देहरादून: भारी बहुमत से उत्तराखंड में जीत कर आई त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने अपना 6 महीने का कार्यकाल पूरा कर लिया है। सरकार अपने इस कार्यकाल का सफल रिपोर्ट कार्ड पेश कर रही है लेकिन इन 6 महीने में यह भी साफ हो गया है कि कांटे की टक्कर में मुख्यमंत्री बन गए त्रिवेंद्र रावत के लिए अपना घर संभालना आसान नहीं रहा। आइये नजर जानते हैं 6 महीने की उत्तराखंड सरकार के बड़े कदमों और 6 बड़े राजनीतिक बवालों पर।
सरकार के खाते में उपलब्धियां
जनता से संवाद: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नक्शे कदम पर चलते हुए राज्य सरकार ने जनता से सीधे संवाद के लिए बहुत सारे तरीके अपनाए। सोशल मीडिया के दौर में त्रिवेंद्र सरकार ने भी इस तकनीक का भरपूर फायदा उठाया। समाधान पोर्टल वह जगह है जहां आम आदमी अपनी समस्या सीधे मुख्यमंत्री के सामने रख सकता है। समाधान पोर्टल के साथ ही शिकायत दर्ज करने के लिए टोल फ्री नम्बर 1905 हेल्पलाइन की व्यवस्था की गई है। जनता की समस्याओं को दूर करने के लिए मुख्यमंत्री खुद सप्ताह में एक दिन और मंत्री हर रोज जनता दरबार लगा रहे हैं।
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भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के प्रयास
सेवा के अधिकार अधिनियम को और अधिक सशक्त बनाया गया है। इसके दायरे में अन्य आवश्यक सेवाओं को शामिल कर 150 सेवाओं की सूची तैयार की गई है। ब्लॉक स्तर तक बायोमैट्रिक हाजिरी शुरू कर दी गई है। विभिन्न अनियमितताओं की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया गया है। सीएम डैशबोर्ड जैसी पहल शुरू की गई है। इसके माध्यम से विभागों से संबंधित जानकारी उपलब्ध होगी, जिस पर सीधा नियंत्रण मुख्यमंत्री कार्यालय का होगा
सबको बिजली, सब साक्षर
मुख्यमंत्री ने जनता के लिए जो महत्वपूर्ण लक्ष्य निर्धारित किए हैं उनमें 2019 तक हर घर को बिजली और सौ फीसदी साक्षरता दर हासिल करना है। इसके साथ ही वर्ष 2022 तक सबको घर, किसानों की आय दोगुनी करने तथा 5 लाख बेरोजगार युवाओं के लिए कौशल विकास का लक्ष्य रखा गया है। बिजली चोरी रोकने के लिये ओवरहेड एलटी लाइनों की जगह एलटीएवी केबल प्रयोग करने का निर्णय लिया गया है।
पांच मेगावाट की सौर ऊर्जा परियोजनाओं को राज्य के स्थायी निवासियों के लिए आरक्षित किया गया है। उजाला एलईडी योजना के तहत 39 लाख एलईडी बल्ब बांटे गए और मार्च 2018 तक 100 लाख एलईडी बल्ब वितरण का लक्ष्य रखा गया है। सरकारी दफ्तरों में एलईडी का उपयोग अनिवार्य किया गया है।
स्वच्छ उत्तराखंड
उत्तराखण्ड का ग्रामीण क्षेत्र खुले में शौच मुक्त होने वाला देश का चौथा राज्य बन गया है। राज्य में स्वच्छता अभियान को भारत सरकार का बेस्ट प्रैक्टिसेज दर्जा मिला है। शहरी स्वच्छता कार्यक्रम के लिए मार्च 2018 तक सभी 92 शहरी निकायों को ओ.डी.एफ. बनाने का लक्ष्य पूरा करने का दायित्व जिलाधिकारियों को दिया गया है।
स्वास्थ्य सेवाएं सुधारने के प्रयास
स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए उत्तराखण्ड सरकार 100 जन औषधि केंद्र खोलने की तैयारी कर रही है। राज्य के 6 अस्पतालों में ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराने पर भी काम चल रहा है। वर्षों से मैदानी जनपदों में तैनात डॉक्टरों की पर्वतीय क्षेत्रों में तैनाती सुनिश्चित की गयी है।
डॉक्टरों की कमी की समस्या से निपटने के लिए सेना के 70 सेवानिवृत्त डॉक्टरों की सेवाएं ली जाएंगी। श्रीनगर मेडिकल कॉलेज को सेना के माध्यम से संचालित कराने की कार्रवाई चल रही है। राज्य में विशेषज्ञ डाक्टरों की कमी को देखते हुए टेली मेडिसिन और टेली रेडियोलॉजी की व्यवस्था का निर्णय लिया गया है।
‘13 डिस्ट्रिक्ट-13 न्यू डेस्टिनेशन्स’
प्रदेश में पर्यटन को बढ़ाने के लिए ‘13 डिस्ट्रिक्ट-13 न्यू डेस्टिनेशन्स’ कार्यक्रम के तहत सभी जिलों में कम से कम एक नए पर्यटन स्थल का विकास किया जाएगा। खरसाली-यमुनोत्री रोप-वे, गोविन्दघाट-घाघरिया रोप-वे और गुच्चुपानी-मसूरी रोप-वे का निर्माण किया जाएगा। प्रदेश में हॉस्पिटेलिटी यूनिवॢसटी की स्थापना का निर्णय लिया गया है। कुमाऊं एवं गढ़वाल मण्डल विकास निगमों का विलय किया जाएगा और राज्य में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए एडवेंचर टूरिज्म, होम स्टे व ‘एपिक सॢकट’ विकसित करने पर विशेष फोकस किया जा रहा है।
6 महीने के विवादों का बहीखाता
त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिए अपने साथियों पर नियंत्रण रखना भी आसान साबित नहीं हुआ है। इस डबल इंजन (केंद्र और राज्य दोनों में बीजेपी की सरकार) सरकार के लिए कई बवाल भी मचे जिन्हें थामने में मुख्यमंत्री तक की सांसें फूल गईं। ज्यादातर विवाद तो अपने ही लोगों के मार्फत हुए। जो काम विपक्ष करता है वो त्रिवेंद्र सरकार के अपने मंत्रियों और नेताओं ने कर डाला।
महाराज बनाम कौशिक
दो मंत्रियों की लड़ाई पिछले दिनों हरिद्वार की सडक़ों पर खुलकर सामने आई। त्रिवेन्द्र सरकार के कृपापात्र शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक इस लड़ाई में खुलकर महाराज के सामने तो नहीं आए लेकिन, संदेश सबको मिल गया था। हरिद्वार में सतपाल महाराज से भिड़े वहां के मेयर मनोज गर्ग। ये सभी जानते हैं कि मनोज गर्ज मदन कौशिक के कृपापात्र हैं।जिस दिन बरसात के पानी से हरिद्वार डूब रहा था उस दिन मेयर सतपाल महाराज से खुन्नस निकाल रहे थे।
उन्होंने न सिर्फ के आश्रम की दीवार गिरवा दी बल्कि उनके आश्रम के सामने कूड़ा भी डलवा दिया। और तो और फर्जी पट्टी बांधकर अस्तपाल भी पहुंच गए और महाराज समर्थकों पर मारपीट का आरोप जड़ दिया। इसे लेकर महाराज ने ज्यादा आक्रमकता तो नहीं दिखाई लेकिन, मामला सीएम दरबार में सुलझाने की कोशिश की गई। दोनों के बीच सीएम हाउस में मीटिंग हुई। एक कैबिनेट मंत्री के आश्रम पर मेयर की कार्रवाई से सतपाल महाराज अन्दर ही अन्दर घुट रहे थे और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के सामने उन्होंने अपना यह दर्द जाहिर भी कर दिया।
निशंक बनाम चैम्पियन
इस मामले में भी विवाद का अखाड़ा हरिद्वार ही रहा। यहां के लक्सर क्षेत्र में सांसद रमेश पोखरियाल निशंक और विधायक कुंवर प्रणव चैम्पियन के बीच तनातनी ने खूब सुॢखयां बटोरीं। अहम के टकराव में दोनों के समर्थक आमने सामने आ गए। मामला पुलिस तक पहुंचा और दोनों ही पक्षों की ओर से मुकदमा दर्ज किया गया। लेकिन, खास बात ये रही कि चैम्पियन भी मुकदमे में नामजद हैं और निशंक के एक रिश्तेदार भी (ऐसा कहा जा रहा है)। हालांकि निशंक ने नामजद व्यक्ति से अपने रिश्ते खारिज कर दिए हैं। दोनों के बीच सुलह के लिए अजय भट्ट को मैदान में उतरना पड़ा।
विधायक यतीश्वरानन्द पर मुकदमा
तीसरा मामला भी हरिद्वार का ही है। इस बार वज्रपात हुआ हरीश रावत को बुरी तरह हराने वाले विधायक यतीश्वरानन्द पर। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के लडक़ों ने यतीश्वरानन्द के खिलाफ ऐसा मोर्चा खोला कि हॉकी बल्लम लेकर उनके आश्रम पहुंच गये। एबीवीपी के साथ मिलकर बजरंग दल ने हरिद्वार में ही यतीश्वरानन्द का पुतला फूंक दिया।
विवादों वाले हरक सिंह रावत
महीनों हो गए लेकिन अभी तक वन मंत्री के रूप में हरक सिंह आईएफएस अफसरों के तबादले नहीं कर पाए हैं। वे तीन बार सूची मुख्यमंत्री को भेज चुके हैं। कैबिनेट की बैठक से हरक सिंह की दूरी उनकी नाराजगी के रूप में देखी गयी। चर्चा तो ये भी रही कि एक बार कैबिनेट बैठक में हरक सिंह और महाराज भी भिड़ गए थे। इस बारे में सतपाल महाराज तो कुछ नहीं बोले लेकिन हरक सिंह रावत ने इस बात का खंडन नहीं किया और उनका कहना था कि वह जनहित में बोल रहे थे।
मैथामेटिक्स वाले अरविंद पांडे
बात स्कूली शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे की जो हाल ही में गणित के नए समीकरण के लिए $फेमस हुए हैं। शिक्षकों का कार्यक्रम हो और शिक्षा मंत्री गायब हों तो इसे क्या कहेंगे। शिक्षकों के सम्मान समारोह में सीएम को बुलाया गया लेकिन देहरादून में ही मौजूद शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय इस कार्यक्रम में नहीं पहुंचे। और तो और, शिक्षक दिवस के दिन राजभवन में आयोजित समारोह से भी उन्होंने दूरी बना ली।
दरअसल कई मंत्री हैं नाराज
मुख्यमंत्री के अलावा मंत्रिपरिषद में नौ मंत्री हैं और इनकी वजह से सरकार को कई बार असहज स्थिति का सामना करना पड़ा है। सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत, अरविंद पांडेय तो कई मौकों पर अपने बयानों से तो नहीं लेकिन, कार्यों से ये सब जाहिर भी कर चुके हैं। अपनी नाराजगी मंत्रियों ने कैबिनेट बैठक से बंक मारकर जाहिर की है। कई मौके आए हैं जब सतपाल महाराज और हरक सिंह रावत कैबिनेट बैठक में नहीं पहुंचे।
अभी हाल में ही सबसे चॢचत रहा पर्यटन विभाग द्वारा दिया गया विज्ञापन। प्रदेश के मशहूर मंदिरों के बारे में जानकारी देने के लिए छपे इस पूरे पेज के विज्ञापन में मंत्री के नाते सतपाल महाराज की फोटो तो थी लेकिन सीएम त्रिवेंद्र की फोटो गायब थी। इसे महाराज और सीएम त्रिवेन्द्र के बीच तनातनी की तरह देखा गया। जब से सरकार बनी है मुख्यमंत्री कैम्प की ओर से सतपाल महाराज की अनदेखी की खबरें आती रही हैं।
सतपाल महाराज के पुराने प्रतिद्वंद्वी और उनके भाई भोले जी महाराज का सीएम के करीब होना ये बताने के लिए काफी है कि कम से कम सतपाल महाराज को मुख्यमंत्री अपने साथ नहीं देखना चाहते। हैरत तो तब हुई जब अप्रैल के महीने में चारधाम यात्रा को हरी झण्डी दिखाने के समय ऋषिकेश में त्रिवेन्द्र रावत के साथ पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज नहीं बल्कि भोले जी महाराज और मंगला माता मौजूद रहीं। सरकार बनने के एक महीने बाद की इस घटना ने पूरे प्रदेश में मुख्मंत्री बनाम महाराज की चर्चाओं को हवा दे दी।