लखनऊ। वैसे तो योग और सियासत का कोई मेल नहीं पर अगर इसका मेल देखना हो तो देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में देखा जा सकता है। उत्तर प्रदेश में तीसरे योग दिवस पर योगपथ के जरिए नरेंद्र मोदी ने राजपथ का जो संदेश दिया उसमें योग और सियासत के साथ जन गण और मन सब थे। योग के जरिए मोदी की राजयोग की तैयारी के जो संकेत लखनऊ में दिए वह काबिले गौर और काफी सशक्त हैं।
यह पहला मौका था कि योग दिवस पर प्रधानमंत्री ने लखनऊ को अपना योगस्थल चुना। इससे पहले दिल्ली और चंडीगढ़ में नरेंद्र मोदी योग कर चुके हैं। प्रधानमंत्री ने लखनऊ को यूं ही नहीं चुना है। राजनैतिक विश्लेषक मानते हैं कि लखनऊ को चुनने की में राजपथ की सियासत है। सियासत यह है कि उत्तर प्रदेश भाजपा शक्ति प्रदेश है।
उत्तर प्रदेश में लोकसभा की सबसे ज्यादा सीटें है और भाजपा ने सबसे ज्यादा सीट भी इसी प्रदेश से जीती है। उत्तर प्रदेश ने लोकसभा चुनाव के तीन साल बाद हुए विधानसभा चुनाव में मोदी के लिटमस टेस्ट की तरह विधानसभा चुनाव में न केवल उन्हें पास किया बल्कि पिछली बार से ज्यादा वोटों से जिताया। नरेंद्र मोदी इस लोकप्रियता को बरकरार रखना चाहते है। वह नहीं चाहते कि उन पर यह इल्जाम लगे कि चुनाव जीता और यूपी को भूल गये। गुजरात, हिमाचल प्रदेश में चुनाव के बावजूद उनका यूपी आना यही दर्शाता है।
मोदी के एजेंडे में उत्तर प्रदेश के महत्व को इस बात से भी समझा जा सकता है कि उन्होंने यूपी से पहले राष्ट्रपति देने का गौरव भी सूबे को हासिल कराने को कमर कस ली है। रामनाथ कोविद को देश का प्रथम नागरिक बनाने के साथ ही वह यूपी को एक खास मैसेज देना चाहते हैं।
यूपी विधानसभा में प्रचंड बहुमत के बाद योगी सरकार से लोगों के विश्वास की कमी को लेकर भी मोदी की चिंता है। योगी आदित्यनाथ के काम की तारीफ कर उन्होंने जनता को संदेश दिया है कि केंद्र यूपी के प्रति उदासीन नहीं है। योगी के प्रति विश्वास की आती गिरावट को मोदी ने अपने ‘फेथ फैक्टर’ से संजीवनी बूटी का बूस्टर दिया है। उन्होंने यूपी के लोगों को भरोसा दिया है कि उन्होंने न तो योगी को छोड़ा है न ही यूपी के लोगों को योगी के भरोसे।
उनकी निगाहें लगातार यूपी पर हैं। वह यूपी से सिर्फ सांसद नहीं है, वह यूपी के ही हो चुके हैं। राजनीतिक विश्लेषक रतनमणि लाल कहते हैं- ‘ मोदी ने यूपी आकर एक तीर से कई निशाने साधे हैं। पहला यूपी के लोगों को आश्वस्त किया है दूसरा, चर्चाओँ को विराम देने की कोशिश की है। साथ ही यह भी कि केंद्र ने योगी के सहारे ही यूपी को नहीं छोड़ा है। गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी की अगवानी करने गये मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ज्यादा तवज्जो न देने की बात मोदी के दौरे के पहले दिन काफी वायरल रही थी ऐसे में वह नहीं चाहते कि अनावश्यक किसी तरह की चर्चा भाजपा सरकार और मुख्यमंत्री को लेकर हो।’
दरअसल प्रधानमंत्री विषमताओं को विफलताओं को विजय के कारक बनाने में माहिर नेता माने जाते है। योग दिवस पर उनकी कोशिश भी यही थी। प्रधानमंत्री के लखनऊ के योग के कार्यक्रम को जब बारिश ने तहस नहस कर दिया तो प्रधानमंत्री ने अपने खास अंदास में इसे “ब्लेसिंग इन डिसगाइस” बना दिया। अपना प्रोटोकाल तोडकर पहुंच गये जनता के बीच। बच्चों के साथ मिलकर योग किया। बाकयदा 24 मिनट तक। लोगों से मिले। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने देश में इस तरह से पहली बार लोगों से हाथ मिलाते देखा गया पर यह उनकी राजनीति का हिस्सा है।
लखनऊ में पीपल कनेक्ट को लेकर नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर साबित किया कि उनके तरकश में पीपल कनेक्ट और सीधा संवाद दो ऐसे हथियार हैं जिसका तोड़ विपक्ष को सोचना होगा। योग दिवस पर नरेंद्र मोदी ने पीपल कनेक्ट कर कई ऐसे विपक्षी सवालों की धार को भोथरा कर दिया जो उनके मंच पर योग करने से उठ सकते थे। मोदी ने लोगों से सीधा हाथ मिलाकर कई घंटो के इंतजार और मूसलाधार बारिश में मार पर मरहम लगाया साथ ही लोगों को यह बताया कि यूपी में सीएम कोई भी हो मोदी की सीधी नज़र यूपी और यूपी के लोगों पर है।
मोदी ऐसे नेता हैं जो शोमैनशिप पर भरोसा करते हैं। जानते हैं कि वह लोकप्रिय हैं और उस लोकप्रियता को दर्शाने में भी गुरेज नहीं करते बल्कि इस बात का सबको एहसास कराते रहते हैं। यही वजह कि परिवर्तन यात्रा के समापन पर विधानसभा चुनाव से पहले जनवरी में लखनऊ आए नरेंद्र मोदी ने मंच से कहा था कि रमाबाई स्थल पर जितनी भीड़ है उतनी उन्होंने अपनी जिंदगी में कभी नहीं देखी। उसी रमाबाई स्थल पर पानी में करीब करीब बह चुके कार्यक्रम और प्रशासनिक बदइंतजामी को अपने मोदी मैजिक से फायदे का सौदा बना दिया।
मौसम विभाग ने साफ तौर पर भविष्यवाणी की थी कि योग दिवस पर जमकर बारिश हो सकती है। ऐसे में इंतजाम करना तो दूर प्रशासन ने उस स्पीकर को भी दुरुस्त नहीं रखा जिसके जरिए मोदी को लोगों से संवाद करना था।
कहते हैं कि योग एकाग्रता लाता है और एकाग्र होकर सभी वस्तुएँ हासिल हो सकती है पर सियासत में सिर्फ एकाग्रता से काम नहीं चलता इसके लिए जन समर्थन और पीपल कनेक्ट की जरुरत है। मोदी ने योगपथ पर इसी पीपल कनेक्ट के आजमाए हथियार को चल दिया है, लक्ष्य करीब करीब दो साल दूर है पर तीर तो सही दिशा में निकला दिख रहा है।