भगवान की दोस्ती: जिनकी मिसाल देती है दुनिया, मशहूर हैं ये किस्से

श्रीकृष्ण और सुदामा की दोस्ती बहुत अनोखी थी। दोनों की दोस्ती ने दुनिया को यह संदेश दिया कि मित्रता रंग-रूप, जात-पात और पहनावे से बिल्कुल परे होती है।

Update:2020-07-30 18:07 IST
true friendship of Shri Krishna and Sudama

लखनऊ: आज यानी 30 जुलाई को पूरी दुनिया इंटरनेशनल फ्रेंडशिप डे (International Friendship Day 2020) सेलिब्रेट कर रही है। कहते हैं कि माता-पिता, भाई-बहन जैसे सभी रिश्ते आपके जन्म के साथ ही जुड़ जाते हैं, लेकिन दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है, जिसे आप खुद चुनते हैं। दोस्ती रंग-रूप, जात-पात, हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई से परे होती है। मित्र, दोस्त, फ्रेंड वैसे तो अलग-अलग शब्द हैं, लेकिन सार और जज्बात एक समान हैं।

दो ऐसे दोस्त जिनकी दोस्ती की मिसाल देती है दुनिया

एक दोस्त होता है जो मुसीबत में कभी साथ नहीं छोड़ता। आपके साथ हर सुख-दुख में डटकर खड़ा रहता है। आज हम आपको दो ऐसे दोस्तों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनकी दोस्ती की मिसाल आज भी दी जाती है और जो युगों-युगों तक दी जाती रहेगी। हम बात कर रहें है भगवान श्रीकृष्ण और उनके मित्र सुदामा की।

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श्रीकृष्ण और सुदामा की दोस्ती

श्रीकृष्ण और सुदामा की दोस्ती बहुत अनोखी थी। दोनों की दोस्ती ने दुनिया को यह संदेश दिया कि मित्रता रंग-रूप, जात-पात और पहनावे से बिल्कुल परे होती है। दोस्ती में केवल दो चीजें जरूरी हैं और वो है केवल आपका भाव और व्यवहार। कृष्ण और सुदामा आचार्य संदीपन के आश्रम में साथ पढ़ा करते थे। इसी दौरान दोनों अटूट मित्रता में बंध गए। शिक्षा पूरी होने के बाद दोनों अपने-अपने जिंदगियों में व्यस्त हो गए।

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सुदामा की पत्नी ने बनाया श्रीकृष्ण से मदद मांगने का दबाव

श्रीकृष्ण मथुरा में अपने मामा कंश का वध करने के बाद द्वारका आकर रहने लगे और द्वारकाधीश कहलाए जाने लगे। वहीं दूसरी ओर सुदामा अपनी शादी शुदा जिंदगी जी रहे थे। लेकिन उनकी आर्थिक हालत उतनी अच्छी नहीं थी। बच्चों का पेट भी बहुत मुश्किल से भर पाते थे। ऐसे में उनकी पत्नी ने सुदामा पर अपने बचपन के मित्र श्रीकृष्ण से मदद मांगने का दबाव बनाने लगीं।

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बालसखा कृष्ण से मिलने द्वारका नगरी पहुंचे सुदामा

जब घर के हालात काफी खराब हो गए तो मजबूरन सुदामा अपने बालसखा कृष्ण से मिलने द्वारका नगरी पहुंचे। जब श्री कृष्ण को इस बात का पता चला तो वो खुशी से फूले नहीं समाए। वो महल से नंगे पाव दौड़कर ही द्वार तक आए और अपने मित्र को इतने समय बात देख गले लगा लिया। उसके बाद श्रीकृष्ण बहुत ही आदर और सम्मान से सुदामा को महल के अंदर लेकर आए और आसन पर बिठाया।

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अपने आंसुओं से धुलाएं सुदामा के पैर

श्रीकृष्ण ने सुदामा के पैरों में पड़े छाले देख उनके पैर अपने आंसुओं से धोए थे। सुदामा भी अपने बालसखा से मिलकर बेहद प्रसन्न थे। वो उन्हें देख इतने खुश थे कि बेहद रोए। सुदामा एक मुट्ठी चावल लेकर श्रीकृष्ण से मिलने गए थे। ऐसा कहा जाता है कि चावल का दाना खाने से ही सुदामा तृप्त हो गए थे। सुदामा ने संकोच के मारे श्रीकृष्ण से अपने हालात के बारे में कुछ नहीं बताया, ना ही मदद मांगी। लेकिन श्रीकृष्ण उनके बिन बोले ही सब कुछ समझ गए थे।

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श्रीकृष्ण ने ऐसे की थी मदद

जब कुछ दिन द्वारका में रहकर और श्रीकृष्ण से मिलकर सुदामा वापस लौटे तो वो अपना घर देख हैरान हो गए थे। क्योंकि वहां पर उनके झोपड़ी की जगह महल खड़ा था और उनकी पत्नी किसी महारानी से कम नहीं लग रही थी। सुदामा की पत्नी ने बताया कि श्रीकृष्ण के सेवक रातों रात यह महल खड़ा करके गए हैं और वहीं सारी सुविधाएं भी देकर गए। उस दिन सुदामा ने कहा कि सच में कृष्ण उनका घनिष्ठ और सच्चा मित्र है। क्योंकि उन्होंने बिना बोले ही उनकी दिल की बात जान ली और चुपचाप मदद भी कर दी। दोनों की मित्रता की मिसाल आज तक दी जाती है।

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