Manipur Violence: मणिपुर में सामूहिक शव दफ़नाने पर नया तनाव, हिंसा की आशंका
Manipur Violence: मणिपुर में चल रही जातीय हिंसा के बीच, चुराचांदपुर जिले के हाओलाई खोपी के पास एस बोलजांग गांव में कुकी-ज़ो समुदाय के 35 शवों को दफनाने का मसला मेइतेई और कुकी के बीच विवाद का नवीनतम स्रोत बन गया है।
Manipur Violence: मणिपुर में चल रही जातीय हिंसा के बीच, चुराचांदपुर जिले के हाओलाई खोपी के पास एस बोलजांग गांव में कुकी-ज़ो समुदाय के 35 शवों को दफनाने का मसला मेइतेई और कुकी के बीच विवाद का नवीनतम स्रोत बन गया है। ये शव कुकी-ज़ो समुदाय के लोगों के हैं जो 3 मई से राज्य में जारी जातीय संघर्ष में मारे गए हैं। तीन महिलाओं और 32 पुरुषों के शवों को दफनाया जाना है। इस मसले पर चुराचांदपुर और बिष्णुपुर जिलों की सीमा पर तनाव है और 3 अगस्त की शाम तक रुक-रुक कर गोलीबारी जारी रही।
मुर्दाघरों में रखे हैं लावारिस शव
मणिपुर की हिंसा में अब तक 140 से अधिक लोग मारे गए हैं, और राज्य के तीन मुर्दाघरों - इंफाल में जेएनआईएमएस और रिम्स तथा चुराचांदपुर जिला अस्पताल में बड़ी संख्या में लावारिस शव रखे हुए हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि कोई भी पक्ष दूसरे समुदाय के प्रभुत्व वाले क्षेत्रों में जा ही नहीं सकता है। चुराचांदपुर के मुर्दाघर में रखे 35 शव कुकी-ज़ोमी समुदाय के लोगों के हैं, जो इस क्षेत्र में प्रभावशाली हैं, लेकिन जनजातीय लोगों के मंच ‘आईटीएलएफ’ के नेताओं ने परिवारों को उन शवों पर दावा नहीं करने का निर्देश दे रखा है। इसका उद्देश्य राज्य सरकार पर यह सुनिश्चित करने के लिए दबाव डालना है कि
इम्फाल में रखे गए शवों को चुराचांदपुर ले जाया जाए।
हालाँकि, इस सप्ताह की शुरुआत में, आईटीएलएफ ने घोषणा की थी कि 35 आदिवासी शहीदों को अंतिम श्रद्धांजलि के रूप में 3 अगस्त को दफनाया जाएगा। जिस स्थान पर दफ़नाने का प्रस्ताव किया गया था वह तोरबुंग में है, जो कुकी-ज़ोमी प्रभुत्व वाले चुराचांदपुर जिले और मैतेई प्रभुत्व वाले बिष्णुपुर जिले की सीमा पर स्थित एक क्षेत्र है। गौरतलब है कि टोरबुंग वही जगह है जहां राज्य के अन्य हिस्सों में फैलने से पहले 3 मई को पहली बार हिंसा भड़की थी।
चूँकि शवों को दफनाने की जो जगह चुनी गयी वह काफी विवादास्पद है सो इसके चलते तनाव और हिंसा बढ़ने की आशंका थी। इस मसले पर 2 और 3 अगस्त की रात को कुकी-ज़ोमी संगठनों, सुरक्षा अधिकारियों और गृह मंत्रालय के बीच बैठकें हुईं, जिसमें पूर्वनियोजित कार्यक्रम पर पुनर्विचार करने के लिए संगठनों पर दबाव डाला गया। इस बीच 2 अगस्त की रात में बिष्णुपुर जिले में लोगों का जमावड़ा होना शुरू हो गया जो सुबह तक जारी रहा।
कोर्ट में याचिका, सुबह 6 बजे हुई सुनवाई
दूसरी तरफ शव दफ़नाने के कार्यक्रम को रोकने के लिए इंटरनेशनल मीटीस फोरम नामक एक संगठन ने मणिपुर उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की, जिसमें कहा गया कि यह सरकारी भूमि है जहां एक रेशम उत्पादन फार्म स्थित है। अतः यहाँ शव नहीं दफनाये जा सकते। कोर्ट में यह मामला सुबह 10:30 बजे कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखा जाना था, लेकिन उप अटॉर्नी जनरल ने अदालत से तत्काल सुनवाई का अनुरोध करते हुए कहा कि प्रस्तावित भूमि और उसके आसपास दोनों समुदायों की एक बड़ी भीड़ जमा हो गई है और किसी भी समय हिंसा हो सकती है।
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इसके बाद 3 अगस्त की सुबह 6 बजे सुनवाई हुई। अदालत ने निर्देश दिया कि पहले से ही अस्थिर कानून और व्यवस्था की स्थिति को खराब करने की संभावना और हिंसा और रक्तपात की एक नई लहर भड़कने की संभावना को ध्यान में रखते हुए 9 अगस्त को सुनवाई की अगली तारीख तक विवादित भूमि की यथास्थिति बनाए रखी जाए।
इसके बाद आईटीएलएफ ने एक बयान जारी किया कि उसने "गृह मंत्री के अनुरोध पर" दफनाने में पांच दिन की देरी करने का फैसला किया है।