शहाबुद्दीन से नहीं है सिवान की पहचान, ये बुद्ध और राजेन्द्र की भूमि है
बिहार ही नहीं देश में कभी भी इस शहर का नाम सुनते ही सिर्फ एक ही नाम जुबान पर आता है और वो है, बाहुबली मोहम्मद शहाबुद्दीन का। दबंगई, बाहुबल का इसे बिहार में पर्यायवाची कहा जाता है। ये जनाब अपने आपको इलाके का रॉबिनहुड कहता है।
सिवान : बिहार ही नहीं देश में कभी भी इस शहर का नाम सुनते ही सिर्फ एक ही नाम जुबान पर आता है और वो है, बाहुबली मोहम्मद शहाबुद्दीन का। दबंगई, बाहुबल का इसे बिहार में पर्यायवाची कहा जाता है। ये जनाब अपने आपको इलाके का रॉबिनहुड कहता है। लेकिन आज हम आपको बताते हैं सिर्फ मोहम्मद शहाबुद्दीन ही नहीं है सीवान की पहचान।
सिवान का नाम मध्यकाल में राजा 'शिव मान' के नाम पर पड़ा। उनके पूर्वज बाबर के पहले यहाँ शासन कर रहे थे। सीवान बिहार के सारन प्रमंडल का एक जिला है। सीवान जिला मुख्यालय दाहा नदी के तट पर बसा है। ये देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद तथा बड़े स्वतंत्रता सेनानियों की जन्मभूमि एवं कर्मस्थली है।
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गौरवशाली इतिहास
पाँचवी सदी ईसापूर्व में सीवान कोसल महाजनपद का हिस्सा था। आठवीं सदी में यहाँ बनारस के शासकों का शासन हो गया। 15 वीं सदी में सिकन्दर लोदी ने यहाँ अपना राज स्थापित किया। बाद में यह मुगल शासन का हिस्सा बन गया। अकबर के शासनकाल पर लिखे गए आईना-ए-अकबरी में भी इसका विवरण पाया जात है। 17वीं सदी में व्यापार के उद्देश्य से यहाँ डच आए लेकिन बक्सर युद्ध में विजय के बाद सन 1765 में अंग्रेजों को यहाँ का दिवानी अधिकार मिल गया।
क्रांति का गवाह
1857 की क्रांति से लेकर आजादी मिलने तक सीवान की निर्भीक और जुझारु जनता ने अंग्रेजी सरकार के खिलाफ अपनी लड़ाई लड़ी। 1920 में असहयोग आन्दोलन के समय सिवान के ब्रज किशोर प्रसाद ने पर्दा प्रथा के विरोध में आन्दोलन चलाया था। 1937 में राहुल सांकृत्यायन ने किसान आन्दोलन की नींव यहीं रखी थी। स्वतंत्रता की लड़ाई में यहाँ के मजहरुल हक़, राजेन्द्र प्रसाद, महेन्द्र प्रसाद, फूलेना प्रसाद जैसे महान सेनानियों नें समूचे देश में बिहार का नाम ऊँचा किया है।
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वो जिन्होंने नाम किया रौशन
डा॰ राजेन्द्र प्रसाद- महात्मा गाँधी के सहयोगी, भारत के प्रथम राष्ट्रपति
मौलाना मजहरूल हक़- महात्मा गाँधी के सहयोगी, स्वतंत्रता सेनानी एवं हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक
उमाकान्त सिंह- 9 अगस्त 1942 को बिहार सचिवालय के सामने शहीद हुए क्रांतिकारियों में एक
खुदा बक्श खान- खुदा बक्श लाईब्रेरी के संस्थापक
फुलेना प्रसाद- स्वतंत्रता सेनानी
ब्रज किशोर प्रसाद- पर्दा-प्रथा विरोध आन्दोलन के जन्मदाता
दारोगा प्रसाद राय- बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री
पैगाम अफाकी- मशहूर उर्दू साहित्यकार
नटवर लाल- मशहूर ठग
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पर्यटन स्थल
फरीदपुर: बिहार रत्न मौलाना मजहरूल हक़ का जन्म स्थान
दोन स्तूप : दरौली प्रखंड के दोन गाँव में यह एक बौद्ध स्थल है। इसका नाम मुगल सम्राट शाहजहाँ के बेटे दारा शिकोह के नाम पर पड़ा है। कहा जाता है कि दोन में भगवान बुद्ध का अंतिम संस्कार हुआ था। हिंदू किवदंतियों के मुताबिक यहाँ के किले का अवशेष महाभारत काल का है जिसे गुरु द्रोणाचार्य ने बनवाया था। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा वर्णन में इस स्थान पर एक पुराना स्तूप होने का जिक्र किया है।
लकड़ी दरगाह: पटना के मुस्लिम संत शाह अर्जन के दरगाह पर रब्बी-उस-सानी के 11 वें दिन होनेवाले उर्स पर मेला लगता है। इस दरगाह पर लकड़ी पर बहुत अच्छी कसीदाकारी की गयी है। कहा जाता है कि इस स्थान की शांति के चलते शाह अर्जन बस गए थे|
जिरादेई: सिवान शहर से 13 किमी पश्चिम में डा राजेन्द्र प्रसाद का जन्म स्थान|
अमरपुर: दरौली से 3 किलोमीटर पश्चिम में घाघरा नदी के तट पर स्थित इस गाँव में मुगल शाहजहाँ के शासनकाल (1626-1658) में यहाँ के नायब अमरसिंह द्वारा एक मस्जिद का निर्माण शुरु कराया गया जो अधूरा रहा। लाल पत्थरों से बनी अधूरी मस्जिद को यहाँ देखा जा सकता है।
मेंहदार: सिसवां प्रखंड में स्थित इस गाँव के बावन बीघे में बने पोखर के किनारे शिव एवं विश्वकर्मा भगवान का मंदिर बना है। स्थानीय लोगों में इस पोखर को पवित्र माना जाता है। यहाँ शिवरात्रि एवं विश्वकर्मा पूजा काफी भक्त आते हैं।
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हसनपुरा: हुसैनीगंज प्रखंड के इस गाँव में मख्दूम सैय्यद हसन चिश्ती रहते थे। यहाँ उन्होंने खानकाह भी स्थापित किया था।
भिखाबांध: महाराजगंज प्रखंड में इस जगह पर एक विशाल पेड़ के नीचे भैया-बहिनी का मंदिर बना है। कहा जाता है कि 14 वीं सदी में मुगल सेना से लड़ाई में दोनों भाई बहन मारे गए थे।
पातार: राम जी बाबा का मन्दिर है जहाँ पर किसी भी आदमी को सर्प काटता है तो यहाँ पर आने से सही हो जाता है। ऐसी मान्यता है| जोतिशाचार्य आचार्य मुरारी पाण्डेय जी की जान्मस्थली है|
नरहन: यह हिन्दुओ का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। कार्तिक पूर्णिमा व मकर सक्रान्ति के दिन मेले का आयोजन होता है| जिसमें यूपी से भी लोग आते हैं|
हमारा ये कहना है कि इसे बाहुबली मोहम्मद शहाबुद्दीन के नाम से मत जोड़ें बल्कि यहाँ आये तो इसे अपने इतिहास के गौरव के तौर पर देखें|