भारत में इतने कोरोनाः कोई इटली का तो कोई वुहान का, दवा भी आएगी जल्द

इसी क्रम में काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआईआर) ने भी कोरोना वायरस के उपचार के लिए कुष्ठ रोग के इलाज में कारगर एमवी वैक्सीन का ट्रायल शुरू कर दिया। आईसीएमआर ने ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया से इसके परीक्षण का अप्रूवल भी ले लिया है।

Update:2020-04-22 18:10 IST

लखनऊः कोरोना वायरस को लेकर एक बड़ी खबर आ रही है इसे जानकर आप चौंक जाएंगे खबर ये नहीं है कि अपने देश में कोरोना वायरस है। खबर ये है कि भारत में वुहान का कोरोना वायरस है, तो ईरान से आया कोरोना वायरस भी है। इसके अलावा इटली, फ्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका से आए कोरोना वायरस भी हैं और ये सभी कोरोना वायरस थोड़ा-थोड़ा एक दूसरे से अलग हैं।

अब जब अपने देश में अलग अलग किस्म के वायरस हैं तो दवा भी उनकी अलग अलग होगी। इसलिए हमारे वैज्ञानिकों की कोर टीम ने कोरोना वायरस के जगह जगह बदलते रूप से निपटने के लिए एक साथ कई दवाओं पर काम शुरू किया है। मजे की बात ये है कि वैज्ञानिकों की ये टॉप टेन टीम एनआईआई के डायरेक्टर डा. अमूल्य के पांडा के नेतृत्व में काम कर रही है।

सारे कोरोना वायरसों की दवा पर काम

पांडा की टीम ने ही इससे पहले कैंसर का टीका विकसित किया है जिसका ट्रायल चेन्नई में अंतिम चरण में है। एनआईआई ने ही इससे पहले लेप्रोसी और टीबी का टीका विकसित किया था, जिसकी दुनिया भर में सराहना हो चुकी है।

कोरोना की भयावहता और उसके बेसिक करेक्टर में आ रहे बदलाव से दुनिया भर के वैज्ञानिक परेशान हैं। अनेक अनुसंधान संस्थान व साइंटिस्ट एक ऐसी वैक्सीन बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं जो कोरोना वायरस के संक्रमण को रोक सके।

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इसी क्रम में काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआईआर) ने भी कोरोना वायरस के उपचार के लिए कुष्ठ रोग के इलाज में कारगर एमवी वैक्सीन का ट्रायल शुरू कर दिया। आईसीएमआर ने ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया से इसके परीक्षण का अप्रूवल भी ले लिया है।

अलग अलग देशों से आया है कोरोना

सीएसआईआर के वैज्ञानिकों का दावा है कि भारत में कोरोना वायरस की कई प्रजातियां मौजूद हैं। इसका कारण बताते हुए वह कहते हैं कि हमारे यहां अलग-अलग देशों से लोग आए हैं। जिनके साथ संक्रमण भी आया है। इन्हीं वैज्ञानिकों का कहना है कि हमारे यहां वुहान वाले वायरस आए हैं तो ईरान से भी वायरस आया है हालांकि ये दोनो एक जैसे हैं। दूसरी ओर इटली से आए लोगों में यूरोप और अमेरिका के वायरस दिखे हैं।

कुल मिलाकर हमारे देश में अलग-अलग किस्म के वायरस हैं। जिनके लक्षण भी एक दूसरे से अलग अलग हैं। अब असली चुनौती ये है कि किस किस्म के वायरस पर कौन सी दवाई काम करती है। इम्युनिटी बढ़ाने की वैक्सीन पर भी काम जारी है। संभव है जल्द ही अच्छे नतीजे मिल जाएं।

बीसीजी को प्रभावी नहीं मानते

कोरोना की वैक्सीन बनाने में वैज्ञानिकों में अभी मतभेद भी हैं। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद बीसीजी के वैक्सीनेशन को प्रभावी नहीं मानता है। आईसीएमआर के प्रमुख डॉ आर गंगाखेड़कर कहते हैं कि बीसीजी के टीके के स्पष्ट परिणाम नहीं हैं, इसलिए हम इसे हेल्थ वर्कर्स को भी नहीं देंगे।

इन सबके बीच सीएसआईआर का मानना है कि लैप्रोसी और सेप्सिस जैसी बीमारियों में इस्तेमाल टीका कोरोना में कारगर हो सकता है। मेडिसिन के क्षेत्र में इस टीके को अभी एमडब्लू (माइक्रो बैक्टोरियल डब्लू) के नाम से जाना जाता है।

लेकिन एमडब्लू मार सकता है कोरोना के डीएनए को

एमडब्लू में कोरोना जैसे डीएनए को खत्म करने की क्षमता वैज्ञानिकों ने देखी है। इसी लिए इस पर काम चल रहा है। कोरोना से सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्रों और गंभीर मरीजों पर इसका ट्रायल भी किया जा रहा है।

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सीएसआइआर के महानिदेशक डॉ शेखर सी मांडे इस टीके को कोरोना के खिलाफ छिड़ी जंग में कारगार मानते हैं। यह टीका देश में बन रहा है। इनमें इस्तेमाल होने वाली सारी चीजें भारतीय है।

डा. पांडा का निष्कर्ष भी यही है कि भारत में वायरस से संक्रमित कई लोग ठीक हो गए हैं। हम देखेंगे कि उनके एंटीबाडी ने किस तरह वायरस का मुकाबला किया। वह कहते हैं कि हो सकता है कि जर्मनी या इटली या चीन से आने वाले भिन्न स्ट्रेन हो। लेकिन निर्णायक रूप से अभी इस बारे में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी।

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