सीवेज का पानी बताएगा कितना है कोरोना वायरस का प्रकोप
किसी समुदाय में कोविड-19 कोरोनावायरस से कितने लोग संक्रमित हुये हैं ये पक्का पता नहीं चल पा रहा है। अधिकांश लोगों का परीक्षण नहीं किया जाएगा ये तो तय है।
नीलमणि लाल
नई दिल्ली: किसी समुदाय में कोविड-19 कोरोनावायरस से कितने लोग संक्रमित हुये हैं ये पक्का पता नहीं चल पा रहा है। अधिकांश लोगों का परीक्षण नहीं किया जाएगा ये तो तय है। ऐसे में संक्रमित लोगों की निश्चित संख्या पता लगाने के लिए दुनिया भर में एक दर्जन से अधिक रिसर्च ग्रुप्स ने नया उपाय किया है। इसके लिए वे ‘अपशिष्ट जल’ या सीवेज के पानी का विश्लेषण कर रहे हैं।
इस विधि से कोरोनोवायरस का लगेगा पता
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस विधि का इस्तेमाल कोरोनोवायरस का पता लगाने के लिए भी किया जा सकता है। अपशिष्ट जल यानी सीवेज में बहने वाले पानी का विश्लेषण करके शोधकर्ता संक्रामक रोगों को ट्रैक कर सकते हैं। इसकी वजह है कि बीमारियों के वायरस मल-मूत्र में उत्सर्जित होते हैं। नीदरलैंड के निउवेगीन में केडब्लूआर वॉटर रिसर्च इंस्टीट्यूट के एक माइक्रोबायोलॉजिस्ट गर्टजन मेडेमा कहते हैं कि एक ट्रीटमेंट प्लांट में दस लाख से अधिक लोगों के अपशिष्ट पानी को कैप्चर किया जा सकता है।
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इस पैमाने पर प्रभावशाली निगरानी से इस बात का बेहतर अनुमान लग सकता है कि कोरोनोवायरस परीक्षण की तुलना में संक्रमण कितना व्यापक है। क्योंकि अपशिष्ट निगरानी से उन लोगों का भी पता लग सकता है जिनका परीक्षण नहीं किया गया है। या जिनमें केवल हल्के या कोई लक्षण नहीं हैं। मेडिमा ने सार्स-कोव-2 वायरस के जेनेटिक मैटिरियल - वायरल आरएनए - का पता लगाया है।
अपशिष्ट जल के नमूनों से जनसंख्या में संक्रमण की व्यापकता को निर्धारित करने के लिए यह पता लगाना होगा कि वायरल आरएनए कितने मल में उत्सर्जित होते हैं और अपशिष्ट जल के नमूनों में वायरल आरएनए की गहनता से आबादी में संक्रमित लोगों की संख्या को गिना जा सकेगा। इस विधि से पहले भी नोरोवायरस, एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया, पोलियो वाइरस और खसरे का पता लगाया जा चुका है।
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पूर्व चेतावनी संकेत
वैज्ञानिकों का कहना है कि संक्रमण नियंत्रण के उपाय से शायद वर्तमान महामारी को दबा दिया जाए लेकिन नियंत्रण हटाने के बाद वायरस वापस आ सकता है। भविष्य में कोविड-19 के नए संक्रमणों की चेतावनी के लिए नियमित अपशिष्ट निगरानी को इस्तेमाल किया जा सकता है।
अपशिष्ट से पता चला मामला
नीदरलैंड में कोविड-19 के पहले मामले की पुष्टि होने के चार दिन बाद ही टिलबर्ग के शिफोल हवाई अड्डे पर सीवेज के पानी के परीक्षण से कोविड-19 के निशान पाये गए थे। शोधकर्ताओं ने अब नीदरलैंड के सभी 12 प्रांतों की राजधानियों और 12 अन्य जगहों में सैंपलिंग का विस्तार करने की योजना बनाई है। ये ऐसी जगहें हैं जहां कोविड-19 के कन्फ़र्म केस नहीं मिले हैं। लोगों में संक्रमण का पता लगने से पूर्व ही अपशिष्ट जल के परीक्षण से एमर्सफोर्ट शहर में वायरल आरएनए वायरल पाया था।
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मल में वायरस
स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में एक पर्यावरणीय वायरोलॉजिस्ट, तामार कोहन के अनुसार अध्ययनों से पता चला है कि संक्रमण के तीन दिनों के भीतर मल में कोविड-19 दिखाई दे सकता है। लोगों में किसी लक्षण आने से पहले ही मल में ये संकेत आ जाता है। गंभीर लक्षण विकसित होने की तुलना में ये काफी पहले हो जाता है। वह बताती हैं कि अपशिष्ट जल में वायरल कणों को ट्रैक करने से स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को यह पता चल सकता है कि तालाबंदी जैसे उपायों को शुरू किया जाना चाहिए। निदान में सात से दस दिन का अंतर इस प्रकोप की गंभीरता में बहुत अंतर ला सकते हैं।
ऐसे ही पकड़ा जाता है पोलियो वायरस
पोलियो वायरस के खिलाफ टीकाकरण अभियानों की सफलता का आकलन करने के लिए दशकों से अपशिष्ट जल निगरानी का उपयोग किया गया है। अमेरिका में यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना के पर्यावरण माइक्रोबायोलॉजिस्ट चार्ल्स गेरबा कहते हैं कि इस दृष्टिकोण का उपयोग कोविड-19 को पकड़ने के लिए किया जा सकता है।
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