तकनीक और कला के मिश्रण से बना सौ गुना ज्यादा बिजली पैदा करने वाला सोलर ट्री

Update:2018-05-29 16:54 IST

नई दिल्ली: सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी नेशनल रिसर्च डेवलपमेंट कारपोरेशन (एनआरडीसी) के वैज्ञानिकों ने तकनीक और कला के मिश्रण (फ्यूजन) से एक ऐसा सोलर ट्री तैयार किया है जिसमें परंपरागत सोलर पावर प्लांट के मुकाबले 100 गुना ज्यादा बिजली पैदा की जा सकती है। इसमें परंपरागत प्लांट के मुकाबले महज एक फीसदी जमीन की आवश्यकता होती है। सोलर पावर प्लांट लगाने में सबसे ज्यादा जरूरत जमीन की होती है। पर इन वैज्ञानिकों ने जो सौर वृक्ष बनाया है, उसमें धातु का एक वृक्ष तैयार किया है जिसकी टहनियों पर फोटो वोल्टिक सेल लगा होता है, जिससे बिजली पैदा होती है।

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एनआरडीसी के वैज्ञानिकों के अनुसार यदि एक मध्यवर्गीय परिवार की बात की जाए तो तीन किलोवाट का सोलर पावर ट्री पर्याप्त होगा। इसे महज चार वर्ग फुट जमीन पर लगाया जा सकता है। यह वृक्ष इतना मजबूत होता है कि यह 200 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाले तूफान को भी झेल जाता है। यदि किसी परिवार की ऊर्जा की आवश्यकता बढ़ती है तो इसे 12 किलोवाट क्षमता तक भी बढ़ाया जा सकता है। यदि छोटा परिवार है तो एक किलोवाट का सोलर ट्री ही उसकी आवश्यकता के लिए पर्याप्त है।

एक किलोवाट के सोलर पावर ट्री को लगाने का खर्च करीब 85,000 रुपये पड़ता है। यह सोलर पावर ट्री वाणिज्यिक संगठनों के लिए मुफीद रहेगा, क्योंकि उन्हें औसतन 7-8 रुपये प्रति यूनिट पर बिजली मिलती है, जबकि इससे 3.5 रुपये प्रति यूनिट पर ही बिजली मिल जाएगी। यदि उनका उपयोग कम है तो फालतू बिजली को ग्रिड में डाल कर उससे पैसे भी कमा सकते हैं।

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सस्ते और ड्यूरेबल वाटर टैंक पर हो रहा है काम

एनआरडीसी के निदेशक का कहना है कि एक प्रयोगशाला में सस्ते और ड्यूरेबल वाटर टैंक पर काम हो रहा है, जिसे फ्लोवेबल सीमेंट मोर्टार (एफसीएम) के उपयोग से बनाया गया है। इसे फेरोसीमेंट वाटर टैंक भी कहते हैं। इसे 25 से 30 मिलीमीटर मोटे फेरोसीमेंट प्लेट से बनाया जाता है। इसलिए यह कंक्रीट, प्लास्टिक या किसी धातु से बने वाटर टैंक के मुकाबले हल्का होता है।लेकिन मजबूती में यह स्टील प्लेट से बने वाटर टैंक जितना मजबूत होता है। यह फेरोसीमेंट का बना है, इसलिए इसमें जंग लगने का भी खतरा नहीं है। यह पूरी तरह से वाटरप्रूफ है। इसका उपयोग घरों, स्कूल या कल-कारखाने कहीं भी किया जा सकता है। अच्छी बात यह है कि इसे कहीं भी तैयार किया जा सकता है और इसे बनाने में औद्योगिक अवशिष्ट पदार्थों का उपयोग होता है।

 

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