगर यही होना है तो फिर दिल्ली में चुनी हुई सरकार क्या करेगी?

केजरीवाल सरकार को मिला कांग्रेस का साथ

अरविंद केजरीवाल की चिंता को समर्थन कांग्रेस की ओर से भी मिला है। दिल्ली कांग्रेस ने भी प्रस्तावित विधेयक पर आपत्ति जताई है और कहा है कि यह दिल्ली सरकार की शक्तियों को कम करने की कवायद है दिल्ली के लोगों ने अपने लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग कर जो सरकार चुनी है उस सरकार को शक्तिहीन किया जा रहा है।

पूर्व विधायक और कांग्रेसी नेता अनिल भारद्वाज ने मीडिया से कहा कि अगर यह विधेयक पारित होता है तो वह दिन दिल्ली के लिए एक काला दिवस होगा और यह लोकतंत्र की हत्या होगी।

ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि संसद में क्या भारतीय जनता पार्टी और उसके समर्थक दल मिलकर दिल्ली की चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकार पर अंकुश लगाने का काम करेंगे या सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानते हुए मौजूदा व्यवस्था का समर्थन करेंगे। संसद में हालांकि इस पर बहस होने की संभावना है लेकिन केंद्र सरकार ने साफ कर दिया है कि वह दिल्ली सरकार के कामकाज के तरीकों से संतुष्ट नहीं है और उपराज्यपाल की शक्तियों को बढ़ाकर नियंत्रण स्थापित करना चाहती है। सरकार का मानना है कि उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के अधिकार एवं दायित्व का स्पष्ट निर्धारण होना आवश्यक है।

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