लखनऊ: सीएम नीतीश कुमार के खुश होने की खास वजह नजर आ रही है। क्योंकि, बिहार में कांग्रेस के कम से कम 18 विधायक जनतादल यू में शामिल हो रहे हैं। गुजरात में जो काम राज्यसभा चुनाव के पहले हो गया था वो बिहार में सरकार बनने के बाद हो रहा है।
पटना के गांधी मैदान में 27 अगस्त को लालू प्रसाद यादव ने 'भाजपा भगाओ,देश बचाओ' रैली की थी, जिसमें कांग्रेस महासचिव गुलाम नबी आजाद शामिल हुए थे और पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी का छोटा टेप किया भाषण सुनाया गया था। कांग्रेस के बिहार में 24 विधायक इस बात से खासे नाराज हैं। उनका कहना है कि 2014 के चुनाव में केंद्र से कांग्रेस की सरकार भ्रष्टाचार और घोटालों के कारण ही गई थी, लेकिन हाईकमान ने इससे कोई सबक नहीं सीखा।
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कांग्रेस विधायकों के बगावती सुर
कांग्रेस के नाराज विधायकों का मानना है कि भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे लालू प्रसाद यादव की रैली में पार्टी नेतृत्व को नहीं आना चाहिए था। इससे बिहार की जनता और राज्य में कांग्रेस के समर्थकों के बीच गलत संदेश गया है। कांग्रेस के एक विधायक ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, कि 'अब हम भी अपना फैसला लेने को स्वतंत्र हैं। पार्टी अध्यक्ष या पूरे हाईकमान ने इस मामले में प्रदेश कांग्रेस की राय लेना जरूरी भी नहीं समझा। किसी की नासमझी से कोई अपना राजनीतिक कैरियर नहीं बर्बाद कर सकता।'
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बिहार में अहमद पटेल जैसा कोई नहीं
कांग्रेस के विधायकों के नीतीश की पार्टी में शामिल होना किसी भी दिन या किसी भी समय हो सकता है। बिहार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सदानंद सिंह और पार्टी विधायक दल के नेता अशोक चौधरी कहते हैं, '..ऑल इज वेल..।'
ऐसा नहीं कि हाईकमान को इसकी भनक या जानकारी नहीं कि उसके विधायक नीतीश कुमार की पार्टी में शामिल हो रहे हैं। लेकिन वो कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं हैं। बिहार में कांग्रेस के पास ऐसा कोई नेता नहीं जो पार्टी को इस संकट से उबार सके। गुजरात में तो अहमद पटेल थे, जो बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के लाख तिकड़म के बाद भी विधायकों को अपने पक्ष में रखने में सफल रहे थे और अपनी राज्यसभा सीट निकाल ले गए थे।
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लालू के पुत्र मोह ने किया बंटाधार
दरअसल, कांग्रेस बिहार में 1990 से ही सत्ता से बाहर है। बिहार विधानसभा के 2015 के चुनाव में कांग्रेस महागठबंधन में शामिल हुई और उसे 24 सीटें मिल गईं। पहले ये तय हुआ था कि कांग्रेस नीतीश कुमार के नेतृत्व में बनी सरकार को बाहर से समर्थन देगी, लेकिन बाद में सरकार में शामिल हो गई। लालू के साथ नीतिश की सरकार 16 महीने चली। लालू के 'पुत्र मोह' के कारण नीतीश ने अलग होने का फैसला लिया। ये अलग बहस का विषय हो सकता है कि नीतीश ने बीजेपी के साथ सरकार बनाकर सही किया या गलत।
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लालू चाहते तो बचा सकते थे सरकार
लालू प्रसाद यादव यदि अपने बेटे तेजस्वी यादव से इस्तीफा दिलवा देते तो नीतीश कुमार के पास सरकार चलाने के अलावा कोई चारा नहीं था। वो चाह कर भी बीजेपी के साथ नहीं जा सकते थे। महागठबंधन की सरकार गिरने के बाद राजनीतिक जानकारों ने लालू प्रसाद यादव की तुलना आधुनिक धृतराष्ट्र से की है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि 'धृतराष्ट्र जन्म से अंधे होने से ज्यादा पुत्र मोह में अंधे थे। कमोवेश यही हालत लालू प्रसाद यादव की है, जिन्होंने बेटे के मोह में अपनी ही सरकार गिरा दी।'
कांग्रेस में हमेशा रहे हैं लालू के शुभचिंतक
बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव के उदय के साथ ही कांग्रेस में उनके समर्थक हमेशा रहे। कांग्रेस के पूर्व कांग्रेस और आजीवन पार्टी के खजांची रहे सीताराम केसरी या मोहसिना किदवई का नाम लिया जा सकता है। वर्तमान समय में गुलाम नबी आजाद, लालू प्रसाद के समर्थक हैं।
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25 साल बाद मिला था सत्ता सुख, वो भी गया
कांग्रेस को 25 साल बाद बिहार में सत्ता का एक टुकड़ा मिला था, जो हाथ से चला गया। पार्टी के वर्तमान विधायक यह मान रहे हैं कि इस राज्य में पार्टी का कोई भविष्य नहीं रह गया है। यदि 18 विधायक जनतादल यू में शामिल हो जाते हैं, तो बची-खुची पार्टी भी बिहार में खत्म हो जाएगी।
नीतीश से हटेगा दबाव
कांग्रेस के 18 विधायकों के शामिल होने से नीतीश कुमार पर बना वेबजह दबाव अपने आप कम हो जाएगा।जनतादल यू का शरद यादव गुट लगातार ये दावा करता आ रहा है कि पार्टी के 17 विधायक उनके साथ हैं और सरकार से समर्थन वापस लेने या पार्टी से त्यागपत्र देने को तैयार हैं। यदि सच में 17 विधायक शरद यादव के साथ हैं तो वो भी अब इस हालात में नीतीश कुमार से अलग होने के पहले सौ बार सोचेंगे।
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सभी गुणा-गणित नीतीश के पक्ष में
विधायकों के कांग्रेस से अलग हो नीतीश कुमार के साथ जाने पर कोई संवैधानिक या राजनीतिक पेंच भी नहीं फंसना चाहिए, क्योंकि बिहार के राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी हैं, जो 1997-98 में यूपी में ऐसी स्थिति को सही तरीके से निपटा चुके हैं। बीजेपी, बसपा की गठबंधन की सरकार से जब मायावती ने समर्थन वापस लिया था तब कांग्रेस के 20 से ज्यादा विधायकों ने अलग गुट बनाया और नरेश अग्रवाल, अमरमणि त्रिपाठी के नेतृत्व में लोकतांत्रिक कांग्रेस बना ली थी। बसपा में भी बड़ी टूट हुई थी। लिहाजा नीतीश कुमार को इस मसले पर परेशानी का सामना करना पड़े, इसकी संभावना कम ही है।