विशेष संवाददाता
नई दिल्ली: गुजरात विधानसभा चुनावों के बीच विपक्ष की घेराबंदी से बचने के लिए मोदी सरकार ने संसद के शीत सत्र को आखिर हरी झंडी दे दी। हालांकि, अभी इस बाबत विधिवत अधिसूचना जारी होनी बाकी है। लेकिन सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों का संकेत है कि 15 दिसंबर से सरकार ने सत्र बुलाने का फैसला कर लिया। राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति ने इस पर फैसला लिया है। गृहमंत्री राजनाथ सिंह इस समिति के अध्यक्ष हैं।
यह सत्र अपने आप में अदभुत होगा, जोकि पिछले साल से अगले साल तक खिंचेगा। 5 जनवरी तक सत्र चलाने का खाका तैयार हुआ है। 23 दिसंबर से 31 दिसंबर तक छुट्टी होगी तथा नए साल में 1 जनवरी 2018 को 8 दिन के अवकाश के बाद संसद सत्र चलेगा।
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जेटली का आरोपों से इनकार
केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने विपक्ष के इन आरोपों से इनकार किया है कि सरकार शीत सत्र से कन्नी काटना चाहती है। उनका कहना है कि लोकतंत्र में यह परंपरा रही है कि जब किसी प्रदेश में चुनाव होते हैं तो संसद सत्र का कार्यक्रम उसी हिसाब से रखा जाता है।
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कांग्रेस मोदी सरकार पर लगातार कर रही थी प्रहार
ज्ञात रहे, कि मंगलवार को कांग्रेस ने संसद सत्र को टालने के लिए मोदी सरकार पर कड़े प्रहार करते हुए आरोप लगाया था कि गंभीर आर्थिक आरोपों में फंसे भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के पुत्र जय शाह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के पुत्र शौर्य डोभाल के अलावा फ्रांस से हुई राफेल डील पर विपक्ष के रुख के डर से सरकार संसद सत्र से कन्नी काट रही है।
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47 बाद देखने को मिलेगा ऐसा वाकया
इस बार के सत्र के लिए रोचक मामला यह है, कि जनवरी में शीत सत्र खत्म और जनवरी के आखिर में ही बजट सत्र आरंभ हो जाएगा। पिछले साल से मोदी सरकार ने 1 जनवरी से बजट सत्र आरंभ करने की परंपरा की शुरुआत की है। सो सरकार के समक्ष जनवरी माह के अंत में ही सत्र बुलाने की बाध्यता होगी। पूरे 47 बाद ऐसा वाकया देखने को मिलेगा जब एक ही संसद सत्र दूसरे साल तक जारी रहा।
ज्ञात रहे कि गुजरात विधानसभा का दूसरा और अंतिम चरण का मतदान 14 दिसंबर को समाप्त हो जाएगा तथा वोटों की गिनती का काम 18 दिसंबर को होगा।
शीत सत्र का रोचक इतिहास
इससे पूर्व केवल 1990 में ही संसद का शीत सत्र नहीं हुआ था। उस वक्त चंद्रशेखर प्रधानमंत्री थे। शीत सत्र की जगह सीधे बजट सत्र हुआ था। इसे ही संयुक्त सत्र मान लिया गया था। 1975 में देश में आपातकाल लगाने के बाद इंदिरा गांधी ने भी शीत सत्र नहीं बुलाया था। कांग्रेस भी उसके बाद मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते इसी तरह के छोटे-छोटे सत्र बुलाकर संसदीय परंपराओं को तोड़ चुकी है। 1970 में भी कांग्रेस ने दिसंबर 27 से 11 जनवरी तक शीतकालीन सत्र बुलाया था।