नरमी ने चढ़ाया कोविड का ग्राफ

कोरोना वायरस के कारण लागू लॉकडाउन नें रियायत मिलने के बाद दुनिया के कुछ सबसे ज्यादा आबादी वाले देशों में लाखों लोग बाहर पर निकल गए और नतीजा यह हुआ कि भारत समेत कई देशों में एक दिन में संक्रमण के सबसे ज्यादा मामले सामने आए

Update:2020-05-09 21:01 IST

विशेष प्रतिनिधि

नई दिल्ली कोरोना वायरस के कारण लागू लॉकडाउन नें रियायत मिलने के बाद दुनिया के कुछ सबसे ज्यादा आबादी वाले देशों में लाखों लोग बाहर पर निकल गए और नतीजा यह हुआ कि भारत समेत कई देशों में एक दिन में संक्रमण के सबसे ज्यादा मामले सामने आए जो चिंता का विषय है। ये खाई और कुएं जैसी स्थिति है। लॉकडाउन हमेश रह नहीं सकता और ढिलाई से वायरस बेकाबू होने लगता है।

लॉकडाउन में कुछ ढिलाई के बाद भारत में जहां 1 मई को 2396 नए केस आए थे वहीं इनकी संख्या 4 मई को 3900 पहुँच गई। रूस में पहली बार नए मामले 10 हजार के पार पहुंच गए। ब्रिटेन में कोविड-19 के कारण जान गंवाने वालों की संख्या इटली में मरने वालों के करीब पहुंच रही है जो यूरोप में इस बीमारी का केंद्र बना हुआ है। तुर्की में मौतों की संख्या अचानक से बढ़ी है। इन सभी देशों में एक बात कॉमन है – यहाँ लॉकडाउन अब उतना सख्त नहीं है।

हजारों मौतों की चेतावनी

अमेरिकी स्वास्थ्य अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि न्यूयॉर्क शहर को छोड़कर देश के जिन क्षेत्रों में लॉकडाउन से छूट दी जा रही है, वहां कोरोना संक्रमण की दर बढ़ रही है। अगर लॉकडाउन से छूट को नहीं रोका गया और संक्रमण की दर धीमी नहीं हुई तो आने वाले समय में हजारों लोगों की मौत हो सकती है। जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के अनुसार आंकड़ों के विश्लेषण से यह पाया गया कि लॉकडाउन के दौरान नए मामले आने की दर प्रति एक लाख लोगों पर 9.3 फीसद से घटकर 13 अप्रैल को 8.6 रह गई। अध्‍ययन में यह भी पाया गया कि लॉकडाउन के बिना उसी अवधि में अमेरिका में संक्रमण के नए मामलों की दर प्रति एक लाख लोगों पर 6.2 से बढ़कर 7.5 हो जाती है।

 

राहत के साथ जांच बढ़ाना जरूरी

स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चेताया है कि बंद में राहत के दौरान अगर जांच की संख्या को नहीं बढ़ाया गया तो संक्रमण का दूसरा दौर आ सकता है। हालांकि, दुनिया भर में कई हफ्तों की बंदी की वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था के 1930 के दशक की मंदी के स्तर पर पहुंच गई है, जिसकी वजह से कारोबार को फिर से खोलने के लिये दबाव बढ़ रहा है।

 

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पाबंदियों में ढील

- चीन में पांच दिन के अवकाश के दौरान घरेलू यात्रा पाबंदियों में छूट के बाद फिर से खुले पर्यटक स्थलों पर लोगों की भीड़ उमड़ी। अवकाश के शुरुआती दो दिनों में ही करीब 17 लाख लोग बीजिंग के पार्कों में पहुंचे जबकि शंघाई के मुख्य पर्यटन केंद्रों में 10 लाख से ज्यादा लोगों का आगमन हुआ।

- इटली में पाबंदियों से छूट दिये जाने की पूर्व संध्या पर 24 घंटों में 174 और लोगों की मौत की पुष्टि की। यह देश में 10 मार्च को शुरू हुए बंद के बाद दैनिक आधार पर सबसे कम संख्या है।

- स्पेन में देश में 14 मार्च को लागू हुए बंद के बाद बहुत से लोग पहली बार घरों से बाहर घूमने निकले हालांकि इस दौरान सामाजिक दूरी के नियम लागू रहे। लोगों की आवाजाही के लिये मास्क लगाना अनिवार्य है।

- ब्रिटेन में प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन पर यह बताने का दबाव बढ़ रहा है कि वह देश में बंद को कैसे हटाएंगे। देश में रोजाना कोविड-19 के कारण अब भी सैकड़ों लोगों की जान जा रही है। यह अब भी स्पष्ट नहीं है कि देश कैसे सुरक्षित तरीके से पाबंदियों में ढील देगा।

- अमेरिका के न्यू जर्सी में राजकीय उद्यानों को खोला गया लेकिन जल्द ही पार्किंग स्थल के 50 प्रतिशत भर जाने के बाद लोगों को वापस भेजना शुरू कर दिया गया।

- जॉन्स हॉपकिंस ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के स्वास्थ्य सुरक्षा केंद्र के निदेशक टॉम इंग्लैस्बी ने कहा कि अगर पाबंदी बहुत जल्द हटा दी गईं तो वायरस देश के विभिन्न स्थानों पर फिर से वापसी कर सकता है। इस बीच अमेरिका में बंद को खोलने और इसे जारी रखने के समर्थन में लोगों की राय बंटी हुई है। अमेरिकी संसद में भी यह देखने को मिला।

 

इन देशों ने लागू नहीं किया लॉकडाउन

दुनियाभर में कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन का सहारा लिया गया है। भारत के अलावा चीन, स्पेन और इटली में भी लंबे समय तक कड़ा लॉकडाउन लगाया गया। इससे न सिर्फ लोग अपने घरों में रहने को मजबूर हुए बल्कि अर्थव्यवस्था पर भी काफी असर पड़ा। इन सबके उलट कुछ ऐसे भी देश हैं, जिन्होंने लॉकडाउन लागू नहीं किया।

 

33 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित

जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के मुताबिक, दुनिया के 187 देशों/क्षेत्रों में फैल चुके कोरोना वायरस अब तक 33 लाख से ज्यादा लोगों को संक्रमित कर चुका है और 2.3 लाख से ज्यादा लोगों की जान ले चुका है।

 

स्वीडन की चर्चा

कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन लागू न करने के लिए स्वीडन की काफी चर्चा हो रहा है। एक करोड़ से ज्यादा जनसंख्या वाले देश में 21,000 लोग महामारी से संक्रमित हैं और 2,400 से ज्यादा जान गंवा चुके हैं। इसके बावजूद यहां स्कूलों और कारोबारों को बंद नहीं किया गया है। हालांकि, लोगों से जरूरी न होने पर घरों से बाहर न निकलने की अपील की गई है, जबकि बुजुर्गों के लिए कुछ पाबंदियां लगाई हैं। स्वीडन ने संक्रमण रोकने के लिए लॉकडाउन जैसा फैसला लेने की जगह लोगों पर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने की जिम्मेदारी डाल दी। कहा जा रहा है कि स्वीडन ज्यादा से ज्यादा लोगों को संक्रमित होने दे रहा है ताकि 'हर्ड इम्युनिटी' बन सके और लोग इस वायरस से बीमार न हों।

दक्षिण कोरिया ने अपनाए ये तरीके

महामारी के शुरुआती दौर में दक्षिण कोरिया उन देशों में शामिल था, जो इससे सबसे बुरी तरह प्रभावित हुए। हालांकि, समय रहते हुए दक्षिण कोरिया ने बिना लॉकडाउन लागू किए संक्रमण की रफ्तार पर रोक लगा ली। इसके लिए यहां तेजी से ज्यादा लोगों की टेस्टिंग, कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और आईसोलेशन पर जोर दिया गया। दक्षिण कोरिया में कोरोना वायरस संक्रमितों की संख्या 10,000 से ज्यादा है और लगभग 250 लोगों की मौत हो चुकी है।

 

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तजाकिस्तान में रोक

तजाकिस्तान में 30 अप्रैल को एक साथ 15 मामले सामने आए। देश में महामारी के ये पहले मामले थे। हालांकि, बीते सप्ताह से यहां स्कूल बंद हैं। यहां भीड़ के इकट्ठा होने पर रोक लगी है और लोगों के लिए मास्क पहनना अनिवार्य है।

तुर्कमेनिस्तान अभी तक कोरोना मुक्त

तुर्कमेनिस्तान दुनिया के उन चुनिंदा देशों में शामिल है, जहां अभी तक इस महामारी का एक भी मामला सामने नहीं आया है। चीन में कोरोना वायरस के शुरुआती मामले सामने आते ही तुर्कमेनिस्तान ने बीजिंग और बैंकॉक से आने वाली और बाद में सभी अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके अलावा इसने फरवरी के अंत में दूसरे देशों से अपने नागरिकों को निकालना शुरू कर दिया था। तुर्कमेनिस्तान में अभी तक लॉकडाउन लागू नहीं किया गया है, लेकिन यहां बड़े शहरों में प्रवेश से पहले लोगों की थर्मल स्क्रीनिंग की जा रही है। इसके अलावा कई राज्यों से दूसरे राज्यों में आवागमन पर रोक जारी है। कुछ रिपोर्ट्स में यह भी कहा गया है कि देश में कोरोना वायरस शब्द के इस्तेमाल पर भी रोक लगा दी गई है और इसके बारे में बात करने वाले लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा है। स्थानीय मीडिया इस महामारी को ऐसे दिखा रहा है जैसे यह कभी आई ही नहीं।

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