Lok Sabha elections : शत्रुघ्न सिन्हा व रविशंकर में दिलचस्प मुकाबला

Update: 2019-05-14 10:40 GMT
Lok Sabha elections : शत्रुघ्न सिन्हा व रविशंकर में दिलचस्प मुकाबला

पटना : लोकसभा चुनाव के छह चरण समाप्त होने के बाद अब सबकी नजर सातवें चरण पर टिकी हुई है। बिहार में सातवें चरण के लिए आठ सीटों पर काफी दिलचस्प मुकाबला दिख रहा है। इन सभी सीटों पर बीजेपी और महागठबंधन के बीच कांटे की टक्कर है। बिहार में सातवें चरण में पटना साहिब सबसे वीआईपी सीट मानी जा रही है क्योंकि इस सीट पर दो दिग्गजों के बीच दिलचस्प मुकाबला दिखाई दे रहा है। इस सीट पर कांग्रेस के शत्रुघ्न सिन्हा का मुकाबला बीजेपी के केद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद से है।

बिहार में पटना साहिब सीट पर भाजपा को काफी मजबूत माना जाता रहा है। शत्रुघ्न सिन्हा ने 2009 व 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर इस सीट से विजय हासिल की थी। हालांकि अब वे कहते हैं कि लोगों ने उनका चेहरा देखकर ही वोट दिया था। वैसे बिहार में कहा जाता है कि राज्य की तीन सीटों पर कोई बहस नहीं हो सकती क्योंकि यह पहले से तय होता है कि यहां से कौन जीतेगा। इन तीन सीटों में पटना साहिब, नालंदा और किशनगंज शामिल हैं। बिहार में माना जाता है कि पटना साहिब से बीजेपी, नालंदा से जेडीयू और किशनगंज से कांग्रेस किसी को भी टिकट दे दे तो वह आसानी से जीत जाएगा। यह लगातार साबित भी होता आया है। ऐसे में अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या इस बार इस सीट से शत्रुघ्न सिन्हा इस मिथक को तोड़ पाएंगे क्योंकि वे इस बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे हैं।

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2009 में बनी थी यह सीट

शत्रुघ्न सिन्हा ने पिछले दो चुनावों में यहां से विजय हासिल की थी मगर यह भी सच्चाई है कि परिसीमन के पहले राजद के रामकृपाल यादव ने 2004 में यह सीट जीती थी। 2009 में पटना साहिब और पाटलीपुत्र नाम से दो लोकसभा सीटें बनाई गईं। मजे की बात यह है कि इन दोनों सीटों पर इस बार कड़ा मुकाबला हो रहा है। जहां पटना साहिब में शत्रुघ्न सिन्हा और रविशंकर के बीच मुकाबला है, वहीं पाटलीपुत्र में आरजेडी की मीसा भारती और बीजेपी के रामकृपाल के बीच कड़ी टक्कर दिख रही है। मीसा भारती इस सीट पर पिछला चुनाव रामकृपाल यादव से हार गई थीं। इसलिए इस बार राजद ने इस सीट पर पूरी ताकत झोंक रखी है।

कायस्थ वोटर निर्णायक भूमिका में

परिसीमन के बाद पटना साहिब में कायस्थ वोट ही निर्णायक हैं और इस बार दो कायस्थ मैदान में हैं और एक तीसरे कायस्थ नेता भी हैं जो परदे के पीछे से इस चुनाव में असर डाल रहे हैं। परदे के पीछे से सक्रिय कायस्थ नेता राज्यसभा के सांसद आरके सिन्हा हैं। उन्होंने अपनी संपत्ति 800 करोड़ की घोषित की है और वे अपने बेटे के लिए टिकट चाहते थे। यही वजह है कि जब लोकसभा का टिकट लेकर रविशंकर प्रसाद पटना पहुचे थे तो एयरपोर्ट पर ही आरके सिंहा और रविशंकर प्रसाद के सर्मथकों में भिड़ंत भी हो गई थी। पटना साहिब के 6 में से 5 विधानसभा सीटों पर बीजेपी का कब्जा है और फतुहा की एक सीट आरजेडी के पास है। इस तरह कांग्रेस यहां कोई बड़ी ताकत नहीं है और शत्रुघ्न सिन्हा उसी के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं।

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पहली बार चुनावी रण में उतरे हैं रविशंकर प्रसाद

यदि 2009 के चुनाव पर नजर डाली जाए तो इस चुनाव में यहां बीजेपी को 57 फीसदी और 2014 में 55 फीसदी वोट मिले थे मगर इस बार दो कायस्थ नेताओं के बीच टक्कर होने के कारण मतदाता बंटे हुए हैं। वैसे बहुत से लोग दोनों नेताओं को एक जैसा ही मानते हैं। वे कहते हैं कि जैसे शत्रुघ्न सिन्हा नहीं आते थे, वही हाल रविशंकर प्रसाद का भी होगा। रविशंकर प्रसाद जीवन भर राज्यसभा में रहे हैं। पहली बार वे लोकसभा के रण में उतरे हैं। उन्होंने पिछला चुनाव उन्होंने 45 साल पहले लड़ा था वो भी पटना विश्वविद्यालय के छात्रसंघ का। उस चुनाव में लालू यादव अध्यक्ष पद पर चुनाव जीते थे और सुशील मोदी और रविशंकर प्रसाद अन्य पदों पर विजयी हुए थे। उसके बाद रविशंकर प्रसाद पहली बार चुनाव मैदान में उतरे हैं। अभी उनका राज्यसभा में पाच साल का टर्म बचा है। शत्रुघ्न सिन्हा हो मस्लिम यादव और कांग्रेस वोटों का भरोसा है। साथ में उनका अपना स्टार पावर यानि बिहारी बाबू का तमगा। उन्हें लगता है कि अगर उन्होंने कायस्थ वोट में सेंध लगा दी तो बात बन सकती है। दूसरी ओर रविशंकर प्रसाद को प्रधानमंत्री मोदी की साफ सुथरी छवि के साथ-साथ पार्टी संगठन की ताकत पर भी भरोसा है।

वैसे एक सच्चाई यह भी है कि लखनऊ के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी प्रमोद कृष्णन को छोड़कर सपा प्रत्याशी पूनम सिन्हा का प्रचार करने से कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ता शत्रुघ्न सिन्हा से नाराज भी हैं। लेकिन फिर भी शत्रुघ्न सिन्हा को जनसमर्थन मिलने की उम्मीद है। कुल मिलाकर इस सीट पर दिलचस्प मुकाबला हो रहा है।

 

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