पायलट खेमे के विधायकों के पीछे इसलिए पड़े हैं गहलोत, जानिए क्या होगा फायदा

अशोक गहलोत ने सचिन पायलट को अपनी ताकत का एहसास कराते हुए डिप्टी सीएम के पद के साथ ही कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पद से भी हटवा दिया है।

Update:2020-07-17 22:19 IST

अंशुमान तिवारी

नई दिल्ली: राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट का खेमा एक-दूसरे को पटखनी देने में जुटा हुआ है। गहलोत ने सधी हुई चाल चलते हुए विधानसभा अध्यक्ष के जरिए पार्टी के बागी विधायकों को नोटिस जारी करवा दी है। हालांकि यह मामला अब हाईकोर्ट तक पहुंच गया है और हर किसी को अदालत के फैसले का इंतजार है। अदालत की ओर से सचिन खेमे को 21 जुलाई तक का समय मिल गया है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सचिन पायलट और उनके साथी अठारह कांग्रेसी विधायकों को अयोग्य घोषित करवाने पर तुले हुए हैं। अशोक गहलोत ने यह चाल बड़ी सोच समझ कर चली है क्योंकि इससे उनको बड़ा फायदा होगा।

गहलोत ने कराया ताकत का एहसास

विधानसभा अध्यक्ष की ओर से सचिन खेमे को जारी नोटिस में जवाब देने के लिए 17 जुलाई तक का समय दिया गया था। मगर उसके पहले ही यह मामला अदालत की दहलीज पर पहुंच गया। अशोक गहलोत ने सचिन पायलट को अपनी ताकत का एहसास कराते हुए डिप्टी सीएम के पद के साथ ही कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पद से भी हटवा दिया है। अब वे बागी विधायकों की सदस्यता खत्म कराने में जुटे हुए हैं। सियासी जानकारों का कहना है कि गहलोत सियासत के जादूगर हैं और उन्हें पता है कि विधायकों के अयोग्य घोषित होने से उन्हें कितना बड़ा फायदा होगा।

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राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष ने सचिन पायलट और उनका साथ देने वाले 18 अन्य विधायकों को अयोग्य घोषित करने का नोटिस थमाया है। इस नोटिस के खिलाफ इन विधायकों ने राजस्थान हाईकोर्ट की शरण ली है। विधानसभा अध्यक्ष का कहना है कि इन विधायकों ने व्हिप का उल्लंघन किया है और व्हिप जारी होने के बावजूद उन्होंने विधायक दल की दो बैठकों में हिस्सा नहीं लिया। दूसरी और पायलट खेमे का तर्क है कि सदन की कार्यवाही चलने के दौरान ही व्हिप को माना जाता है। सचिन खेमे ने तो यहां तक कहा है कि मुख्यमंत्री के गार्डन और होटल में बहुमत का फैसला नहीं होता बल्कि बहुमत का फैसला विधानसभा के भीतर होता है।

तब काफी आसान हो जाएगी गहलोत की राह

अगर विधायकों को अयोग्य घोषित कराने की गहलोत की चाल सफल हो गई तो उन्हें इसका बड़ा फायदा मिलेगा। राजस्थान विधानसभा में 200 सीटें हैं और 19 विधायकों को अयोग्य घोषित किए जाने पर इसकी क्षमता घटकर 181 रह जाएगी। ऐसे में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के लिए अपनी कुर्सी बचाए रखना काफी आसान हो जाएगा। क्योंकि उन्हें बहुमत के लिए सिर्फ 91 विधायकों के समर्थन की जरूरत होगी। इतने विधायकों का समर्थन जुटाना उनके लिए काफी आसान काम है। सचिन खेमे को मिलाकर मौजूदा समय में कांग्रेस के पास 107 विधायक हैं जबकि भाजपा के पास सिर्फ 72 विधायकों का समर्थन है।

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सचिन खेमे के 19 विधायकों का समर्थन कम होने पर भी अशोक गहलोत की सेहत पर ज्यादा असर नहीं पड़ने वाला क्योंकि उनके पास 13 निर्दलीय विधायकों का भी समर्थन है। सीपीएम के दो और रालोद के एक विधायक का भी गहलोत को समर्थन हासिल है। भारतीय ट्राइबल पार्टी के दो विधायक अभी तक गहलोत सरकार के साथ थे। हालांकि मौजूदा संकट में उनके भविष्य के रुख को लेकर अभी बहुत कुछ साफ नहीं हो पा रहा है। ऐसे में समझा जा सकता है कि सचिन खेमे के विधायकों की सदस्यता जाने से कांग्रेस के लिए राह और आसान हो जाएगी।

बढ़ रही हैं सचिन खेमे की मुसीबतें

दूसरी ओर सचिन खेमे के लिए मुसीबतें लगातार बढ़ती जा रही है। इन विधायकों के इस्तीफा देने या किसी दूसरी पार्टी में शामिल होने पर उन्हें फिर से चुनाव मैदान में उतरना होगा और सचिन के कई साथी विधायक उपचुनाव लड़ने को मानसिक रूप से तैयार नहीं है। हालांकि सियासी जानकारों का यह भी कहना है कि अगर उनके समर्थन से कोई दूसरी सरकार बनती है तो उनको सियासी फायदा होगा और वे तुरंत मंत्री बन सकते हैं। हालांकि इसके लिए उन्हें 6 महीने के भीतर चुनाव लड़कर फिर से विधानसभा में आना होगा।

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लेकिन अगर उन्हें विधानसभा अध्यक्ष की ओर से अयोग्य करार दे दिया जाता है तो वे सदस्य चुने जाने से पहले सरकार का हिस्सा नहीं बन पाएंगे। ऐसे में राजस्थान के सियासी संकट में दोनों टीमों की ओर से जमकर सियासी चला चले जा रहे हैं। दोनों खेमों की ओर से नफा नुकसान का आंकलन किया जा रहा है। जहां कांग्रेस के खेमे में आश्वस्त होने का भाव दिख रहा है वहीं दूसरी ओर सचिन खेमे में बेचैनी दिख रही है। सचिन खेमे में शामिल अधिकांश विधायक अपने सियासी भविष्य को लेकर बेचैन हैं।

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