वल्लभ भाई पटेल को ऐसे मिली सरदार की उपाधि, जानिए उनसे जुड़ी बड़ी बातें

सरदार पटेल 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाद में जन्मे थे। उनके पिता का नाम झावेर भाई और माता का नाम लाडबा पटेल था। 1897 में 22 साल की उम्र में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की।

Update: 2020-12-15 05:25 GMT
Sardar Patel Death Anniversary: लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की आज 70वीं पुण्यतिथि है। आजादी के बाद सरदार पटेल को गृह मंत्री बनाया था।

नई दिल्ली: Sardar Patel Death Anniversary: लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल की आज 70वीं पुण्यतिथि है। आजादी के बाद सरदार पटेल को गृह मंत्री बनाया था। भारत में सभी छोटी और बड़ी रियासतों का भारत में विलय कराने में सरदार पटेल की भूमिका अहम रही। सरदार पटेल की उपलब्धियों के लिए देश उनको याद करता है।

सरदार पटेल 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाद में जन्मे थे। उनके पिता का नाम झावेर भाई और माता का नाम लाडबा पटेल था। 1897 में 22 साल की उम्र में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की। वल्लभ भाई की शादी झबेरबा से हुई और पटेल जब सिर्फ 33 साल के थे, तब उनकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया। सरदार पटेल की पुण्यतिथि के मौके पर हम आपको उनसे जुड़ी कुछ बता बताते हैं। इन बातों के बारे में कम ही जानते होंगे।

-पहाड़ों की रानी मसूरी का देश को आजादी दिलाने वाले नायकों से गहरा नाता था। देश को एक सूत्र में पिरोने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल को यह जगह काफी पसंद थी। लौह पुरुष अपने जीवनकाल में कई बार मसूरी गए। मसूरी में वह हैप्पीवैली स्थित बिरला हाउस और कैमल्स बैक रोड स्थित पदमपत सिंघानिया के कमला कैसेल में रहते थे।

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-सरदार पटेल किसी पर भी अन्याय को सहन नहीं करते थे और हमेशा अन्याय का विरोध करते थे। इसकी शुरुआत उन्होंने अपने स्कूल के दिनों से ही कर दी थी। नडियाद में वह जिस स्‍कूल में पढ़ते थे वहां के अध्यापक पुस्तकों का व्यापार करते थे और छात्रों को विवश करते थे कि पुस्तकें उन्हीं से खरीदें। सरदार पटेल ने इसका विरोध किया और उन्होंने छात्रों को प्रेरित किया कि अध्यापकों से पुस्तकें न खरीदें। इसके बाद अध्यापकों और विद्यार्थियों में संघर्ष शुरू हो गया। कई दिनों तक स्‍कूल बंद रहा। अंत में जीत सरदार पटेल की ही हुई। अध्यापकों ने पुस्तकें बेचनी बंद कर दीं।

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-बारडोली सत्याग्रह का नेतृत्व वल्लभ भाई पटेल कर रहे थे। सत्याग्रह की सफलता मिलने के बाद वहां की महिलाओं ने उन्हें 'सरदार' की उपाधि दी। आजादी के बाद अलग-अलग रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में सरदार पटेल की भूमिका अहम रही है। इसके लिए उनको भारत का बिस्मार्क और लौहपुरुष भी कहा जाता है। सरदार पटेल वर्णभेद और वर्गभेद के कट्टर विरोधी थे।

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