नई दिल्ली: एससी-एसटी एक्ट में संशोधन के बिल को राज्यसभा से मंजूरी मिल गई है। इसके साथ ही अब सुप्रीम कोर्ट की ओर से इस एक्ट के तहत तत्काल गिरफ्तारी के प्रावधान पर लगाई गई रोक भी समाप्त हो गई है। लोकसभा से इस संशोधन बिल को मंगलवार को मंजूरी दी जा चुकी थी।
बता दें कि शीर्ष अदालत ने इसी साल 19 मई को एससी-एसटी ऐक्ट के तहत शिकायत मिलने पर तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। बड़े पैमाने पर इस कानून के बेजा इस्तेमाल का हवाला देते हुए उच्चतम न्यायालय ने यह फैसला सुनाया था।
SC के फैसले से बीजेपी के दलित नेता थे नाखुश
कोर्ट के इस फैसले के बाद देश भर में दलित संगठन गुस्सा जताते हुए सड़क पर उतर आए थे। विरोध-प्रदर्शनों के दौरान तमाम संगठनों ने सरकार से अदालत के फैसले को पलटने की अपील की थी और फैसले को दलितों के खिलाफ करार दिया था। दलित समुदाय के बीच शीर्ष अदालत के फैसले का भारी विरोध नजर आने के बाद सहयोगी दल भी बीजेपी पर दबाव बना रहे थे। यही नहीं पार्टी के दलित सांसदों ने भी पुराने ऐक्ट को लागू करने की मांग की थी। इसके बाद बीजेपी की लीडरशिप वाली केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत के फैसले को पलटने के लिए संशोधन विधेयक लाने का फैसला लिया था। बता दें कि इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका को भी खारिज कर दिया था।
ये भी पढ़ें... हाईकोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट में अपील की सुनवाई को लेकर मांगी वकीलों की राय
सुप्रीम कोर्ट के हटाए प्रावधान फिर होंगे लागू
अब संशोधित बिल में उन सभी पुराने प्रावधानों को शामिल किया जाएगा, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में हटा दिया था। अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लोगों पर होने वाले अत्याचार और उनके साथ होने वाले भेदभाव को रोकने के मकसद से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम, 1989 बनाया गया था।
जाति के नाम पर अपमान है गैरजमानती अपराध
इसके तहत इन लोगों को समाज में एक समान दर्जा दिलाने के लिए कई प्रावधान किए गए। इन पर होने वाले अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष व्यवस्था की गई ताकि ये अपनी बात खुलकर रख सकें। इस ऐक्ट के तहत किसी की जाति को आधार बनाते हुए उस अपमानिक करने को गैर जमानती अपराध माना गया है।