दादा शेख अब्दुल्ला के बनाए कानून के फंदे में फंसे उमर

जम्मू-कश्मीर के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला के खिलाफ जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत मामला दर्ज किया गया है। दोनों अनुच्छेद 370 और 35 ए के खात्मे के बाद से नजरबंद चल रहे हैं।

Update:2020-02-07 17:02 IST

अंशुमान तिवारी

श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला के खिलाफ जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत मामला दर्ज किया गया है। दोनों अनुच्छेद 370 और 35 ए के खात्मे के बाद से नजरबंद चल रहे हैं। राज्य में पीएसए लागू होने के बाद अब इन दोनों नेताओं को बिना किसी मुकदमे के दो साल तक हिरासत में रखा जा सकता है।

उमर के पिता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला भी इसी कानून के तहत अपने घर में हिरासत में हैं। मजे की बात तो यह है कि फारूक के पिता और उमर के दादा शेख अब्दुल्ला ने ही यह बेरहम कानून बनाया था और अब यही दोनों इसके फंदे में फंस गए हैं।

क्या है जन सुरक्षा कानून

यह जानना जरूरी है कि आखिर जन सुरक्षा कानून। साल 1978 में उमर अब्दुल्ला के दादा और फारुक अब्दुल्ला के पिता शेख अब्दुल्ला ने इस कानून को इमारती लकड़ी की तस्करी को रोकने और तस्करों को प्रचलन से बाहर रखने के लिए जम्मू-कश्मीर में लागू किया था। जन सुरक्षा अधिनियम उन लोगों पर लगाया जा सकता है, जिन्हें लोगों की सुरक्षा और शांति के लिए खतरा माना जाता हो। यह देश के अन्य राज्यों में लागू राष्ट्रीय सुरक्षा कानून की तरह से है।

जम्मू-कश्मीर पब्लिक सेफ्टी एक्ट 1978 राज्य का सबसे कठोर कानून है। इस कानून के तहत किसी भी व्यक्ति को बिना वारंट और बिना कारण बताए दो साल तक हिरासत में रखा जा सकता है। इसमें कोर्ट ट्रॉयल और चार्जेज लगाना भी जरूरी नहीं है। आमतौर पर पुलिस हिरासत में लिए व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना होता है, लेकिन पीएसए एक्ट में बिना कोर्ट में पेश किए किसी व्यक्ति को 2 साल तक हिरासत में रखा जा सकता है।

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दो साल तक रखा जा सकता है हिरासत में

पीएसए के तहत दो प्रावधान हैं-लोक व्यवस्था और राज्य की सुरक्षा को खतरा। पहले प्रावधान के तहत किसी व्यक्ति को बिना मुकदमे के छह महीने तक और दूसरे प्रावधान के तहत किसी व्यक्ति को बिना मुकदमे के दो साल तक हिरासत में रखा जा सकता है। यह कानून किसी व्यक्ति पर दंड स्वरूप नहीं लगाया जाता बल्कि सुरक्षा के लिहाज से लगाया जाता है। यह कानून मंडलीय कमिश्नर या डीएम के आदेश पर ही लागू किया जाता है। इस एक्ट के प्रावधान काफी कड़े हैं। इस एक्ट के तहत बिना किसी आरोप के किसी भी व्यक्ति को हिरासत में रखा जा सकता है।

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हालांकि किसी-किसी मामले में ये प्रावधान होता है कि हिरासत में लिया गया व्यक्ति अपने ऊपर लगाए गए आरोपों की जानकारी मांग सकता है। किसी-किसी मामले में हिरासत में लिया गया व्यक्ति सरकार के फैसले को कोर्ट में चुनौती भी दे सकता है। हालांकि हिरासत में रखने वाला प्रशासन आरोपों के बारे में जानकारी देने को सार्वजनिक हितों के खिलाफ बताकर जानकारी देने से इनकार भी कर सकता है। 2012 में इसके कुछ कड़े प्रावधानों में संशोधन किया गया। 2012 के बाद इस एक्ट को 18 साल से कम उम्र के लोगों के लिए निष्प्रभावी बना दिया गया। 18 साल से कम उम्र के लोगों पर ये एक्ट नहीं लगाया जा सकता है।

आखिर क्यों कहा जाता है बेरहम कानून

जन सुरक्षा कानून को अक्सर बेरहम कानून कहा जाता है। यह कानून उस व्यक्ति पर भी लागू किया जा सकता है जो पहले से ही पुलिस हिरासत में है। यही नहीं किसी व्यक्ति को अगर कोर्ट से जमानत मिली हो या बरी किया गया हो तो तत्काल उसके खिलाफ पीएसए लगाया जा सकता है। हिरासत में रखा गया व्यक्ति जमानत के लिए आपराधिक अदालत नहीं जा सकता और वकील भी नहीं रख सकता है। इस हिरासत को केवल बंदी बनाए गए व्यक्ति के परिवार के किसी सदस्य द्वारा बंदी प्रत्यक्षीकरण कानून के तहत चुनौती दी जा सकती है। जिला अदाल में इसकी सुनवाई भी नहीं हो सकती है। इसकी सुनवाई केवल हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में ही हो सकती है। एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर कोर्ट हिरासत को खत्म कर देती है तो सरकार को दोबारा पीएसए लगाने पर कोई रोक नहीं है।

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कश्मीर में दुरुपयोग भी हुआ

जम्मू-कश्मीर में समय-समय पर इस कानून के दुरुपयोग की शिकायतें मिलती रही हैं। वर्ष 1990 तक तत्कालीन सरकारों ने अपने राजनीतिक विरोधियों को हिरासत में लेने के लिए इसका दुरुपयोग किया। जुलाई 2016 में आतंकवादी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाएं शुरू हो गई थीं। इसके बाद सरकार ने अलगाववादियों पर नकेल कसने के लिए पीएसए को लागू किया। अगस्त 2018 में राज्य के बाहर भी पीएसए के तहत व्यक्तियों को हिरासत में लेने की अनुमति देने के लिए अधिनियम में संशोधन किया गया था। राज्य के पूर्व सीएम फारूक अब्दुल्ला को पीएसए के तहत हिरासत में लिया गया था। वे इस कानून के फंदे में फंसने वाले पहले पूर्व सीएम हैं।

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