ये भी है कोरोना का कहर, देश में रोज हो रहीं 381 खुदकुशी
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा 2019 में भारत में हुई आत्महत्याओं पर जारी आंकड़ों में पता चला है कि 2019 में देश में प्रति एक लाख में 10.4 लोगों ने आत्महत्याएं कीं। 2016 में यह दर 10.3 थी, 2017 में 9.9 रही और 2018 में 10.2 पर थी।
नील मणि लाल
नई दिल्ली: देश में आत्महत्या के केस बढ़ते जा रहे हैं। 2019 में हर रोज औसतन 381 लोगों ने आत्महत्या की और पूरे साल कुल 1.39 लाख लोगों ने अपने जीवन को खुद खत्म कर लिया। यह संख्या 2018 के मुकाबले 3.42 प्रतिशत बढ़ी है। कोविड-19 महामारी से वर्ष 2020 में स्थिति और भी ख़राब हुई है, ऐसा एक्सपर्ट्स का मानना है।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा 2019 में भारत में हुई आत्महत्याओं पर जारी आंकड़ों में पता चला है कि 2019 में देश में प्रति एक लाख में 10.4 लोगों ने आत्महत्याएं कीं। 2016 में यह दर 10.3 थी, 2017 में 9.9 रही और 2018 में 10.2 पर थी। यानी बीते चार साल में इस वर्ष यह दर सर्वाधिक है।
2019 में आत्महत्या से मरने वालों में पुरुषों और महिलाओं का अनुपात 70.2 के मुकाबले 29.8 रहा। मरने वालों में 97,613 पुरुष थे, और उनमें सबसे ज्यादा संख्या (29,092) दिहाड़ी पर काम करने वालों की थी। 14,319 पुरुष स्व-रोजगार में थे और 11,599 बेरोजगार थे।
मरने वालों में कुल 41,493 महिलाएं थीं, जिनमें 21,359 गृहणी थीं, 4,772 विद्यार्थी थीं और 3,467 दिहाड़ी पर काम करने वाली थीं। महिलाओं में आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण दहेज और विवाह में उत्पन्न हुई अन्य समस्याओं को पाया गया। इनमें नपुंसकता और इनफर्टिलिटी भी शामिल हैं।
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शहरों में ज्यादा मामले
विश्लेषण में पता चला है कि शहरों में हर 1 लाख लोगों में 13.9 लोग खुदकुशी कर रहे हैं। ये राष्ट्रीय औसत 10.4 से कहीं ज्यादा है। आत्महत्याओं की दर दक्षिण भारत में सर्वाधिक रही है। तमिलनाडु में यह 16, आंध्र प्रदेश में 14 और केरल में 11 दर्ज की गई।
घरेलू कलह
घरेलू कलह सुसाइड का बहुत बड़ा कारण है। 32.4 प्रतिशत मामलों में आत्महत्या की वजह पारिवारिक वजहों को बताया गया। 17.1 प्रतिशत मामलों में आत्महत्या का कारण बीमारी थी। इसके अलावा 5.6 प्रतिशत मामलों के पीछे ड्रग्स की लत, 5.5 प्रतिशत मामलों के पीछे विवाह संबंधी कारण, 4.5 प्रतिशत मामलों के पीछे विफल प्रेम-प्रसंग और 4.2 प्रतिशत मामलों के पीछे दिवालियापन को कारण पाया गया।
पुरुष ज्यादा कर रहे आत्महत्या
सुसाइड करने वालों में पुरुष 70.2 प्रतिशत और महिलाएं 29.8 प्रतिशत हैं। यह दर्शाता है कि पुरुषों में आत्महत्या की प्रवृत्ति कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ रही है। दो-तिहाई विवाहित करीब 68 प्रतिशत आत्महत्या करने वाले पुरुष विवाहित थे। आत्महत्या करने वाले 62.5 प्रतिशत महिलाएं भी विवाहित थीं।
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उच्च शिक्षित कम
आत्महत्या करने वालों में 3.7 प्रतिशत ग्रेजुएट या उससे अधिक पढ़े लिखे थे, हालांकि इसकी वजह उनकी कम संख्या भी है। इसके अलावा 12.6 प्रतिशत अशिक्षित, 16.3 प्रतिशत प्राथमिक तक शिक्षित, 19.6 प्रतिशत मध्यामिक और 23.3 प्रतिशत मैट्रिक तक शिक्षित थे। आत्महत्या से मरने वालों में कम से कम 14,019 लोग बेरोजगार थे। ऐसे सबसे ज्यादा मामले कर्नाटक में सामने आए, उसके बाद महाराष्ट्र में, फिर तमिलनाडु, झारखंड और गुजरात में।
आधे से ज्यादा ने लगाई फांसी
आत्महत्या के लिए 53.6 प्रतिशत लोगों ने फांसी लगाने का दुखद रास्ता चुना। 25.8 प्रतिशत ने जहर खाया, 5.2 प्रतिशत डूबकर मरे तो वहीं 3.8 प्रतिशत ने खुद को आग लगाई।
महाराष्ट्र में स्थिति सबसे खराब
आंकड़ों को राज्यवार देखें तो सबसे ज्यादा आत्महत्या के मामले महाराष्ट्र में सामने आए। महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में ही पूरे देश के कुल मामलों में से 50 प्रतिशत मामले पाए गए। लेकिन आत्महत्या की दर चार दक्षिणी राज्य केरल, कर्नाटक, तेलांगना और तमिलनाडु में सबसे ज्यादा पाई गई। बिहार में दर सबसे काम पाई गई, लेकिन वहां 2018 के मुकाबले मामले 44.7% प्रतिशत बढ़ गए।
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नोएडा में मामले बढ़ते जा रहे
नोएडा में सुसाइड के मामले बढ़ते जा रहे हैं। दरअसल, कोरोना काल में लोगों का रोजगार छिन गया। नौकरी, दिहाड़ी- मजदूर और रेहड़ी-पटरी लगाने वाले लोगों पर कोरोना का सबसे ज़्यादा असर पड़ा है। इसी वजह से नोएडा में पिछले 5 माह में 152 के करीब खुदकुशी के मामले सामने आए हैं। नोएडा में अप्रैल में खुदकुशी के 25, मई में 31, जून में 34 मामले सामने आए हैं। वहीं, जुलाई में खुदकुशी के 30 तो अगस्त में 26 मामले सामने आए। 4 सितंबर तक 5 लोग खुदकुशी कर चुके हैं। ज्यादातर मामलों में खुदकुशी की वजह रोजगार का नहीं होना था। इसके अलावा कुछ लोगों ने इसीलिए खुदकुशी की क्योंकि वे लॉकडाउन में अकेलेपन में अवसाद का शिकार हो गए।
डॉक्टरों का कहना है कि लॉकडाउन में अकेलापन, आर्थिक तंगी, रोजगार न मिलना खुदकुशी के बढ़ते मामलों की मुख्य वजह है। वहीं, पुलिस भी खुदकुशी के मामलों कुछ खास नहीं कर पा रही है। पुलिस अफसर सोसायटियों और मोहल्लों में जाकर लोगों से बात तो कर रहे हैं लेकिन उनका भी मानना है कि हर परिवार के पास पुलिस नहीं पहुंच सकती।
जापान में बच रही हैं जानें
जापान खुदकुशी के मामले में पांचवा सबसे ऊपर वाला देश है। पिछले पांच सालों में यहां रोज औसतन 70 युवा अपनी जान ले रहे हैं। हालांकि कोरोना के दौर में यहां आत्महत्या की दर में एकदम से कमी आई। एक्सपर्ट्स के मुताबिक फरवरी से जून में आत्महत्या की औसत दर में 13.5 कमी दिखी। टोक्यो मेट्रोपॉलिटन इंस्टीट्यूट के रिसर्चर शोहेई ओकामोटो की रिसर्च के नतीजे के मुताबिक कोरोना का जापान की मानसिक सेहत पर अच्छा असर हुआ है। ब्रिटेन में भी इस तरह की स्टडी आई जो बताती है कि वहां भी कोरोना काल में खुदकुशी करने वालों की संख्या घटी है।
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जापान में आत्महत्या की घटनाएं कम
जापान में आत्महत्या में तेजी से गिरावट के पीछे कई कारण गिनाए जा रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि काम के घंटों का कम होना। इस देश में लोगों में काम की आदत एडिक्शन बन चुकी है। वे दिन के औसतन 16 घंटे काम करते हैं। कोरोना के दौरान कंपनियों ने अच्छा कदम उठाते हुए उनके काम के घंटे जबरन कम कर दिए। काम के घंटे लगभग 20 प्रतिशत घटा दिए गए ताकि कर्मचारी परिवार के साथ वक्त बिताएं। इसके अलावा सरकार ने हरेक को लगभग 940 डॉलर की रकम दी ताकि वो अपनी जरूरत के मुताबिक खर्च करें। इसके बाद देखा गया कि कोरोना के वक्त में लोगों के दिवालिया होने में गिरावट आई।