नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) और बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के प्रतिनिधिमंडल से चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की मुलाकात के बाद देश की सर्वोच्च अदालत में छिड़ा संग्राम जल्द खत्म हो सकता है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने रविवार (14 जनवरी) को सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) और बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की। साथ ही उन्हें भरोसा दिया कि जल्द सब कुछ ठीक हो जाएगा। शीर्ष अदालत में सौहार्द बहाल होगा।
50 मिनट की मुलाकात के बाद चीफ जस्टिस के आवास 5, कृष्ण मेनन मार्ग के बाहर बीसीआई के चेयरमेन मनन कुमार मिश्रा ने कहा, कि 'जस्टिस मिश्रा से सौहार्दपूर्ण माहौल में मुलाकात हुई। उन्होंने कहा है सब कुछ ठीक कर लिया जाएगा।' इससे पहले, बीसीआई के सात सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने चीफ जस्टिस के खिलाफ विरोध का बिगुल फूंकने वाले चार जजों में तीन जस्टिस चेलमेश्वर, जस्टिस एमबी लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ से भी मुलाकात की थी। तीनों जजों ने भी उन्हें संकट हल हो जाने का आश्वासन दिया है।
इससे पूर्व शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम जजों के शीर्ष अदालत की कार्य प्रणाली पर सवाल उठाने के बाद शनिवार 13 जनवरी को चार सेवानिवृत्त जजों ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को एक खुला पत्र लिखा। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज पीबी सावंत, दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस एपी शाह, मद्रास हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस चंद्रू और बॉम्बे हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस एच. सुरेश खत लिखने वाले जज हैं। इन जजों ने चीफ जस्टिस से गुजारिश की है कि जजों द्वारा उठाई गयी परेशानियों का जल्द से जल्द हल निकाला जाए, जिससे जनता का न्यायपालिका में विश्वास बना रहे।
पत्र में कहा गया है, कि जजों की ओर से केस बांटने को लेकर उठाए गए सवाल गंभीर हैं। इसका न्यायिक प्रशासन और कानून पर बुरा असर होगा। जजों ने यह माना है कि मुख्य न्यायाधीश किसी भी बेंच को मामला भेज सकते हैं, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि इसे मनमाने तरीके से किया जाए यानी चीफ जस्टिस द्वारा संवेदनशील और महत्वपूर्ण मामले किसी विशेष जूनियर जज की बेंच को दे दिए जाएं। इस मामले का हल तलाशना जरूरी है। मामले बेंचों को भेजने के लिए नियम बनाने की आवश्यकता है। ये नियम तर्कपूर्ण और पारदर्शी होने चाहिए। लोगों का न्यायपालिका और सुप्रीम कोर्ट में भरोसा वापस लाने के लिए ऐसा फौरन किया जाना चाहिए। जब तक ऐसा नहीं होता तब तक सभी लंबित संवेदनशील और महत्वपूर्ण मामले सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम जजों की संवैधानिक पीठ को देखने चाहिए।