सहारनपुर : तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाने के लिए सरकार द्वारा तैयार किये गए बिल पर मोदी मंत्रीमंडल की हरी झंडी को उलेमा ने सरकार के ‘सबका साथ सबका विकास’ नारे के खिलाफ बताया है। उलेमा ने चेताया कि सरकार को कोई भी कानून बनाने से पहले शरीयत के जानकारों से राय मशवरा अवश्य करना चाहिए। क्योंकि शरीयत के खिलाफ देश का मुसलमान कोई फैसला नहीं मानेगा।
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उच्चतम न्यायालय द्वारा तीन तलाक को गैर कानूनी करार दे दिये जाने के बाद अब सरकार तीन तलाक देने वालों को सख्त सजा देने की तैयारी में लगी हुई है। जिसके लिए कानून बनाने की प्रक्रिया जारी है। उलेमा द्वारा बार-बार बिल का मसौदा मुस्लिम दानिशवरों को दिखाने की मांग को दरकिनार करते हुए शुक्रवार को सरकार ने तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाने के लिए तैयार किये गए बिल को मंत्रिमंडल के सामने पेश कर दिया जिसे एक स्वर में मंत्रीमंडल ने अपनी मंजूरी दे दी। अब इस बिल को शीतकालीन सत्र में संसद में पेश किया जाएगा।
बिल को मंजूरी दे दिये जाने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए तंजीम उलेमा ए हिंद के प्रदेश अध्यक्ष मौलाना नदीमुल वाजदी ने कहा कि यह सरकार के सबका साथ सबका विकास के नारे खिलाफ है। उन्होंने कहा कि सरकार को चाहिए कि वह कोई भी कानून बनाने से पहले शरीयत के जानकारों से राय जरूर ले ताकि शरीयत इस्लाम और देश के कानून में टकराव से बचा जा सके। उन्होंने कहा कि तीन तलाक के मुद्दे पर मुस्लिम महिलाओं का बहोत बड़ा वर्ग मुस्लिम पर्सनल लॉ के साथ खड़ा है।
वहीं, करोड़ों मुसलमानों की आस्था के केंद्र दारुल उलूम देवबंद के मोहतमिम मुफ्ती अबुल कासिम नौमानी भी मुस्लिम पर्सनल लॉ बार्ड के साथ खड़े रहने का ऐलान कर चुके हैं। इसके बावजूद यदि सरकार जल्दबाजी में तीन तलाक पर कोई कानून लाती है तो सरकार और उलेमा में टकराव बढ़ने की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
जामिया कासमिया दारुल तालीम वल सना के मोहतमिम मौलाना इब्राहीम कासमी, देवबंद इंस्टीट्यूट ऑफ इस्लामिक थोट के अध्यक्ष आतिफ सुहैल सिद्दीकी व तंजीम अब्नाएं दारुल उलूम के महासचिव मुफ्ती यादे इलाही कासमी ने भी मुस्लिम दानिशवरों को बिल का मसौदा दिखाए बिना केबिनेट की मंजूरी मिल जाने पर ऐतराज जताते हुए कहा कि तीन तलाक मुसलमानों का निजी मामला है। और हर मुसलमान इस मुद्दे पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के साथ खड़ा है। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह कोई ऐसा कदम न उठाए जिससे टकराए की स्थिती पैदा हो, क्योंकि मुसलमान शरीयत के खिलाफ कोई भी फैसला किसी कीमत पर नहीं मानेगा।