सेक्स वर्करों पर बड़ी खबर: सुप्रीम कोर्ट ने सुना दिया फैसला, वेश्यावृति को माना गया पेशा

Supreme Court on Prostitution: देशभर के सेक्स वर्करों के लिए एक बड़ा अहम दिन साबित हुआ है। सर्वोच्च अदालत ने उनके साथ हो रहे दुर्व्यवहार को खत्म करने की दिशा में बड़ी पहल की है।

Update:2022-05-26 14:57 IST

सुप्रीम कोर्ट में सेक्स वर्करों की बड़ी जीत (फोटो- कॉंसेप्ट , सोशल मीडिया)

Supreme Court on Prostitution: गुरूवार का दिन देशभर के सेक्स वर्करों (sex workers) के लिए एक बड़ा अहम दिन साबित हुआ है। देश की सर्वोच्च अदालत ने उनके साथ हो रहे दुर्व्यवहार को खत्म करने की दिशा में बड़ी पहल की है। सुप्रीम कोर्ट ने वेश्यावृति (prostitution) को एक पेशा माना है।

अदालत ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की पुलिस को आदेश दिया है कि उन्हें सेक्स वर्कस (Court Order on sex workers) के साथ सम्मान से पेश आना चाहिए और उनके काम में कोई हस्तेक्षप नहीं करना चाहिए।

सदियों से अपमान का घूंट पीकर समाज में वेश्यावृति का काम करने वाली महिलाओं के लिए गुरूवार का दिन किसी ऐतिहासिक दिन से कम नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने उनके काम पर मुहर लगाते हुए उसे भी एक प्रोफेशन माना है और पुलिस से वयस्क और सहमति से सेक्स वर्क करने वाली महिलाओं पर किसी तरह का आपराधिक कार्रवाई नहीं करने का आदेश दिया है। अदालत ने इस दौरान एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा, सेक्स वर्कर्स भी कानून के तहत गरिमा और समान सुरक्षा के हकदार हैं।

पुलिस को दिए गए सख्त निर्देश

सेक्स वर्कर्स की सबसे बड़ी शिकायत रहती है कि पुलिस उनके साथ बेहद घटिया बर्ताव करती है। उनके साथ ऐसा व्यवहार करती है, मानो वो समाज के सबसे खतरनाक अपराधियों में से हों। अदालत ने आज इसपर स्पष्ट करते हुए कहा कि सेक्स वर्कर व्यस्क हैं और अपनी मर्जी से यह काम कर रही हैं।

ऐसे में पुलिस को उसमें हस्तक्षेप करने और उनके खिलाफ आपराधिक कार्रवाई करने से बचना चाहिए। पुलिस को सभी सेक्स वर्कर्स से सम्मान के साथ व्यवहार करना चाहिए और उन्हें मौखिक या शारीरिक रूप से दुर्व्यवहार नहीं करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एल नागेश्वर राव, बीआर गवई और एएस बोपन्ना की बेंच ने कहा कि सेक्स वर्कर्स भी कानून के समान संरक्षण के हकदार हैं।

पीठ ने कहा कि इस देश के हरेक शख्स को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सम्मानजनक जीवन का अधिकार है। अदालत ने पुलिस को सख्त निर्देश देते हुए कहा कि वो जब भी छापा मारे तो सेक्स वर्कर्स को अरेस्ट या परेशान न करे, क्योंकि मर्जी से इस काम में शामिल होना अवैध नहीं है, केवल वैश्यालय चलाना अवैध है।

शीर्ष अदालत की बेंच ने कहा, यदि किसी सेक्स वर्कर का यौन उत्पीड़न होता है, तो उसे भी कानून के तहत मेडिकल सहायता और अन्य सभी सुविधाएं उपलब्ध करवाई जानी चाहिए। पुलिस और अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों को सेक्स वर्कर के अधिकारों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए।

मीडिया के लिए भी निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस फैसले में मीडिया के लिए भी निर्देश जारी किए हैं। अदालत ने कहा कि प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया से उचित दिशा निर्देश जारी करने की अपील की जानी चाहिए, ताकि गिरफ्तारी, छापे या किसी अन्य अभियान के दौरान सेक्स वर्कर्स की पहचान उजागर न हो, चाहे वो पीड़ित हो या अपराधी। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने ये विस्तृत आदेश सेक्स वर्कर्स के पुनर्वास को लेकर बनाए गए पैनल की सिफारिश पर दिए हैं। 

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