मांस खा रही गाय! अगर पिया दूध तो जान पर होगा खतरा, ये जानकारी हैरान कर देगी

इन छेदों के कारण दिमाग धीरे-धीरे खराब होने लगता है और इसके बाद अन्य समस्याएं होती हैं। ये बीमारी किसी भी उम्र व लिंग के व्यक्ति को प्रभावित कर सकती है।

Update:2019-10-22 13:08 IST
मांस खा रही गाय! अगर पिया दूध तो जान पर होगा खतरा, ये जानकारी हैरान कर देगी

पणजी: आमतौर पर सभी गायों को शाकाहारी खाना खिलाते हैं। हमने हमेशा गायों को शाकाहारी खाना खाते ही देखा है। मगर अब हम आपसे कहें कि कुछ गाय मांसाहारी हैं और वो घास की जगह फिश और चिकन खाती हैं, तो आप भी हैरान हो जाएंगे और हंसेंगे। दरअसल गोवा से एक अजीबोगरीब मामला सामने आया है।

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घास की जगह फिश खाती हैं गाय

यहां 76 गाय ऐसी हैं, जो मांसाहारी खाना खाती हैं। इस मामले में गोवा के अपशिष्ट प्रबंधन मंत्री माइकल लोबो ने बताया है कि, ‘गायों की ये आदत इस वजह से पड़ी क्योंकि वह कचरे से बचा हुआ खाना खाती थीं। यह बचा हुआ चिकन और फिश या कोई अन्य मांसाहारी खाना होता था, जिसकी वजह से गायों की मांसाहारी खाना खाने की आदत पड़ गई।’

76 मवेशियों को गौशाला लाया गया

इन 76 मवेशियों को कैलंगुट क्षेत्र से गौशाला में लाया गया है और अब इनकी देखभाल की जा रही है। साथ ही, लोबो ने ये भी दावा किया कि मुश्किल से 4-5 दिनों में इन मवेशियों को शाकाहारी बना दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि यह आवारा मवेशी अब घास नहीं खाते, न चने खाते हैं और न ही उन्हें दिया गया विशेष चारा ही खाते हैं। हालांकि, अब यह गौशाला आ गए हैं तो अब इनकी देखभाल की जा रही है। इन मवेशियों को सामान्य बनाने के लिए पशु चिकित्सकों की मदद ली जा रही है।

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पहला मौका नहीं जब मांसाहारी खाना खा रहीं गाय

वैसे ये पहला मौका नहीं है आवारा मवेशी मांसाहारी खाना खा रहे हों। इससे पहले भी साल 2007 में पश्चिम बंगाल से एक ऐसा ही मामला सामने आया था, जहां से ये सूचना आई थी कि एक बछड़े को ज़िंदा मुर्गे का आहार लेना पसंद हैं।

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यही नहीं, इस मामले में ये बात भी सामने आई थी कि गौशाला में बछड़े को ज़िंदा मुर्गे का आहार परोसा भी जाता था। हालांकि, जब गौशाला का मालिक मामले की जांच करने के लिए गौशाला पहुंचा और बछड़े पर निगरानी रखी तो पाया बछड़े की आहार प्राथमिकता बदल गई है।

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यह आहार प्राथमिकता तब बदली, जब गौशाला मालिक एक रात के लिए गौशाला में रुका। मालिक का दावा था कि वह एक रात यह जांचने के लिए गौशाला में रुका कि उसकी 48 मुर्गियां कहां गायब हो गईं। हालांकि, इससे कभी पर्दा नहीं उठ पाया।

गाय पर होती आ रही है राजनीति

कुछ समय पहले बीजेपी ने अमेरिकी डेयरी प्रोडक्ट के आयात पर विरोध जताया था। दरअसल भारतीय वाणिज्य मंत्रालय एवं उद्योग मंत्रालय का कहना था कि उसके इस फैसले के पीछे सांस्कृतिक और धार्मिक संवेदनाएं हैं, जिन पर समझौता नहीं किया जा सकता। इस मामले में भारतीय वाणिज्य मंत्रालय एवं उद्योग मंत्रालय ने आगे अपने में बयान में कहा था कि, ‘हम ब्लड मील (मांसाहार) चारा खाने वाले जानवरों के दूध से बना कोई भी प्रोडक्ट आयात नहीं करेंगे।’

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दरअसल, अमेरिका और यूरोप के कई देशों में दुधारू पशुओं के चारे में गाय-सूअर, भेड़ का मांस और खून मिलाया जाता है। ब्लड मील खिलाने से पशु ज्यादा दूध देते हैं, खासकर गायें। इसी मामले में साल 2012 में बीजेपी लीडर सुषमा स्वराज ने भी अपना बयान दिया था और कहा था कि इस फैसले के पीछे सांस्कृतिक और धार्मिक संवेदनाएं हैं। यही नहीं, सुषमा स्वराज ने एक यूएस एंबेसडर से ये भी था कि, ‘हमारे देश में गाय शाकाहारी है, आप उसे मांसाहारी खिलाते हैं।’

गायों के लिए अच्छा नहीं है मांसाहारी खाना

गायों के आहार में मांस सिर्फ अप्राकृतिक नहीं है, बल्कि इसकी वजह से मवेशियों में अन्य दुष्परिणाम भी हो सकते हैं। इससे गायों को खतरा तो है ही, साथ में, कई अन्य दुष्परिणाम भी हैं। दरअसल, जब मवेशियों को मांसाहारी खाना खिलाया जाता है तो कई बार मांसाहारी खाना संक्रमित होता है और उसमें कई तरह की बीमारियां होती हैं। ऐसे में जब गाय ये खाना खाती है तो उनका दूध भी संक्रमित हो जाता है।

क्या होती है मैड काऊ बीमारी (mad cow disease)?

इसके बाद इस संक्रमित दूध का सेवन इंसान करते हैं। इसकी वजह से इंसानों में मैड काऊ (mad cow disease) जैसी घातक बीमारी हो जाती है। मैड काऊ बीमारी का कोई इलाज नहीं है। मगर इसके लक्षणों से आराम के लिए आपका उपचार किया जा सकता है। इस बीमारी के तहत व्यक्ति के दिमाग में छोटे-छोटे छेद होने लगते हैं, जिससे दिमाग एक स्पंज की तरह लगने लगता है।

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इन छेदों के कारण दिमाग धीरे-धीरे खराब होने लगता है और इसके बाद अन्य समस्याएं होती हैं। ये बीमारी किसी भी उम्र व लिंग के व्यक्ति को प्रभावित कर सकती है। मैड काऊ डिजीज होने पर व्यक्ति को तंत्रिकाओं से संबंधित समस्याएं होने लगती हैं, जैसे डिप्रेशन और शरीर के अंगों में ताल-मेल बिठाने में दिक्कत। समस्या बढ़ने पर व्यक्ति को डिमेंशिया भी हो सकता है।

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