Best Motivational Quotes: पढ़ें ये शायरी और दोहे
Best Motivational Quotes: पढ़ें मुनव्वर राणा की सबसे बेस्ट शायरी...
Best Motivation Shayri Hindi: शायरी और दोहे किसे पढ़ना नहीं अच्छा लगता है, आपको बता दें कि आज हम आपके लिए ऐसी शायरी और दोहों की कई लाइने लाये हैं जो आपके लिए मोटिवेशन के साथ आपको नाई सीख भी देगी.
पढ़ें मुनव्वर राणा की सबसे बेस्ट शायरी
मुहाजिर हैं मगर हम एक दुनिया छोड़ आए हैं,
तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आए हैं
कहानी का ये हिस्सा आज तक सब से छुपाया है,
कि हम मिट्टी की ख़ातिर अपना सोना छोड़ आए हैं
नई दुनिया बसा लेने की इक कमज़ोर चाहत में,
पुराने घर की दहलीज़ों को सूना छोड़ आए हैं
अक़ीदत से कलाई पर जो इक बच्ची ने बांधी थी,
वो राखी छोड़ आए हैं वो रिश्ता छोड़ आए हैं
किसी की आरज़ू के पांवों में ज़ंजीर डाली थी,
किसी की ऊन की तीली में फंदा छोड़ आए हैं
पकाकर रोटियां रखती थी मां जिसमें सलीक़े से,
निकलते वक़्त वो रोटी की डलिया छोड़ आए हैं
जो इक पतली सड़क उन्नाव से मोहान जाती है,
वहीं हसरत के ख़्वाबों को भटकता छोड़ आए हैं
यक़ीं आता नहीं, लगता है कच्ची नींद में शायद,
हम अपना घर गली अपना मोहल्ला छोड़ आए हैं
हमारे लौट आने की दुआएं करता रहता है,
हम अपनी छत पे जो चिड़ियों का जत्था छोड़ आए हैं
हमें हिजरत की इस अन्धी गुफ़ा में याद आता है,
अजन्ता छोड़ आए हैं एलोरा छोड़ आए हैं
सभी त्योहार मिलजुल कर मनाते थे वहां जब थे,
दिवाली छोड़ आए हैं दशहरा छोड़ आए हैं
हमें सूरज की किरनें इस लिए तक़लीफ़ देती हैं,
अवध की शाम काशी का सवेरा छोड़ आए हैं
गले मिलती हुई नदियां गले मिलते हुए मज़हब,
इलाहाबाद में कैसा नज़ारा छोड़ आए हैं
हम अपने साथ तस्वीरें तो ले आए हैं शादी की,
किसी शायर ने लिक्खा था जो सेहरा छोड़ आए हैं
कई आंखें अभी तक ये शिकायत करती रहती हैं,
के हम बहते हुए काजल का दरिया छोड़ आए हैं
शकर इस जिस्म से खिलवाड़ करना कैसे छोड़ेगी,
के हम जामुन के पेड़ों को अकेला छोड़ आए हैं
वो बरगद जिसके पेड़ों से महक आती थी फूलों की,
उसी बरगद में एक हरियल का जोड़ा छोड़ आए हैं
अभी तक बारिसों में भीगते ही याद आता है,
के छप्पर के नीचे अपना छाता छोड़ आए हैं
भतीजी अब सलीके से दुपट्टा ओढ़ती होगी,
वही झूले में हम जिसको हुमड़ता छोड़ आए हैं
ये हिजरत तो नहीं थी बुजदिली शायद हमारी थी,
के हम बिस्तर में एक हड्डी का ढांचा छोड़ आए हैं
हमारी अहलिया तो आ गयी मां छुट गए आखिर,
के हम पीतल उठा लाये हैं सोना छोड़ आए हैं
महीनो तक तो अम्मी ख्वाब में भी बुदबुदाती थीं,
सुखाने के लिए छत पर पुदीना छोड़ आए हैं
वजारत भी हमारे वास्ते कम मर्तबा होगी,
हम अपनी मां के हाथों में निवाला छोड़ आए हैं
यहां आते हुए हर कीमती सामान ले आए,
मगर इकबाल का लिखा तराना छोड़ आए हैं
हिमालय से निकलती हर नदी आवाज़ देती थी,
मियां आओ वजू कर लो ये जूमला छोड़ आए हैं
वजू करने को जब भी बैठते हैं याद आता है,
के हम जल्दी में जमुना का किनारा छोड़ आए हैं
उतार आये मुरव्वत और रवादारी का हर चोला,
जो एक साधू ने पहनाई थी माला छोड़ आए हैं
जनाबे मीर का दीवान तो हम साथ ले आये,
मगर हम मीर के माथे का कश्का छोड़ आए हैं
उधर का कोई मिल जाए इधर तो हम यही पूछें,
हम आंखे छोड़ आये हैं के चश्मा छोड़ आए हैं
हमारी रिश्तेदारी तो नहीं थी हां ताल्लुक था,
जो लक्ष्मी छोड़ आये हैं जो दुर्गा छोड़ आए हैं
गले मिलती हुई नदियां गले मिलते हुए मज़हब,
इलाहाबाद में कैसा नाज़ारा छोड़ आए हैं
कल एक अमरुद वाले से ये कहना गया हमको,
जहां से आये हैं हम इसकी बगिया छोड़ आए हैं
वो हैरत से हमे तकता रहा कुछ देर फिर बोला,
वो संगम का इलाका छुट गया या छोड़ आए हैं
अभी हम सोच में गूम थे के उससे क्या कहा जाए,
हमारे आंसुओं ने राज खोला छोड़ आए हैं
मुहर्रम में हमारा लखनऊ इरान लगता था,
मदद मौला हुसैनाबाद रोता छोड़ आए हैं
जो एक पतली सड़क उन्नाव से मोहान जाती है,
वहीँ हसरत के ख्वाबों को भटकता छोड़ आए हैं
महल से दूर बरगद के तलए मवान के खातिर,
थके हारे हुए गौतम को बैठा छोड़ आए हैं
तसल्ली को कोई कागज़ भी चिपका नहीं पाए,
चरागे दिल का शीशा यूं ही चटखा छोड़ आए हैं
सड़क भी शेरशाही आ गयी तकसीम के जद मैं,
तुझे करके हिन्दुस्तान छोटा छोड़ आए हैं
हसीं आती है अपनी अदाकारी पर खुद हमको,
बने फिरते हैं युसूफ और जुलेखा छोड़ आए हैं
गुजरते वक़्त बाज़ारों में अब भी याद आता है,
किसी को उसके कमरे में संवरता छोड़ आए हैं
हमारा रास्ता तकते हुए पथरा गयी होंगी,
वो आंखे जिनको हम खिड़की पे रखा छोड़ आए हैं
तू हमसे चांद इतनी बेरुखी से बात करता है
हम अपनी झील में एक चांद उतरा छोड़ आए हैं
ये दो कमरों का घर और ये सुलगती जिंदगी अपनी,
वहां इतना बड़ा नौकर का कमरा छोड़ आए हैं
हमे मरने से पहले सबको ये ताकीत करना है,
किसी को मत बता देना की क्या-क्या छोड़ आए हैं ।
काफी बरसों पहले पढा था, ढाई अक्षर प्रेम के, पढ़े सो पंडित होय
पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ पंडित भया न कोय।
ढाई अक्षर प्रेम के, पढ़े सो पंडित होय॥
अब पता लगा है कि, ढाई अक्षर है क्या
तब से मन शांत हो गया।
ढाई अक्षर के ब्रह्मा और, ढाई अक्षर की सृष्टि ।
ढाई अक्षर के विष्णु और, ढाई अक्षर की लक्ष्मी।
ढाई अक्षर की दुर्गा और, ढाई अक्षर की शक्ति।
ढाई अक्षर की श्रद्धा और, ढाई अक्षर की भक्ति।
ढाई अक्षर का त्याग और, ढाई अक्षर का ध्यान।
ढाई अक्षर की इच्छा और, ढाई अक्षर की तुष्टि।
ढाई अक्षर का धर्म और, ढाई अक्षर का कर्म।
ढाई अक्षर का भाग्य और, ढाई अक्षर की व्यथा।
ढाई अक्षर का ग्रन्थ और, ढाई अक्षर का सन्त।
ढाई अक्षर का शब्द और, ढाई अक्षर का अर्थ।
ढाई अक्षर का सत्य और, ढाई अक्षर की मिथ्या।
ढाई अक्षर की श्रुति और, ढाई अक्षर की ध्वनि।
ढाई अक्षर की अग्नि और, ढाई अक्षर का कुण्ड।
ढाई अक्षर का मन्त्र और, ढाई अक्षर का यन्त्र।
ढाई अक्षर की श्वांस और, ढाई अक्षर के प्राण।
ढाई अक्षर का जन्म और, ढाई अक्षर की मृत्यु।
ढाई अक्षर की अस्थि और, ढाई अक्षर की अर्थी।
ढाई अक्षर का प्यार और, ढाई अक्षर का युद्ध।
ढाई अक्षर का मित्र और, ढाई अक्षर का शत्रु।
ढाई अक्षर का प्रेम और, ढाई अक्षर की घृणा।
जन्म से लेकर मृत्यु तक हम, बंधे हैं ढाई अक्षर में।
हैं ढाई अक्षर ही वक़्त में और, ढाई अक्षर ही अन्त में।
समझ न पाया कोई भी, है रहस्य क्या ढाई अक्षर में।