मंजिल मिलीः मनस्विता के लिए तैराकी बनी बेहतरीन हाइड्रोथैरेपी
हम बात कर रहे हैं उज्जैन की मनस्विता तिवारी की। जो आज शहर की मानी हुई पैरास्वीमिंग चैंपियन हैं। इन्होंने 17 मेडल और ट्रॉफियां जीतकर डॉक्टरों की कही बात को झुठला दिया है।
रामकृष्ण वाजपेयी
लखनऊ: हौसले बुलंद हों तो कोई भी बाधा आपका रास्ता नहीं रोक सकती। बेशक वक्त लग सकता है लेकिन कामयाबी अवश्य मिलती है। हम आज आपको एक ऐसी शख्सियत से रू ब रू कराने जा रहे हैं जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था कि वह अपनी इस जिंदगी में कुछ भी कर सकती है। जन्म से सेरिब्रल पाल्सी नामक बीमारी से ग्रस्त इस लड़की की जिंदगी डाक्टरों की नजर में खुद पर और समाज पर एक भार थी।
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हम बात कर रहे हैं उज्जैन की मनस्विता तिवारी की। जो आज शहर की मानी हुई पैरास्वीमिंग चैंपियन हैं। इन्होंने 17 मेडल और ट्रॉफियां जीतकर डॉक्टरों की कही बात को झुठला दिया है। मनस्विता के बारे में 20 साल पहले डॉक्टरों ने कहा था कि वह सेरिब्रल पाल्सी नामक गंभीर बीमारी से ग्रस्त है। उसको ता जिंदगी गोद में रखना पड़ सकता है।
मनस्विता, एलपी भार्गव नगर निवासी कल्पना-मनोज तिवारी की बेटी हैं
मनस्विता, एलपी भार्गव नगर निवासी कल्पना-मनोज तिवारी की बेटी हैं। मनस्विता को संभागायुक्त और कलेक्टर भी सम्मानित कर चुके हैं। मनस्विता जन्म के समय सामान्य बच्चों की तरह रोई नहीं थी।
और जांच के बाद डॉक्टरों ने जब उसकी बीमारी सेरिब्रल पाल्सी के बारे में बताया तब तो पूरा परिवार तनाव और सदमे में आ गया था। शुरुआत में मनस्विता को देखने में भी बहुत दिक्कत होती थी।
डॉक्टरों ने कहा था कि बढ़ती उम्र के साथ पता चलेगा कि मनस्विता को और क्या-क्या समस्याएं हो सकती हैं। उसकी शारीरिक समस्याएं पढ़ने-लिखने में भी बाधा बनीं और मनस्विता 9वीं कक्षा तक ग्रेस से पास कर सकी।
बेटी की तमाम दिक्कतों को शिद्दत से महसूस कर उसके पेरेंट्स ने कभी उसे किसी कमी का अहसास नहीं होने दिया। वह हरकदम पर उसके पथ प्रदर्शक बने। मनस्विता के पिता एक कॉलेज में प्रोफेसर थे। वह अपनी बेटी को फिजियोथेरेपिस्ट के यहां ले गए। मनोवैज्ञानिकों के पास ले गए। इन्हीं में से एक फिजियोथिरेपिस्ट ने मनस्विता की जिंदगी में बदलाव ला दिया।
अगर तैराकी सिखायी जाए तो उसकी शारीरिक शक्ति में सुधार आ सकता है
फिजियोथिरेपिस्ट ने कहा कि मनस्विता को अगर तैराकी सिखायी जाए तो उसकी शारीरिक शक्ति में सुधार आ सकता है। लेकिन तैराकी के लिए पहले जमीन पर पैर जमाना जरूरी था। इसलिए मनस्विता की मां ने रोज शाम को कोठी पैलेस की सीढ़ियों पर उसे चढ़ने और उतरने का अभ्यास कराना शुरू किया। इस उतार-चढ़ाव से उसके पैरों की मांस-पेशियां विकसित हुईं। स्वीमिंग करने से उसके मस्तिष्क में रक्त का संचार अच्छा होने लगा तो आईक्यू लेवल भी सामान्य बच्चों के बराबर हो गया।
इसके बाद मनस्विता की मां उसे स्वीमिंग पुल में ले जाने लगीं। और यही उसके जलपरी बनने की प्रक्रिया की शुरुआत थी। तकदीर को अभी शायद और परीक्षा लेनी थी अचानक हार्ट अटैक से उसके पिता की मृत्यु हो गई लेकिन मनस्विता की मां ने हार नहीं मानी।
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मनस्विता जब पहली बार स्वीमिंग पुल में उतरी वह लगभग पांच साल की थी। तैराकी से उसके शारीरिक अंगों में धीरे धीरे मजबूती आनी शुरू हो गई। अभ्यास बढ़ता गया। आत्मविश्वास आया तो उसने पैरा स्वीमिंग प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेना शुरू किया। घर वालों के लिए ये एक चमत्कार जैसा था कि उसने एक के बाद एक प्रतियोगिताओं को जीतते हुए एक कीर्तिमान बना दिया। आज उसके पास 17 मेडल और सर्टीफिकेट हैं। अब तक हुई प्रतियोगिताओं में मनस्विता का सर्वाधिक रिकॉर्ड 400 मीटर फ्री स्टाइल स्वीमिंग रहा है। इसके अलावा 400 मीटर स्वीमिंग में 50 मीटर के 8 लैप बिना रुके लगाए हैं।
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