पंडित दीनदयाल उपाध्याय: नहीं सुलझी मौत की गुत्थी, तीनों आरोपी हो गए थे बरी

अब उनकी स्मृतियों को सहेजने के लिए इस स्टेशन का नाम उन्हीं के नाम पर कर दिया गया है। बनारस कचहरी से भी पंडित दीनदयाल उपाध्याय की यादें जुड़ी हुई हैं क्योंकि यहीं पर उनके हत्याकांड का मुकदमा चला था।

Update: 2021-02-11 03:35 GMT
पंडित दीनदयाल उपाध्याय: नहीं सुलझी मौत की गुत्थी, तीनों आरोपी हो गए थे बरी (PC: social media)

अंशुमान तिवारी

लखनऊ: एकात्म मानववाद के प्रणेता और जनसंघ के सहसंस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मौत की गुत्थी आज तक नहीं सुलझ सकी है। आज तक इस रहस्य से पर्दा नहीं उठ सका है कि उनकी मौत प्राकृतिक थी या फिर उनकी हत्या हुई। हालांकि इस मामले की जांच भी कराई गई थी मगर आज तक इसका खुलासा नहीं हो सका। पंडित दीनदयाल उपाध्याय चंदौली जिले के तत्कालीन मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर 11 फरवरी, 1968 को मृत पाए गए थे।

अब उनकी स्मृतियों को सहेजने के लिए इस स्टेशन का नाम उन्हीं के नाम पर कर दिया गया है। बनारस कचहरी से भी पंडित दीनदयाल उपाध्याय की यादें जुड़ी हुई हैं क्योंकि यहीं पर उनके हत्याकांड का मुकदमा चला था।

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मुगलसराय स्टेशन के पास मिला था शव

दरअसल हुआ यह था कि 1968 में 11 फरवरी को पं. दीनदयाल उपाध्याय बिहार जनसंघ कार्यकारिणी की बैठक में हिस्सा लेने के लिए पटना जा रहे थे। इस यात्रा के दौरान ही मुगलसराय स्टेशन के 1276 नंबर खंभे के पास उनका शव संदिग्ध स्थितियों में मिला था।

अभावों से जूझकर बढ़े थे आगे

पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर 1916 को मथुरा के नगला चंद्रबन में हुआ था। बचपन में उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा क्योंकि जब वह सिर्फ तीन साल के थे तभी उनकी माता का देहांत हो गया था।

Deendayal Upadhyaya (PC: social media)

कुछ वर्ष बाद ही जब उनकी उम्र 8 वर्ष थी तब उनके पिता का साया भी सिर से उठ गया मगर अभावों से जूझते हुए भी उन्होंने जिंदगी का हौसला बनाए रखा और तरक्की की सीढ़ियां चढ़ते रहे।

जनसंघ का हत्या का आरोप

जनसंघ की स्थापना के बाद जब देश में उसकी ताकत बढ़ रही थी तभी अचानक ऐसी घटना हुई जिसने हर किसी को झकझोर दिया। 11 फरवरी 1968 को मुगलसराय रेलवे स्टेशन के पास पंडित जी का शव मिला। तत्कालीन सरकार का मानना था कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मौत प्राकृतिक हुई है जबकि जनसंघ का आरोप था कि उनकी हत्या की गई है।

इस मामले की जांच भी कराई गई थी मगर उनकी मौत का रहस्य आज तक नहीं खुल सका। मुगलसराय रेलवे पुलिस के रिकॉर्ड के मुताबिक 11 फरवरी 1968 को सुबह तकरीबन 3:30 बजे उनका शव मिला था।

उनका शव प्लेटफार्म से करीब 150 गज पहले रेलवे लाइन के दक्षिणी के बिजली के खंभे से लगभग तीन फीट की दूरी पर मिला था। इस मामले में तीन लोगों को गिरफ्तार भी किया गया था।

तीनों आरोपी हो गए थे बरी

बाद में बनारस कचहरी में तीन आरोपियों के खिलाफ उनकी हत्या का मुकदमा चला था। इस मामले में बचाव पक्ष की पैरवी उस समय के चर्चित वकील चरणदास सेठ ने की थी। सेठ ने 435 पेज की बहस तैयार की थी। बाद में अदालत की ओर से केस की सुनवाई और सबूतों के आधार पर तीनों आरोपी बरी कर दिए गए थे।

चोरी करने की नीयत से घुसे थे आरोपी

काशी की प्राचीन विरासतों और धरोहरों पर शोध करने वाले अधिवक्ता नित्यानंद राय का कहना है कि इस चर्चित मामले की सुनवाई के दौरान तीनों आरोपियों ने खुद को निर्दोष बताते हुए कहा था कि उनका पेशा चोरी करना है और वे चोरी करने की नीयत से ही बोगी में घुसे थे।

फैसले के बाद अशांत हो गए थे जज

बचाव पक्ष के वकील रहे चरणदास सेठ के पुत्र विनय सेठ उर्फ राजा बाबू का कहना है कि इस मामले की सुनवाई जज मुरलीधर ने की थी। उन्होंने बताया कि इस मामले में तीनों आरोपियों को बरी करने के बाद वे काफी अशांत रहने लगे थे। उनके दिलो-दिमाग में यह बात घर कर गई थी कि कहीं फैसला करने में कोई चूक तो नहीं हो गई।

जज ने अभियुक्त से मिलने की इच्छा जताई

उन्होंने बताया कि अपने मन की शांति के लिए जज मुरलीधर ने इस मामले के अभियुक्त भरत से बात करने की इच्छा जाहिर की थी। बाद में वकील चरण दास सेठ जज मुरलीधर से अभियुक्त भरत की भेंट कराने का फैसला किया।

बात के बाद फैसले पर संतुष्ट हुए जज

उन्होंने वाराणसी के मीरघाट स्थित एक बगीचे में जज साहब से अभियुक्त भरत की मुलाकात कराई। जज मुरलीधर ने करीब दो घंटे तक एकांत में भरत से वार्ता की और इस मुलाकात के बाद जज मुरलीधर ने सेठ साहब से अपने फैसले पर पूरी तरह संतुष्ट होने की बात कही।

इस ट्रेन में कर रहे थे यात्रा

पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मृत्यु बिहार जनसंघ कार्यकारिणी की पटना में आयोजित बैठक में हिस्सा लेने के लिए जाते समय हुई थी। इस बैठक में हिस्सा लेने के लिए 1968 में 11 फरवरी को पठानकोट-सियालदह एक्सप्रेस से जा रहे थे। उस दिन यह ट्रेन सवा दो बजे मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर पहुंची थी।

लीवरमैन ने दी थी घटना की सूचना

ट्रेन के मुगलसराय स्टेशन से रवाना होने के करीब पौन घंटे बाद लीवरमैन ने 1276 नंबर खंबे के पास एक लाश पड़ी होने की सूचना दी थी। सूचना के बाद मौके पर पुलिस पहुंची और शव को बरामद किया। उस समय दीनदयाल उपाध्याय की पहचान भी नहीं हो पाई थी और इस कारण 6 घंटे तक पंडित दीनदयाल उपाध्याय का शव लावारिस स्थिति में पड़ा रहा।

आयोग के नतीजों पर असहमति

उपाध्याय की मौत के बाद जनसंघ के नेताओं के बीच भी आरोप-प्रत्यारोप का दौर चला था बाद में विभिन्न दलों के 70 सांसदों की मांग पर इस मामले की जांच के लिए जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ का एक सदस्य आयोग भी बनाया गया था मगर इस आयोग ने भी सीबीआई जांच के नतीजों को ही सही बताया था।

Deendayal Upadhyaya (PC: social media)

वैसे जनसंघ के एक गुट इन नतीजों को कभी स्वीकार नहीं किया और इसे राजनीतिक हत्या बताया। हकीकत यह है कि पंडित दीनदयाल जी उपाध्याय की मौत आज भी रहस्य बनी हुई है।

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पंडित जी के नाम पर हुआ मुगलसराय स्टेशन

दीनदयाल उपाध्याय की स्मृतियों को सहेजने के लिए मुगलसराय स्टेशन का नाम अब पंडित दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन हो गया है। पास ही स्थित पड़ाव में दीनदयाल स्मृति स्थल का निर्माण भी किया गया है जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों देश को समर्पित किया था।

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