सेना में महिलाओं के स्थायी कमीशन पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, होता भेदभाव
सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय सेना में स्थायी कमीशन पर दायर याचिका पर फैसला सुनाया है। कोर्ट में करीब 80 महिला अधिकारियों द्वारा दायर याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए कहा है कि इसके लिए महिलाओं के लिए मेडिकल फिटनेस की आवश्यकता 'मनमाना' और 'तर्कहीन' है।
नई दिल्ली। बृहस्पतिवार को सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय सेना में स्थायी कमीशन पर दायर याचिका पर फैसला सुनाया है। कोर्ट में करीब 80 महिला अधिकारियों द्वारा दायर याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए कहा है कि इसके लिए महिलाओं के लिए मेडिकल फिटनेस की आवश्यकता 'मनमाना' और 'तर्कहीन' है। 'हमें यहां यह पहचानना चाहिए कि हमारे समाज की संरचना पुरुषों द्वारा पुरुषों के लिए बनाई गई है।
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महिला अधिकारियों के खिलाफ भेदभाव
ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि सेना की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) मूल्यांकन और देर से लागू होने पर चिकित्सा फिटनेस मानदंड महिला अधिकारियों के खिलाफ भेदभाव करता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'मूल्यांकन के पैटर्न से एसएससी (शॉर्ट सर्विस कमीशन) महिला अधिकारियों को आर्थिक और मनोवैज्ञानिक नुकसान होता है।' महिला अधिकारी चाहती थीं कि उन लोगों के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू की जाए जिन्होंने कथित रूप से अदालत के पहले के फैसले का पालन नहीं किया था।
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स्थायी आयोग में महिलाओं को भी अनुदान
आगे कोर्ट ने कहा कि महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के लिए एसीआर मूल्यांकन मापदंड में उनके द्वारा भारतीय सेना के लिए अर्जित गौरव को नजरअंदाज किया गया है।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने 17 फरवरी, 2020 को दिए अपने फैसले में सभी सेवारत शॉर्ट सर्विस कमीशन महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन प्रदान करने को कहा था। जिसके चलते सुप्रीम कोर्ट ने बीते साल केंद्र सरकार को आदेश दिया था कि वह अपने पुरुष समकक्षों के साथ सेना की गैर-लड़ाकू सहायता इकाइयों में स्थायी आयोग में महिलाओं को भी अनुदान दे। वहीं जस्टिस डॉ. डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने पहले मामले की अंतिम सुनवाई 24 फरवरी के लिए तय की थी।
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