Premanand Ji Maharaj: क्यों प्रेमानंद जी महाराज ने चुना सन्यासी जीवन, ये राज जानकर चकरा जायेगा आपका माथा

Premanand Ji Maharaj: आज हम आपको प्रेमानंद जी महाराज से जुड़े कई ऐसी बातों को बताने जा रहे हैं जिनके बारे में शायद आप नहीं जानते होंगे। आइये प्रेमानंद जी को और अच्छे से जानते हैं।

Update:2023-08-06 06:36 IST
Premanand Ji Maharaj (Image Credit-Social Media)

Premanand Ji Maharaj: प्रेमानंद जी महाराज राधारानी के परम भक्त हैं और अपनी कथाओं और ज्ञानवर्धक बातों से सभी का ध्यान अपनी ओर अकसरहित कर लेते हैं। वो सदैव अपने भक्तों को यही बताते हैं कि अगर उन्हें मोक्ष की प्राप्ति करनी हो तो भगवान् के नाम का जप करो। आज हम आपको प्रेमानंद जी महाराज से जुड़े कई ऐसी बातों को बताने जा रहे हैं जिनके बारे में शायद आप नहीं जानते होंगे। आइये प्रेमानंद जी को और अच्छे से जानते हैं।

क्यों प्रेमानंद जी महाराज ने चुना सन्यासी जीवन

प्रेमानंद जी महाराज सोशल मीडिया पर भी काफी प्रसिद्ध हैं उनके कई भक्त हैं जो उनके बताये सदमार्ग पर ही चलते हैं। इतना ही नहीं उनके भजन और प्रवचनों को सुनने लोग दूर दूर से आते हैं। देश में ही नहीं उनकी प्रसिद्धि विदेशों में भी है। उन्होंने अपने भक्तों को ये भी बताया कि उन्हें स्वयं भगवान् भोलेनाथ के दर्शन हो चुके हैं। जिसके बाद ही उन्होंने अपने घर को त्यागकर वृन्दावन का रुख किया। लेकिन क्या आपको पाया है कि उन्होंने सन्यासी जीवन क्यों चुना और वो आखिर क्यों भक्ति मार्ग पर चलकर एक साधारण जीवन जीने लगे। आइये जानते हैं इस बारे में विस्तार से।

प्रेमानंद जी महाराज का जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर में हुआ था। वो एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे। उनके बचपन का नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे है। वहीँ उनके पिता का नाम शंभू पांडे और माता का नाम श्रीमती रामा देवी है। उनके परिवार का माहौल काफी साध्वी रहा है उनके दादा जी भी रक सन्यासी जीवन ही जीते थे साथ ही उनके पिता ने भी अपना जीवन प्रभु भक्ति में बिता दिया। वहीँ उनके भाई भी भगवत पाठ करते थे।

प्रेमानंद जी महाराज जब 5वीं कक्षा में थे तबसे ही उन्होंने भागवत गीता का पाठ शुरू कर दिया था। जिसके बाद उनकी रूचि आध्यात्म में पैदा हो गयी। इसके बाद उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान की जानकारी होने लगी। इसके बाद 13 साल की उम्र में उन्होंने ब्रह्मचर्य का पालन करने का फैसला कर लिया। जिसके बाद उन्होंने अपना घर त्याग दिया और संन्यासी बन गए। इस दौरान वो कई कई दिनों तक भूखे भी रहे। और वाराणसी के घाट पर गंगा मैया के किनारे घंटों बैठार प्रभु भक्ति में ध्यान लगाते थे। यही वजह है कि वो माँ गंगा को अपनी दूसरी माँ मानते हैं।

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