ED Action: भ्रष्टाचारियों पर कहर बनकर टूट रही ईडी, मोदी सरकार आने के बाद तेज हुई कार्रवाई
ED Case: विपक्षी नेता सीबीआई, ईडी और इनकम टैक्स जैसी केंद्रीय एजेंसियों का जिक्र कर केंद्र पर विपक्षी नेताओं को डराने-धमकाने के आरोप लगाते रहते हैं। हाल के वर्षों में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) केंद्र की उन एजेंसियों में रही है, जो सबसे अधिक खबरों में रही है।
ED Case: मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष के पास जो कुछ बड़े मुद्दे हैं, जिनपर तकरीबन सभी विपक्षी पार्टियों में आम राय है, वह है केंद्रीय एजेंसियों का दुरूपयोग। विपक्षी नेता सीबीआई, ईडी और इनकम टैक्स जैसी केंद्रीय एजेंसियों का जिक्र कर केंद्र पर विपक्षी नेताओं को डराने-धमकाने के आरोप लगाते रहते हैं। हाल के वर्षों में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) केंद्र की उन एजेंसियों में रही है, जो सबसे अधिक खबरों में रही है। हर दिन देश के किसी न किसी हिस्से से किसी वीआईपी के खिलाफ ईडी की कार्रवाई से जुड़ी खबरें आती रहती हैं।
साल 2014 में देश में सत्ता परिवर्तन के बाद से इस एजेंसी ने गजब की सक्रियता दिखाई है। पिछले 9 सालों में यह भ्रष्टाचारियों पर कहर बनकर टूटी है। मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में देश के कई प्रभावशाली नेताओं को जेल की हवा खानी पड़ी है। कुछ तो अभी भी है सलाखों के पीछे हैं। भ्रष्टाचारियों के खिलाफ जिस गति से कार्रवाई हो रही है, उसका अंदाजा इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पिछले 4 सालों में ईडी द्वारा दर्ज किए गए मामलों में 500 प्रतिशत से अधिक का इजाफा हुआ है।
मीडिया रिपोर्ट्स में वित्त मंत्रालय के सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि 2018-19 में ईडी द्वारा कुल 195 मामले दर्ज किए गए थे। जो कि साल 2021-22 आते-आते 1180 पर जा पहुंचा है। इस अवधि में अवैध संपत्ति की कुर्की में भी तेजी आई है। रिपोर्ट में बताया गया कि यूपीए सरकार के दोनों कार्यकाल (2004-2014) में महज 5346 करोड़ रूपये की अवैध संपत्ति कुर्क की गई थी। वहीं, 2014 से 2022 तक एजेंसी ने 95,432.08 करोड़ रूपये की अवैध संपत्ति कुर्क की है।
ईडी की कार्रवाई से विपक्ष परेशान
प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई से देश का विपक्ष परेशान है। उनका कहना है कि ये एजेंसी केवल विपक्षी खेमे के नेताओं को ही अपना निशाना बनाती है। जैसे ही कोई नेता पाला बदलता है, उनके खिलाफ जांच रूक जाती है। इसे लेकर विपक्षी नेताओं ने पिछले दिनों एक खत भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजा था। जिसमें दावा किया गया था कि ईडी द्वारा दर्ज अधिकांश मामले कोर्ट में टिक नहीं पाते।
लिहाजा केवल विपक्षी नेताओं की छवि धूमिल करने के प्रयास के तहत ऐसे आरोप लगाए जाते हैं। हालांकि, प्रवर्तन निदेशालय ने विपक्षी नेताओं के इन आरोपों का जवाब देते हुए एक आंकड़ा पेश किया था, जिसमे 96 प्रतिशत दोषसिद्धि की बात कही गई थी। दरअसल, ईडी के पास सीबीआई और एनआईए से भी ज्यादा ताकत है। वह देशभर में सरकार के परमिशन के बगैर कहीं भी कार्रवाई कर सकती है। मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में गिरफ्तार आरोपियों को जल्द जमानत भी नहीं मिलती। यह वजह है कि ईडी के इन अधिकारों के खिलाफ विपक्ष समय-समय पर आवाज भी उठाता रहा है।
विपक्षी नेता बने अधिक निशाना
बीते साल एक प्रमुख अंग्रेजी दैनिक ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें बताया गया था कि पिछले 18 सालों में ईडी ने 147 प्रमुख राजनेताओं के खिलाफ जांच की, जिनमें से 85 प्रतिशत विपक्ष से थे। यूपीए शासनकाल में ईडी ने 26 राजनेताओं के खिलाफ जांच की। इनमें विपक्ष के 14 नेता शामिल थे। मोदी सरकार के आने के बाद ईडी की नेताओं के खिलाफ कार्रवाई में 4 गुना बढ़ोतरी हुई।
इस दौरान जांच एजेंसी के दायरे में 121 राजनेता आए, जिनमें से 115 विपक्षी दल से आते थे। इसका मतलब है कि करीब 95 प्रतिशत कार्रवाई विपक्षी राजनेताओं के खिलाफ हुई। मोदी सरकार में ईडी ने सबसे अधिक कांग्रेस के 24 और तृणमुल कांग्रेस के 19 राजनेताओं के खिलाफ कार्रवाई की।