भारतीय कश्मीर जैसी नहीं है बलूचिस्तान की हकीकत, फैला हुआ है आतंक का साम्राज्य

भारतीय कश्मीर जैसी नहीं है बलूचिस्तान की हकीकत। हां, यह कहा जा सकता है कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर POK के हालात बलूचिस्तान जैसे ही हैं। बलूच राष्ट्रवादियों का कहना है कि मेजर जनरल अकबर खान के निर्देश पर 27 मार्च 1948 को उनकी मातृभूमि पर अवैध ढंग से कब्जा कर लिया गया जिसने 'ऑपरेशन गुलमर्ग' में भारत से कश्मीर क्षेत्र का एक तिहाई हिस्सा हथियाया था।

Update:2019-08-06 17:17 IST

नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म करने का प्रस्ताव राज्यसभा से पारित होने के बाद गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को यह प्रस्ताव लोकसभा में पेश किया। जिसके बाद से पूरा देश अब एक अखंड भारत का सपना देख रहा है। जिसमें अब जम्मू-कश्मीर के बाद पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर अर्थात POK और उसके बाद बलूचिस्तान पर निगाहें टिकी हैं ।

ऑपरेशन गुलमर्ग

अब हम आपको ये बता दें कि भारतीय कश्मीर जैसी नहीं है बलूचिस्तान की हकीकत। हां, यह कहा जा सकता है कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर POK के हालात बलूचिस्तान जैसे ही हैं। बलूच राष्ट्रवादियों का कहना है कि मेजर जनरल अकबर खान के निर्देश पर 27 मार्च 1948 को उनकी मातृभूमि पर अवैध ढंग से कब्जा कर लिया गया जिसने 'ऑपरेशन गुलमर्ग' में भारत से कश्मीर क्षेत्र का एक तिहाई हिस्सा हथियाया था। तब से 5 बार हुए विद्रोह में हजारों बलूच देशभक्त और पाकिस्तानी सैनिक मारे जा चुके हैं।

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दूसरी ओर अगर हम 3 बार के हुए युद्ध को देखें तो हजारों कश्मीरी पंडित, शिया मुसलमान, अहमदी मुसलमान, भारतीय सैनिक, बांग्लादेशी शहीद हुए हैं। यह पाकिस्तान ही है जिसके कारण दक्षिण एशिया में आतंक का साम्राज्य फैला हुआ है।

एक महत्त्वपूर्ण सवाल ?

यह पूछा जा सकता है कि जिस तरह कुछ मुट्ठीभर भारतीय कश्मीरी सुन्नी मुसलमान पाकिस्तान के बहकावे में आकर अलगाववाद की बात करते हैं क्या उसी तरह बलूचिस्तान के बलूची और पख्तून नहीं करते हैं?

अब यदि हिन्दुस्तान, बलूचिस्तान का पक्ष लेता है तो क्या यह उसी तरह नहीं है जिस तरह कि पाकिस्तान, कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है?

फिर यदि ऐसा है तो हिन्दुस्तान और पाकिस्तान में फर्क ही क्या है?

तो...इस सवाल के जवाब के लिए हमें इतिहास में जाकर वर्तमान में आना होगा और समझना होगा कि क्यों पाकिस्तान गलत है और क्यों भारत सही।

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आईये अब ये समझने का प्रयास करते हैं कि

भारत का बंटवारा जिस आधार पर और जिस तरीके से हुआ उससे यही सिद्ध होता है कि कांग्रेस और उसके नेता मुस्लिम लीग और अंग्रेजों के सामने कमजोर साबित हुए थे। पिछले 67 वर्षों तक भारत पर कांग्रेसियों का ही राज रहा है। युद्ध के मैदान में जीत और वार्ता की मेज पर पराजय इस दौर में भारत की नियति बनी रही।

हजारों भारतीयों के बलिदान और सैनिकों की शहीदी को कांग्रेसियों ने पाकिस्तान के हित में कर दिया। हारकर भी बेनजीर भुट्टो के पिता जीत गए और बाद में बेनजीर ने कश्मीर में एक मिसाल कायम कर दी।

यह कहने में संकोच हो सकता है कि कांग्रेस सरकारों की इस शर्मनाक परंपरा का निर्वाह प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह तक जारी रहा। ...खैर!

'अखंड भारत' कहने का अर्थ’

बलूचिस्तान का प्राचीन इतिहास : इतिहास की बात करते हैं तो भारत पिछले 15,000 वर्षों से अस्तित्व में है और अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, पाकिस्तान सभी भारत का ही हिस्सा थे। और 'अखंड भारत' कहने का अर्थ यही है।

लेकिन भारत का बंटवारा जिस आधार पर और जिस तरीके से हुआ उससे यही सिद्ध होता है कि कांग्रेस और उसके नेता मुस्लिम लीग और अंग्रेजों के सामने कमजोर सिद्ध हुए।

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बलूचिस्तान आर्यों की प्राचीन धरती आर्यावर्त का एक हिस्सा है। प्राचीन काल में वैदिक युग में पारस (कालांतर में फारस) से लेकर गंगा, सरयू और ब्रह्मपुत्र तक की भूर्मी आर्यों की भूमि थी जिसमें सिंधु घाटी का क्षेत्र सबसे महत्वपूर्ण था।

आर्यों के पंचनंद या पंचकुल अर्थात पुरु, यदु, तुर्वस, अनु और द्रुहु के कुल में से किसी एक कुल के हैं। भारत का प्राचीन इतिहास कहता है कि अफगानी, बलूच, पख्तून, पंजाबी, कश्मीरी आदि पश्‍चिम भारत के लोग पुरु वंश से संबंध रखते हैं अर्थात वे सभी पौरव हैं।

पुरु वंश में ही आगे चलकर कुरु हुए जिनके वंशज कौरव कहलाए। 7,200 ईसा पूर्व अर्थात आज से 9,200 वर्ष पूर्व ययाति के इन पांचों पुत्रों में से पुरु का धरती के सबसे अधिक हिस्से पर राज था। बलूच भी मानते हैं कि हमारे इतिहास की शुरुआत 9 हजार वर्ष पूर्व हुई थी।

बलूचिस्तान में माता सती के 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ हिंगलाज माता का है

बलूचिस्तान में माता सती के 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ हिंगलाज माता का है। बलूचिस्तान की भूमि पर दुर्गम पहाड़ियों के बीच माता का मंदिर है जहां माता का सिर गिरा था। यह मंदिर बलूचिस्तान के राज्य मंज में स्थित हिंगोल नदी के पास स्थित पहाड़ी पर है। इस स्थान पर भगवान श्रीराम, परशुराम के पिता जमदग्नि, गुरु गोरखनाथ, गुरु नानक देवजी भी आ चुके हैं।

चारणों की कुल देवी हिंगलाज की माता ही थी। ये चारण लोग बलूची ही थे और आज इनका नाम कुछ और कबीले से जुड़ा हुआ है। बलूचिस्तान में भगवान बुद्ध की सैंकड़ों मूर्तियां पाई गईं। यहां किसी काल में बौद्ध धर्म अपने चरम पर था।

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लगभग 200 जनपद महाभारत में वर्णित हैं। इनमें से प्रमुख 30 ने महाभारत के युद्ध में भाग लिया था

बलूचिस्तान भारत के 16 महा-जनपदों में से एक जनपद संभवत: गांधार जनपद का हिस्सा था। चन्द्रगुप्त मौर्य का लगभग 321 ईपू का शासन पश्चिमोत्तर में अफगानिस्तान और बलूचिस्तान तक फैला था। दार्द, हूण हुंजा, अम्बिस्ट आम्ब, पख्तू, कम्बोज, गांधार, कैकय, वाल्हीक बलख, अभिसार (राजौरी), कश्मीर, मद्र, यदु, तृसु, खांडव, सौवीर सौराष्ट्र, कुरु, पांचाल, कौशल, शूरसेन, किरात, निषाद, मत्स, चेदि, उशीनर, वत्स, कौशाम्बी, विदेही, अंग, प्राग्ज्योतिष (असम), घंग, मालवा, अश्मक, कलिंग, कर्णाटक, द्रविड़, चोल, शिवि शिवस्थान-सीस्टान-सारा बलूच क्षेत्र, सिंध का निचला क्षेत्र दंडक महाराष्ट्र सुरभिपट्टन मैसूर, आंध्र तथा सिंहल सहित लगभग 200 जनपद महाभारत में वर्णित हैं। इनमें से प्रमुख 30 ने महाभारत के युद्ध में भाग लिया था।

मेहरगढ़ की सभ्यता

मेहरगढ़ की सभ्यता को सिंधु घाटी की हड़प्पा और मोहनजोदोरों से भी प्राचीन माना जाता है। बलूचिस्तान में एक स्थान है बालाकोट। बालाकोट नालाकोट से लगभग 90 किमी की दूरी पर बलूचिस्तान के दक्षिणी तटवर्ती क्षेत्र में स्थित था। यहां से हड़प्पा पूर्व एवं हड़प्पा कालीन अवशेष प्राप्त हुए हैं। पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण मेहरगढ़ का स्थान बलूचिस्तान के कच्ची मैदानी के क्षेत्र में है।

मेहरगढ़ की संस्कृति और सभ्यता को 7 हजार ईसापूर्व से 2500 ईसापूर्व के बीच फलीफूली सभ्यता माना जाता है। यहां से इस काल के अवशेष पाए गए हैं। मेहरगढ़ आज के बलूचिस्तान में बोलन नदी के किनारे स्थित है।

कंकड़-पत्थरों को जोड़कर बलूचिस्तान में जो बांध बने उन्हें गबरबंध कहा जाता है और यह हड़प्पा युग से पहले बनने लगे थे। इनका निर्माण बाढ़ रोकने, बाढ़ में आई उपजाऊ मिट्टी को थामने के लिए होता था। गबरबंध के काल का पता लगाना कठिन है।

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फ्रांसीसी ऑर्कियोलॉजिस्ट प्रोफेसर जैरिग के हवाले से

फ्रांसीसी ऑर्कियोलॉजिस्ट प्रोफेसर जैरिग के हवाले से पाकिस्तान टूरिज्म डेवलपमेंट कॉरपोरेशन की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि ईसा पूर्व (बीसी) 6,000 में यहां बोलन नदी क्षेत्र में किसानों द्वारा गेहूं, जौ और खजूर की खेती करने के प्रमाण मिले हैं। बाढ़ के पानी को संचित करने के लिए किसानों ने बड़े-बड़े गड्ढे बना रखे थे। बाढ़ खत्म होने पर वे कपास की खेती करते और मिट्टी के बरतन बनाते थे।

सिकंदर से भिड़ंत हुई थी

इतिहासकार पाषाण काल में यहां इनसानी बस्तियां होने की संभावना जताते हैं। ईसा के जन्म से पहले यह इलाका ईरान और टिगरिस व यूफ्रेट्स के रास्ते बेबीलोन की प्राचीन सभ्यता से व्यापार और वाणिज्य के जरिए जुड़ चुका था। बलूचिस्तान के सिबिया आदिवासियों से ईसा पूर्व 326 में विश्व विजयी अभियान पर निकले सिकंदर से भिड़ंत हुई थी। यहीं से सिल्करुट गुजरता है।

बलूचिस्तान का वर्तमान भूगोल

यह क्षेत्र दक्षिण-पश्चिम पाकिस्तान, ईरान के दक्षिण-पूर्वी प्रांत सिस्तान तथा बलूचिस्तान और अफगानिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत तक फैला हुआ है, लेकिन इसका अधिकांश इलाका पाकिस्तान के कब्जे में है, जो पाकिस्तान के कुल क्षेत्रफल का लगभग 44 प्रतिशत हिस्सा है।

सीधी भाषा में कहें तो बलूचिस्तान के दक्षिण-पूर्वी हिस्से पर ईरान, दक्षिण-पश्चिमी हिस्से पर अफगानिस्तान और पश्चिमी भाग पर पाकिस्तान ने कब्जा कर रखा है। प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर इस संपूर्ण क्षेत्र में यूरेनियम, गैस और तेल के भंडार पाए गए हैं।

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