Supreme Court: राज्यपालों को सुप्रीम कोर्ट ने याद दिलाई संवैधानिक जिम्मेदारी, जानें क्या है पूरा मामला
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार की ओर से भेजे गए विधेयकों पर राज्यपालों को तुरंत फैसला लेना चाहिए। उन्हें इसे या तो मंजूर कर लेना चाहिए या असहमति की स्थिति में वापस भेज देना चाहिए। विधेयकों को रोककर रखने का कोई कारण नहीं है। अदालत ने ये टिप्पणी तेलंगाना सरकार की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए की।
Supreme Court: राज्य सरकारों और राज्यपालों के बीच टकराव देश की राजनीति में कोई नई घटना नहीं है। केंद्र और राज्य में अलग-अलग दलों की सरकार होने के कारण इस तरह की खबरें आती रही हैं। मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद विपक्ष शासित राज्यों की भी यही शिकायत है। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है। सोमवार को शीर्ष अदालत ने इस मामले की सुनवाई करते हुए राज्यपालों को उनकी संवैधानिक जिम्मेदारी की याद दिलाई है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार की ओर से भेजे गए विधेयकों पर राज्यपालों को तुरंत फैसला लेना चाहिए। उन्हें इसे या तो मंजूर कर लेना चाहिए या असहमति की स्थिति में वापस भेज देना चाहिए। विधेयकों को रोककर रखने का कोई कारण नहीं है। अदालत ने ये टिप्पणी तेलंगाना सरकार की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए की।
कोर्ट ने संविधान का दिया हवाला
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने कहा कि राज्यपालों को जितना संभव हो उतनी जल्दी विधेयकों पर फैसला ले लेना चाहिए। संविधान के आर्टिकल 200 में कहा गया है कि राज्यपालों को अपने समक्ष लाए गए विधेयकों को तत्काल मंजूर करना चाहिए अथवा लौटा देना चाहिए। हालांकि, धन विधेयक को मंजूर करने के लिए राज्यपाल बाध्य होते हैं।
क्या है पूरा मामला ?
दरअसल, तेलंगाना विपक्ष शासित देश के उन राज्यों में शुमार है, जहां की राज्य सरकार का वहां के राज्यपाल के साथ छत्तीस का आंकड़ा चल रहा है। जिन विपक्ष शासित राज्यों के संबंध केंद्र से बेहतर नहीं हैं, वहां गवर्नर और राज्य सरकार के बीच टकराव की खबरें आती रहती हैं। तेलंगाना सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाल कर आरोप लगाया था कि राज्यपाल बेवजह विधेयकों की मंजूरी में देरी कर रहे हैं।
सरकार का कहना है कि गवर्नर टी.सुंदरराजन ने उसकी ओर से भेजे गए विधेयकों पर करीब एक महीने से फैसला नहीं लिया है, जिन्हें विधानसभा ने पारिक करके भेजा था। उन्होंने करीब 10 अहम विधेयक 6 महीने से लटकाकर रखा है। बता दें कि तेलंगाना की तरह अन्य विपक्ष शासित राज्यों जैसे तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल, दिल्ली और पंजाब से राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच टकराव की खबरें आती रहती हैं।
हाईकोर्ट के फैसले पर भड़के सीजेआई चंद्रचूड़
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल के बाद एक अहम संवैधानिक संस्था पर भी कठोर टिप्पणी की। 24 अप्रैल को पूर्व सांसद विवेकानंद रेड्डी हत्याकांड से जुड़ी एक याचिका की सुनवाई करने के दौरान चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ तेलंगाना हाईकोर्ट के एक फैसले को लेकर काफी नाराज दिखे। दरअसल, हाईकोर्ट ने आंध्र प्रदेश से सांसद वाईएस अविनाश रेड्डी से पूछताछ के लिए सीबीआई पर कई तरह की बंदिशें लगाई थीं। कोर्ट ने जांच एजेंसी से कहा था कि वो पहले रेड्डी को सारे सवाल लिखित में दें और पूछताछ की रिकॉर्डिंग भी करें।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने तेलंगाना उच्च न्यायालय के इस फैसले पर बेहद तल्ख टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट का ऐसा फैसला आपराधिक न्याय शास्त्र को फिर से लिखने जैसा है। उन्होंने कहा कि अगर जांच का यह पैमाना है तो फिर आखिर हमें सीबीआई की जरूरत ही क्या है, उसे बंद कर देना चाहिए। सीजेआई ने कहा कि हाईकोर्ट के आदेश देखकर हम वास्तव में परेशान थे। सीबीआई इस केस की जांच में बहुत सावधानी बरत रही है। हाईकोर्ट द्वारा सीबीआई को दिया गया उक्त निर्देश बिल्कुल अनुचित था।
क्या है पूरा मामला ?
15 मार्च 2019 को विधानसभा चुनाव से पहले पूर्व सांसद विवेकानंद रेड्डी की उनके आवास पर हत्या कर दी गई थी। विवेकानंद रेड्डी आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी के चाचा हैं। इस मामले में पिछले दिनों सीएम के एक अन्य चाचा और मृतक विवेकानंद रेड्डी के भाई भास्कर रेड्डी को गिरफ्तार किया था। इस मामले में जांच एजेंसी के रडार पर कडप्पा से लोकसभा सांसद वाईएस अविनाश रेड्डी भी हैं, जो आंध्र सीएम के चचेरे भाई हैं।
सीबीआई पूछताछ को लेकर उन्होंने हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत याचिका लगाई थी। जिस पर उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया था। बाद में हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ पूर्व सांसद विवेकानंद रेड्डी की बेटी सुनीता रेड्डी सुप्रीम कोर्ट चली गईं। उन्होंने अपनी याचिका में कहा कि हाईकोर्ट का फैसला पूरी जांच को बेपटरी कर देगा। आरोपी सांसद ने सीबीआई को जांच में कभी सहयोग नहीं किया।