Motivational Story: मित्र वेश में छिपे अपने शत्रु को पहचानना भी कर्तव्य है

Motivational Story: मित्र वेश में छिपे अपने शत्रु को पहचानना भी हमारा परम कर्तव्य है, कई बार हम समस्त जगत को ही अपना मित्र समझने लगते हैं, यह वैराग्य की अति है।

Written By :  Sankata Prasad Dwived
Update: 2024-04-08 14:49 GMT

Motivational Story

Motivational Story: मानस में बाबा तुलसी राम जन्म से पहले रावण जन्म की कथा लिखते हैं!

क्यों भला?

विशुद्ध कलियुगी बात है,यदि जीवन में बुराई का अनुभव न हुआ हो तो अच्छाई का मूल्य समझ मे नहीं आता।

एक सामान्य व्यक्ति जिसने रावणत्व का अनुभव न किया हो,वह रामत्व को पूर्णरूपेण नहीं समझ पाता है।

रावण के पूर्वजन्म में प्रतापभानु नामक राजा होने की कथा आती है।उनकी प्रसिद्धि से जल कर एक कपटी ने ब्राह्मण वेश धर कर उनके साथ छल किया।उन्हें एक अनुष्ठान करने और उसके पश्चात ब्राह्मण भोजन का सुझाव दिया।भोजन बनाने की जिम्मेवारी उसने स्वयं ली।जब ब्राह्मण भोजन करने बैठे तो आकाशवाणी हुई कि- ठहरिए ब्राह्मणों!

आपके साथ छल हुआ है,यह राजा आपको मांस खिला कर आपका धर्म भ्रष्ट कर रहा है।ब्राह्मणों ने प्रतापभानु को शाप दिया कि-“ अगले जन्म में महानीच राक्षस हो जाओ।"

अब सोचिये! प्रतापभानु का तो कोई दोष नहीं दिखता,छल तो उनके साथ भी हुआ था। फिर नियति ने उन्हें किस अपराध का दंड दिया था?

प्रतापभानु को दंड मिला उनकी सहजता का।यदि हम अपने शत्रु का पहचान नहीं करते तो अनजाने में ही स्वयं के साथ साथ अनेकों का अहित करते हैं।

फिर इसका दण्ड तो भुगतना होगा न?

यदि हनुमान जी ने कालनेमि को न पहचाना होता तो क्या केवल उनका अहित होता?

नहीं!

वे स्वयं के साथ साथ अपने प्रभु और समस्त बानर सेना के अहित का कारण बनते। सो मित्र वेश में छिपे अपने शत्रु को पहचानना भी हमारा परम कर्तव्य है।कई बार हम समस्त जगत को ही अपना मित्र समझने लगते हैं।यह वैराग्य की अति है।जगतकल्याण के लिए तपस्या करते ऋषियों से भी राक्षस शत्रुता करते थे,और उन्हें मार कर खा जाते थे,फिर गृहस्थ के जीवन में केवल मित्र ही कैसे हो सकते हैं?

स्वयं को उदार सिद्ध करने के लोभ में शत्रु को भी मित्र बताने वाला व्यक्ति स्वयं के साथ साथ अपने पूरे समाज के लिए घातक होता है।

प्रतापभानु जब अगले जन्म में रावण के रूप में आये,तब भी वे अपना यह दुर्गुण साथ ले कर आये।मित्रभाव के साथ जिस जिस ने उन्हें सही राह दिखानी चाही,उसने उनका तिरस्कार किया।पहले पिता विश्रवा का,पत्नी मंदोदरी का,फिर भाई विभीषण का और जिन राक्षसों ने सदैव अनाचार के लिए प्रेरित किया। उन्ही की सुनता रहा।इसी दुर्गुण के कारण रावण स्वयं के साथ साथ पूरे कुल और समस्त संस्कृति के विनाश का कारण बना।

सब कुछ जानते हुए भी सभ्यता के शत्रुओं को मित्र बनाने वाला व्यक्ति अंततः रावण की तरह ही विनाश का कारण बनता है।

( लेखक प्रख्यात आध्यात्मिक लेखक हैं।) 

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